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परिशिष्ट

13 अगस्त 2022

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 सन्दर्भ सूची- 

आलोचनात्मक-ऐतिहासिक व अन्य ग्रन्थ :- 

1. पांडेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ : अपनी खबर (आत्मकथा), राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली, पेपर बैक्स, दूसरा संस्करण, 2006। 

2. डा0 भवदेव पांडेय : ‘उग्र’ का परिशिष्ट, भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन, नई दिल्ली, पहला संस्करण, 2008। 

3. डा0 क्षमाशंकर पांडेय :  ‘उग्र’-विमर्श, शिल्पी प्रकाशन, इलाहाबाद, प्रथम संस्करण, 2005। 

4. डा0 रत्नाकर पांडेय : ‘उग्र’ और उनका साहित्य, नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी, प्रथम संस्करण, 1969। 

5. सुधाकर पांडेय (सं.) : ‘उग्र’ के पत्र, वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली, प्रथम संस्करण, 1996। 

6. सुधाकर पांडेय (सं.) : पांडेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ (संस्मरण), नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी, प्रथम संस्करण, 2000। 

7. डा0 धीरेन्द्र वर्मा (प्रधान सम्पादक) : हिन्दी साहित्य कोष- भाग 1 व 2 ज्ञानमंडल लिमिटेड प्रकाशक, वाराणसी, दूसरा संस्करण 1963। 

8. आचार्य रामचंद्र शुक्ल : हिन्दी साहित्य का इतिहास, नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी, पन्द्रहवां संस्करण, 1965। 

9. डा0 नगेन्द्र : हिन्दी साहित्य का इतिहास, नैशनल पब्लिशिंग हाउस, नई दिल्ली 06, प्रथम संस्करण, 1973। 

10. आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी : हिन्दी साहित्य : उद्भव और विकास, राजकमल प्रकाशन नई दिल्ली-02, छठा संस्करण, 1990। 

11. डा0 रामविलास शर्मा : निराला की साहित्य साधना- प्रथम खंड, राजकमल प्रकाशन नई दिल्ली, प्रथम संस्करण, 1968। 

12. डा0 विरेन्द्र कौशिक : साहित्यशास्त्र, तुलसी प्रकाशन, मेरठ, तृतीय संस्करण, 2001। 

13. डा0 गोपालराय : हिन्दी कहानी का इतिहास, वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली, प्रथम संस्करण, 2008। 

14. उ0प्र0रा0ट0मु0वि0वि0 : यूजीएचआई -01 पाठ्यक्रम, हिन्दी गद्य, तृतीय खंड, द्वितीय संस्करण, जून 1997। 

15. उपेन्द्रनाथ ‘अश्क’ : मंटो मेरा दुश्मन (संस्मरण), नीलाभ प्रकाशन, इलाहाबाद, दूसरा संस्करण, 2000। 

16. विनोद भट्ट : मंटो- एक बदनाम लेखक, राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली पेपरबैक्स, तृतीय संस्करण 2010। 

17. बलराज मेनरा व शरद दत्त (संपादक) : सआदत हसन मंटो : दस्तावेज- 1, 2, 3, 4, 5 राजकमल प्रकाशन नई दिल्ली, तृतीय संस्करण, 2004। 

18. नरेन्द्र मोहन : मंटो ज़िन्दा है (जीवनी) किताबघर प्रकाशन, नई दिल्ली, प्रथम संस्करण, 2012। 

19. इस्मत चुगताई : क़ागजी है पैरहन (आत्मकथा), राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली, प्रथम संस्करण, 2012। 

20. एन.आर. स्वरूप व शिखा चतुर्वेदी : उदीयमान भारतीय समाज में शिक्षक, आर. लाल, बुक डिपो मेरठ, प्रथम संस्करण 2012। 

कथा साहित्य और उनकी भूमिकाएं :- 

1. पांडेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ : पोली इमारत (कहानी संकलन), आत्माराम एंड संस प्रकाशक, कश्मीरी गेट दिल्ली- 06, 1964। 

2. पांडेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ : मुक्ता (कहानी संलकन) आत्माराम एंड संस प्रकाशक, कश्मीरी गेट दिल्ली- 06, 1964। 

3. पांडेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ : चित्र-विचित्र (कहानी संकलन) आत्माराम एंड संस प्रकाशक, कश्मीरी गेट दिल्ली- 06, 1964। 

4. पांडेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ : यह कंचन सी काया (कहानी संग्रह) आत्माराम एंड संस प्रकाशक, कश्मीरी गेट दिल्ली- 06, 1964। 

5. पांडेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ : काल कोठरी (कहानी संकलन) आत्माराम एंड संस प्रकाशक, कश्मीरी गेट दिल्ली- 06, 1964। 

6. पांडेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ : ऐसी होली खेलो लाल (कहानी संकलन) आत्माराम एंड संस प्रकाशक, कश्मीरी गेट दिल्ली- 06, 1964। 

7. पांडेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ : शराबी (उपन्यास) आत्माराम एंड संस प्रकाशक, कश्मीरी गेट दिल्ली- 06, 1964। 

8. पांडेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ : सरकार तुम्हारी आँखों में (उपन्यास) वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली, 1998। 

9. पांडेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ : चंद हसीनों के खतूत (उपन्यास) वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली, 1998। 

10. पांडेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ : जी जी जी (उपन्यास), राधाकृष्ण प्रकाशन, दिल्ली- 51, पेपरबैक्स पहला संस्करण 1999। 

11. पांडेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ : कढ़ी में कोयला (उपन्यास) राधाकृष्ण प्रकाशन, दिल्ली-51 पेपरबैक्स पहला संस्करण 1999। 

12. सआदत हसन मंटो : रोज एक कहानी (कहानी संकलन), वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली, प्रथम संस्करण 2007। 

13. सआदत हसन मंटो : मंटो की सर्वश्रेष्ठ कहानियाँ, धीरज पाकेट बुक्स मेरठ, प्रथम संस्करण, 2005। 

14. सआदत हसन मंटो : मंटो की बदनाम कहानियाँ, राजश्री प्रकाशन नई दिल्ली, प्रथम संस्करण 2005। 

संस्मरणात्मक आलेख :- 

1. स्मृति जोशी : उज्जयिनी में उग्र, आलेख, हिन्दी. वेब दुनिया. काम, 4 सितम्बर 2008। 

2. रामकृष्ण : आखिर क्या थी वो रणनीति? आलेख, कादम्बिनी (मासिक पत्रिका), जनवरी 2009 पृ 07। 

3. राहुल श्रीवास्तव : विमर्श, अमर उजाला मेरठ आखर शुक्रवार 10 जुलाई 2009, पृ012। 

4. डा0 पुष्पपाल सिंह : सिंहावलोकन, आलेख दैनिक जागरण साहित्यिक पुनर्नावा, 05 जनवरी 2009 पृ0 12। 

5. साजन पेशावरी : एक संक्षिप्त परिचय- मंटो, राजा पाकेट बुक्स दिल्ली-84, 2005। 

6. राहुल मिश्र : मंटो एक मर्मभेदी कथाकार, आलेख, दैनिक जागरण मेरठ, साहित्यिक पुनर्नवा 02 मई 2008, पृ0 12। 

7. राजेन्द्र राव : मंटो के पाँच साहित्यिक मुक़दमें, आलेख, दैनिक जागरण, मेरठ, 07 मई 2012 पृ0 12। 

8. राजेन्द्र घोपड़कर : सियाह हाशिये पर खड़ी एक रोशनी, आलेख, दैनिक हिन्दुस्तान, मेरठ, 11 मई  2012, पृ0 14। 

9. सी. उदयभाष्कर : मौजूदा दौर में मंटो का महत्व, आलेख, दैनिक जागरण, मेरठ, 13 मई 2012, पृ0 16। 

10. निर्मल गुप्त : नहीं कर सकते मंटो को नजरंदाज, आलेख, दैनिक जनवाणी, मेरठ 20 मई 2012 पृ0 16। 

11. मंटो ने लिखे हैं वक्त से आगे के अफसाने, आलेख, राष्ट्रीय सहारा, नई दिल्ली, 11 मई 2010 पृ0 17। 

12. सियाह हाशिए का मंटो : बलराम अग्रवाल, हिन्दी समय. कॉम  

पत्र-पत्रिकांए :- 

1. कादम्बिनी (मासिक पत्रिका) : अक्टूबर 2008, जनवरी 2009 अंक विशेष, संपादक- मृणाल पांडेय। 

2. हंस (मासिक पत्रिका) : जनवरी 2008, मई 2012 अंक विशेष, सं.- राजेन्द्र यादव। 

3. नया ज्ञानोदय (मासिक पत्रिका) : मई 2012, मंटो विशेषांक, सं.- रवीन्द्र कालिया। 

4. वर्तमान साहित्य (मासिक पत्रिका) : अक्तूबर 2012, मंटो विशेषांक, सं. विभूति नारायण राय  

5. शतपथ : गुरूकुल कांगडी वि0वि0 पत्रिका, वर्ष 21 अंक 1, 15 जुलाई 2012। 

6. दैनिक जागरण (साहित्यिक पुनर्नवा विशेष) दैनिक समाचार पत्र, मेरठ। 

7. अमर उजाला (साहित्यिक आखर विशेष) दैनिक समाचार पत्र, मेरठ। 

8. हिन्दुस्तान (मयूर पंख): दैनिक समाचार पत्र, मेरठ। 

अन्य :- 

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रचनाएँ
"उग्र बनाम मंटो"
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उर्दू में सआदत हसन मंटो की बहुत सी कहानियाँ पढ़ने के बाद विचार आया कि हिंदी में भी मंटो जैसा कोई विवादस्पद लेखक है? काफी खोजबीन करने पर ज्ञात हुआ कि ऐसा लेखक तो पाण्डेय बेचन शर्मा "उग्र" ही है. उग्र की अनेक कहानियाँ और उपन्यास पढ़ने के बाद विचार आया कि क्यों न उग्र और मंटो की तुलना की जाए. उसी के परिणाम स्वरुप इस किताब को लिखने की प्रेरणा मिली.
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भूमिका

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 जब दो साहित्यकारों की तुलना की जाती है तो उनके व्यक्तित्व, रचनागत साम्य-वैषम्य, कृतियों की विषयवस्तुगत विशिष्टताएं, सामाजिक-सांस्कृतिक दृष्टिकोण और युगीन प्रवृत्तियों आदि को आधार बनाया जाता है। इस प्

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"उग्र"- एक परिचय

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 हिन्दी साहित्य में ‘उग्र’ अपनी ही तरह के साहित्यकार माने जाते हैं। जिस तरह उनका नाम थोड़ा विचित्र सा है उसी प्रकार उनका साहित्य भी अपने ही ढंग का है। नाम ही देखिए आगे-पीछे जाति सूचक विशेषण और उससे जुड़

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"उग्र"- साहित्यिक अवदान

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 ‘उग्र’ ने लेखन की शुरूआत काव्य से की थी। वे अपने स्कूल के दिनों से ही काव्य रचना करने लगे थे। साहित्य के प्रति उनका विशेष अनुराग बढ़ा था, लाला भगवानदीन के सम्पर्क में आने के पश्चात। जिनकी प्रेरणा से उ

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उग्र के साहित्य की मूल चेतना और प्रतिपाद्य विषय

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 जिस समय ‘उग्र’ का साहित्य-क्षेत्र में प्रवेश हुआ, उस समय तक छायावाद का आगमन हो चुका था। पद्य हो या फिर गद्य, कल्पना की ऊँची उड़ाने भरकर साहित्य की रचना हो रही थी। अतः समकालिक लेखक-कवियों पर भी इस साहि

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क्या थे उग्र पर आक्षेप के कारण?

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 ‘उग्र’ ने ऐसे समय में लिखना आरम्भ किया था, जब हिन्दी साहित्य में ‘आदर्शवाद’ का बोलबाला था और साहित्य यथार्थ से अधिक कल्पना में लिखा जाता था। ऐसे समय में जब उन्होंने अपनी कलम की नोक से समाज के यथार्थ

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उग्र साहित्य की प्रासंगिकता

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 साहित्यकारों की प्रासंगिकता और अप्रासंगिकता के बारे में अक्सर प्रश्न उठाया जाता रहा है। लेकिन जो साहित्य विभिन्न समस्याओं और सत्यों का दर्शन कराता हो, उसकी प्रासंगिकता कभी समाप्त नहीं होती, क्योंकि व

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मंटो- एक परिचय

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 दो साहित्यकारों की जब आपस में तुलना की जाती है तो उनके जीवन के उतार-चढ़ाव, साहित्यिक अवदान, सामाजिक-सांस्कृतिक दृष्टिकोण, साहित्यिक विषयवस्तुगत विशेषताएं आदि को आधार बनाना ही उचित होता है। पूर्व में ह

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मंटो की साहित्य यात्रा

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 सआदत हसन मंटो ने अपने जीवन में कहानियों के अतिरिक्त एक उपन्यास, फिल्मों और रेडियो नाटकों की पटकथा, निबंध-आलेख, संस्मरण आदि लिखे। लेकिन उसकी प्रसिद्धि मुख्य रूप से एक कहानीकार की है। चेखव के बाद मंटो

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मंटो के साहित्य की मूल चेतना और प्रतिपाद्य विषय

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 मंटो आज न केवल उर्दू बल्कि समस्त भारतीय भाषाओं में बड़े चाव से पढ़े जाते हैं। हिन्दी में तो उनकी सम्पूर्ण रचनाएं उपलब्ध हैं। उनकी ‘टोबा टेकसिंह’ और ‘खोल दो’ कहानियों को मैंने संस्कृत में भी पढ़ा है। लेक

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मंटो पर आक्षेप- कुछ उलझे सवाल

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 मंटो का लेखन ज़बरदस्त प्रतिरोध का लेखन है। यही उसके लेखन की शक्ति भी है। वह दौर ही शायद ऐसा था कि साहित्य से हथियार का काम लेने की अपेक्षा की जाती थी। मंटो ने इसका भरपूर लाभ उठाया और अपनी कहानियों से

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मंटो के साहित्य की प्रासंगिकता

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 सआदत हसन मंटो नैसर्गिक प्रतिभा के धनी और स्वतन्त्र विचारों वाले लेखक थे। वे ऐसे विलक्षण कहानीकार थे जिन्होंने अपनी कहानियों से समाज में अभूतपूर्व हलचल उत्पन्न की और उर्दू कथा-साहित्य को नई ऊँचाईयों त

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उग्र और मंटो- तुलनात्मक बिंदु

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 पिछले अध्यायों में हमने ‘उग्र’ और मंटो के व्यक्तित्व और कृतित्त्व को अलग-अलग रूपों और सन्दर्भों में जानने-समझने का प्रयास किया है। अब हम दोनों साहित्यकारों की एक साथ तुलना करके देखते हैं कि वे कहाँ ए

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उग्र और मंटो- समानताएं और असमानताएं

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 ‘उग्र’ और मंटो ने अपने समय के सवालों से सीधे साक्षात्कार करते हुए उन्हें अपना रचनात्मक उपजीव्य बनाया। वे विपरीत परिस्थितियों में भी अपनी तरह जिए और अपनी तरह की कहानियाँ लिखी। इस कारण उन्होंने बहुत चो

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परिशिष्ट

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 सन्दर्भ सूची-  आलोचनात्मक-ऐतिहासिक व अन्य ग्रन्थ :-  1. पांडेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ : अपनी खबर (आत्मकथा), राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली, पेपर बैक्स, दूसरा संस्करण, 2006।  2. डा0 भवदेव पांडेय : ‘उग्र’ का

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