देहरादून : देवभूमि उत्तराखण्ड के नए डीजीपी अनिल रतूड़ी ने आज अपना पदभार संभला. देवभूमि के इस नए देव की पहचान अलग अलग तरीके से की जा सकती है एक शानदार एथलीट, स्केटिंग में भारत का अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिनिधित्व करना हो या मसूर जाते ही माल रो़ड पर अल्हड़ मिज़ाज के साथ घूमने वाला लोगों से मिलने वाला एक आम शख़्स, जिसकी क़ामयाबी की गाथा के इतिहास में जाईयेगा तो पता चलेगा कि अनिल रतूड़ी होने का मतलब आख़िर होता क्या है.
अनिल रतूड़ी की शुरूआती शिक्षा दीक्षा हैंम्पटन कोर्ट स्कूल से हुई उसके बाद सेंट जॉर्ज स्कूल से 12वीं तक की पढ़ाई. मसूरी लाईब्रेरी मार्ग पर बने उनके बचपन के घर यानी रतूड़ी निवास में हर कोई नम आंखों के साथ चेहरे पर मुस्कुराहट लिये हुये है. हर किसी को बेटे पर गर्व है. अनिल रतूड़ी एक ऐसे संघर्ष और प्रतिभावान होने की परिभाषा हैं जिसने वर्दी पहनकर देश का ख़याल रखा और उसके साथ परिवार का भी. बेख़ौफ़ रतूड़ी की पहचान ही है कि उन्हें औरों से जुदा करती है, रतूड़ी का नाम हर कि ज़ुबान पे एक ईमानदार शख़्सित के तौर पर है. क्योंकि रतूड़ी होने का मतलब प्रोफेशनल होना भी है.
1987 आरआर बैच आईपीएस अनिल कुमार रतूड़ी उत्तराखण्ड के 10वें डीजीपी के रूप में सोमवार को पदभार ग्रहण किया.वहीं नए डीजीपी के चार्ज संभालने से पहले ऑफिस का माहौल खुशी और गम दोनों से भरा हुआ था. 1987 बैच के आइपीएस रतूड़ी राज्य गठन के बाद से ही पुलिस महकमे के अहम पदों पर तैनात रहे हैं.
गणपति ने उम्मीद जताई है कि अनिल रतूड़ी अपने काम से प्रदेश को एक नई दिशा दिखाएंगे. नए डीजीपी की कमान देते वक्त गणपति ने कहा कि जब मैं इस पद पर आया था तब इतनी सारी फॉर्मेलिटी नहीं हुईं थी लेकिन आज मुझसे कुछ ज्यादा ही करवाया जा रहा है. एमए गणपति ने पहले तो पत्र पर साइन करके अनिल रतूड़ी को नए डीजीपी पद पर सुशोभित किया और उसके बाद ड्यूटी की स्टिक देकर उन्हें प्रदेश की कमान सौंप दी.
दरअसल एम गणपति ने इस बात का ज़िक्र इसलए भी किया क्योंकि एडीजी अशोक कुमार ने डीजीपी गणपति को एक स्टिक दी जिसे नए डीजीपी को देने के लिए कहा गया कि आप इस स्टिक को नए डीजीपी को सौंप दें. जिस पर आंखों में नमी भरी चमक और दबी मुस्कुराहट के साथ गणपति ने कहा कि यह डंडा मुझे तो पहले नहीं दिया गया...
गौरतलब है कि 1987 बैच के आईपीएस रतूड़ी मूल रूप से रतूड़ा (रुद्रप्रयाग) के रहने वाले हैं लेकिन बाद में वे मसूरी में बस गए. उत्तराखण्ड पुलिस के डीजीपी का पदभार संभालने वाले रतूड़ी 2020 में सेवानिवृत्त होंगे. पुलिस महानिदेशक बनने वाले रतूड़ी उत्तराखण्ड मूल के चौथे पुलिस अधिकारी हैं. डीजीपी बनने की पात्रता के लिहाज से देखें तो आईपीएस की 30 वर्ष की सेवा और एडीजी के तौर पर कम से कम पांच वर्ष का अनुभव होना चाहिए. डीजीपी अनिल रतूड़ी इस मामले में सबसे फिट थे.
रतूड़ी के पद और हद की दास्तान
याद कीजिये तो साल 2000 के वक़्त उत्तप्रदेश से अलग होने के बाद उत्तराखण्ड राज्य बना. उस समय अनिल रतूड़ी बतौर ओएसडी यहां आ चुके थे. यहां बता दें कि रतूड़ी ने साल 1987-88 में सहायक पुलिस अधीक्षक के रूप में मेरठ से नौकरी शुरू की थी. इसके बाद वे बरेली एएसपी, एसपी विजिलेंस(बरेली), एसपी सिटी(लखनऊ), एसपी पीलीभीत, रायबरेली, आजमगढ़, बनारस, एसएसपी इटावा, पुलिस अकादमी हैदराबाद, एसएसपी मेरठ और एसएसपी क्राइमब्रांच लखनऊ में तैनात रह चुके हैं. लखनऊ में इनकी तैनाती के दौरान ही बाबरी मस्जिद गिराई गई थी. दंगे की स्थिति में भी उन्हें माहौल को नियंत्रण में रखा है. रतूड़ी ने पीलीभीत को भी कई खूंखार आतंकवादियों से निजात दिलाई थी.