देहरादून : उत्तराखंड की जमीन सरकारी लूट के लिए कितनी उपयुक्त है इसका अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि राजनेता रिटायर होने से पहले यहाँ अपने बेटों का भविष्य सेट करना चाहते हैं। पहले विजय बहुगुणा और अब एनडी तिवारी दोनों कांग्रेस पार्टी के पूर्व मुख्यमंत्रियों को ही ले लीजिये इन्होंने बेटों के भविष्य के लिए अपनी खांटी कांग्रेसियत तक त्याग दी। उत्तराखंड में हर नेता का रोना यही है कि वह गद्दी से दूर नही रह सकता। उत्तराखंड के वर्तमान सीएम हरीश रावत भी पार्टी में एक ऐसा एकाधिकार चाहते हैं जिससे हर बार गद्दी के हक़दार वही बने।
रावत के एकाधिकार के कारण दर्जन भर से ज्यादा नेता बीजेपी का रुख कर चुके हैं लेकिन रावत के चेहरे पर कोई अफ़सोस नही है। कहा तो यह भी जा रहा है कि रावत खुद अपने बेटों को टिकट देने के मूड में हैं। यूपी के सीएम रहे नारायण दत्त तिवारी ने उत्तराखंड आंदोलन के वक्त कहा था कि किसी भी कीमत पर वह उत्तराखंड के निर्माण का विरोध करेंगे। उन्होंने कहा था कि उत्तराखण्ड बनने से पहले उनकी लाश से गुजरना पड़ेगा। यह संयोग ही है कि आज वही तिवारी उत्तराखण्ड में अपने बेटे को टिकट मांगने के लिए खुद बीजेपी में शामिल हो गए।
दरअसल राज्य बनने के बाद से ही राज्य के नेताओं में गद्दी पाने की होड़ इस कदर मची कि नेता कभी बीजेपी तो कभी कांग्रेस की अदला बदली करते रहे। साल 2000 में निर्माण के साथ जब राज्य में बीजेपी की सरकार बनी तो उन्होंने सबसे पहले उत्तराखंड का नाम ही बदलकर उत्तरांचल कर दिया। जनता बीजेपी के दो साल का कार्यकाल देख चुकी थी लिहाजा जब साल 2002 में राज्य में पहले चुनावों का ऐलान हुआ तो जनता ने कांग्रेस पर भरोसा किया और एनडी तिवारी राज्य के सीएम बने।
सीएम बनते ही तिवारी ने अपने हर आदमी में लालबत्ती बांटकर राज्य का वीआईपी बना दिया। उत्तराखंड को नेताओं ने तो लूटा ही, धीरे- धीरे उत्तराखंड नौकर शाहों की नजरों में भी दुधारू गाय बन गई। रिश्वत देकर अधिकारी उत्तराखंड में अपने ट्रांसफर करवाने लगे। उत्तराखंड के एक और मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने तो अपनी पूरी जिंदगी राज्य से बाहर ही गुजारी लेकिन जब सीएम बने तो गद्दी से उतरने पर बीजेपी की तरफ चल दिए। अपने बेटों के करियर को उत्तराखंड इ जमाने के लिए वह बीजेपी में शामिल हुए तो बीजेपी ने उनकी मन की मुराद पूरी कर दी। उन्हें बेटे सौरभ बहुगुणा को सितारगंज से टिकट दे दिया।
उत्तराखंड के हरिद्वार में नेताओं, नौकरशाहों और माफियाओं में एक ऐसा गठजोड़ बन गया कि कुम्भ नगरी खनन के कारण अपने आस्तित्व के लिए लड़ रही है। उत्तराखंड में खनन के खिलाफ लड़ रहे स्वामी शिवानंद बताते हैं कि यहाँ नौकरशाह इसी लिए अपने ट्रांसफर करवाते हैं ताकि अपनी जेबे भर सकें। हरीश रावत सरकार के दौर के एक नौकरशाह राकेश शर्मा का नाम राज्य की लूट से सम्बंधित कई घोटालों में आया। शर्मा को अपनी नौकरशाही के दौरान उत्तराखंड में ऐसा क्या दिखा गया कि वह हिमांचल के निवासी होते हुए भी उत्तराखंड से चुनाव लड़ने की फिराक में हैं। उत्तराखंड की पहचान एक ऐसे राज्य के रूप में बनी जिसके लिए लाठियां और गोलियां तो उत्तराखंड के लोगों ने खाई लेकिन राज करने में बाहरी लोग ही हमेशा आगे रहे।