देहरादून: आज़ादी के 70 बरस हो गए लेकिन देवभूमि उत्तराखण्ड के यह तीन गांव पहली बार बिजली की रोशनी देखेंगे? जी हां आज़ाद भारत को 70 साल हो गए लेकिन लोगों को बुनियादी सुविधा मयस्सर हो इसके लिए सरकार कितनी संवेदनशील है यह ख़बर इसकी बानग़ी भर है. हालांकि दीनदयाल योजना के तहत विभाग को किसी भी तरह दिसम्बर 2017 तक प्रदेश के सभी गांवों को बिजली से जोड़ना है.
यूं तो उत्तराखण्ड को ऊर्जा प्रदेश कहा जाता है, उत्तराखण्ड के 64 गांवों में बिजली पहुंचाने के लिए यूपीसीएल अब भी जद्दोज़हद में लगा हुआ है. अभी भी दो दर्जन से अधिक छोटे-बड़े बांध होने के बावजूद आज भी दूरदराज के गांवों में अंधेरा लालटेन की रोशनी से ही दूर होता है. अपनी कमी को यूपीसीएल कभी वन विभाग की कमियां बताता है और कभी सेंचुरी होने की मजबूरियां. वन विभाग की स्वीकृति के बाद टिहरी के तीन गांवों में जल्द ही बिजली पहुंचने वाली है और इसे यूपीसीएल अपनी बड़ी उपलब्धि बता रहा है.
70 सालों में पहली बार पहुंचेगी बिजली
कपकोट और गरुड़ क्षेत्र के इन गांव में आज़ादी के बाद बिजली का मतलब देखा समझा जाएगा. इनमें कपकोट - कीमु ग्राम पंचायत और तोक तालागड़ा, पल्ला किमू, मल्ला किमू, लाटू धार, कुकुड़ मैयाधार हैं, जबकि गरुड़ - लमचूला ग्राम पंचायत के बीरखाल, दमगढ़ी, अंनारपाटा और भागदाड़ू भी बिजली की रोशनी से जगमगाएंगे.
देवभूमि में आज भी अंधेरे को जीते 82 गांव
दरअसल, उत्तराखण्ड गठन के 16 साल बाद भी 82 गांव बिजली से वंचित हैं. भले ही उत्तराखण्ड आज ऊर्जा प्रदेश के तौर पर देश भर में जाना जाता हो, लेकिन हकीकत तो यह है कि राज्य के कई हिस्से आज भी अंधेरे की जद में हैं. उत्तराखण्ड पावर कॉरपोरेशन का दावा है कि मौजूदा वित्तीय वर्ष के अंत तक महज 37 गांव ही बिना बिजली के बचेंगे. आपको बता दें कि पहाड़ की विषम परिस्थितियों के चलते इन गांव में बिजली नहीं पहुंच पाई और कई गांव अंधेरे के साथ ही ज़िन्दग़ी को जीने के लिए मजबूर हैं ऐसे में तो सवाल ही बेईमानी लगने लगता है क्योंकि सत्ता में चाहे जो भी रहा हो 70 साल बाद की यह स्थिति बताती है कि अगर देश में ऐसी स्थिति है तो संसद में जश्न के साथ रोश्नी का मतलब आखिर है क्या?