देहरादून : गंगा को स्वच्छ और अविरल बनाने का दावा करने वाली मोदी सरकार क्या अब गंगा को लेकर उतनी गंभीर नही है जितनी वह सत्ता में आने से पहले दिखाई दे रही थी। ताज़ा खबर यह है कि केंद्र सरकार का पर्यावरण मंत्रालय अब उत्तराखंड के पहाड़ी जिले उत्तरकाशी में भागीरथी नदी में खनन को अनुमति देने पर विचार कर रहा है। इस मामले में सबसे चिंता की बात यह है कि सरकार जिस इलाके में खनन को अनुमति देने जा रही है वह इको सेंसटिव जोन के अंतर्गत आता है और चार साल पहले यहाँ खनन पर प्रतिबन्ध भी लगाया गया था।
बता दें कि उत्तराखंड में लंबे समय से पर्यावरणविद भागीरथी को बचाने और यहाँ के पर्यावरण संरक्षण के लिए आंदोलनरत है। पर्यावरण को लेकर आंदोलन कर रहे लोगों का ही असर था कि साल 2012 में सरकार को भागीरथी पर बन रहे दो विधुत परियोजनाओं रोक लगानी पड़ी थी। अब केंद्र सरकार का कहना है कि इससे नदी की पारिस्थितिकी पर कोई असर नही पड़ेगा। क्योंकि हर बरसात में नदी में भारी मात्रा में रेत इकट्ठी होती है और खनन में इसका इस्तेमाल किया जा सकता है।
उत्तराखंड में नदियों पर बन रहे बांधों को लेकर मोदी सरकार के ही अंदर पहले ही घमासान मचा हुआ है। पहले भी सरकार के तीन मंत्री इसको लेकर खुलेतौर पर आमने-सामने आ चुके हैं। उमा भारती उत्तराखंड में बन रहे बांधो के खिलाफ हैं। उमा भारती के मंत्रालय का कहना है कि उत्तराखंड में बन रहे बांधों की समीक्षा को लेकर बनाई गई अभी तक की सभी कमेटियों ने इनका विरोध किया है। जबकि पर्यावरण मंत्रालय नदियों में जितना पानी छोड़ने की बात कह रहा है वह नदियों के लिए अपर्याप्त है। उनका कहना है कि बाँधों से नदियों की जैव विविधता ख़त्म हो जाएगी। इससे पहले इस पर नाराजगी जताते हुए उमा भारती ने पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को पत्र लिखा था जो कि लीक हो गया था।
वहीँ सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता प्रशांत भूषण का कहना है कि सरकार को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता पर्यावरण का नुकसान हो रहा है, सरकार का ध्यान तो अब सिर्फ अपने प्रोजेक्ट को पूरा करना है। उमा भारती अपने हलफनामे में इस बात का भी जिक्र करेंगी कि इन नदियों से 50 करोड़ लोगों का रोजगार जुड़ा हुआ है इसलिए इन बांधों को हर झंडी न मिले। गौरतलब कि साल 2013 में उत्तराखंड में आई बाढ़ पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा बनाई गई कमेटी ने कहा था कि इस त्रासदी में बांधों के भूमिका से इंकार नहीं किया जा सकता।