स्मृति शेष: जितनी हिम्मत टाइगर में थी उतनी हिम्मत शायद देश की सबसे रसूखदार कुर्सी पर बैठकर किसी पुलिस अफसर ने अब तक नही दिखाई होगी. और शायद इसीलिए जोगिन्दर सिंह को टाइगर कहा गया. भ्रष्टचार के खिलाफ रिपोर्टिंग में जितनी मदद टाइगर करते थे उतनी मदद शायद कोई दूसरा कभी नही कर पायेगा. इसलिए सीबीआई के इस असली शेर के जाने का आज दुःख है. यकीन करिये टाइगर ने जो इतिहास रचा वो CBI की बन्द दीवारों में रहकर कोई नही रच सकेगा.
1997 का दौर था. टाइगर, चारा घोटाले में तब बिहार के मुख्यमंत्री लालू यादव के खिलाफ एक-एक कर सबूत जुटा रहे थे. तभी 21 अप्रैल को अचानक इन्द्र कुमार गुजराल देश के नए प्रधान मंत्री बना दिए गए. तब केंद्र में जनता दल के गठबंधन की सरकार थी और बिहार के मुख्यमंत्री लालू यादव ने ही गुजराल को प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठाया था. लेकिन सब कुछ जानते हुए भी टाइगर ने अपने अफसरों से कहा कि चारा घोटाले में जांच रुकेगी नही. लालू को हर कीमत पर गिरफ्तार करना होगा. टाइगर को भरोसा था कि अदालत और तब के ईमानदार छवि वाले गृह मंत्री कॉमरेड इंद्रजीत गुप्ता उन्हें कार्रवाई करने के लिए नैतिक बल देंगे. न गुप्ता ने साथ दिया ना जज ने, पर टाइगर अकेले आगे बढ़ गए . जुलाई 1997 में उन्होंने लालू की गिरफ्तारी की चुपचाप तैयारी शुरू कर दी. पटना मे सीबीआई ने अर्धसैनिक बलों की मांग की. लेकिन इस बीच दिल्ली के दलाल अपना काम कर गए. लालू यादव को खबर दे दी गयी कि टाइगर उन्हें गिरफ्तार करने का लिखित आदेश फाइल पर दे चुके हैं.
जिस दिन चारा घोटाले काण्ड में सीबीआई को विशेष अदालत से लालू की गिरफ़्तारी का वारंट जारी करवाना था उससे कुछ घंटे पहले लालू के बनाये प्रधानमंत्री गुजराल ने टाइगर जोगिन्दर सिंह को हटा दिया. थोड़ी देर बाद सीबीआई के एक नए अफसर ने पटना हाई कोर्ट में कहा कि मुख्यमंत्री को गिरफ्तार करने के लिए अभी तक ठोस सबूत नही मिले हैं. टाइगर हटा दिए गए और कुछ साल के लिए गुजराल ने बिहार में लालू सरकार को अभय दान दे दिया. सच ये है कि कानून की हिफाजत में टाइगर ने अपनी कुर्सी की भी बलि चढ़ा दी थी.
कुछ साल पहले इस घटना का ज़िक्र करते हुए मैंने टाइगर से पुछा कि जब उन्हें मालूम था कि गुजराल, जनता दल के कोटे से पीएम बने हैं और उन्हें लालू की मदद से कुर्सी मिली है, तो आखिर फिर उन्होंने क्यों लालू को गिरफ्तार करने के आदेश अफसरों को दिए थे ? तब टाइगर ने बोला था ..."अगर गिरफ्तारी के आदेश ना देता तो अगले चार महीने तक सीबीआई डायरेक्टर बना रह सकता था लेकिन रिटायरमेंट के बाद मुझे लोग पेपर टाइगर के तौर पर याद रखते. मुझे पेपर टाइगर लफ्ज़ से सख्त नफ़रत थी."
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3 फरवरी 2017.
अलविदा टाइगर.
तुम वाकई असली थे.
तोते वाली सीबीआई के दफ़्तर में, ज़मीर वाले कुछ अफ़सर
तुम पर हमेशा गर्व करेंगे.
और ये देश भी.
वाहे गुरु दा खालसा,
वाहे गुरु दी फ़तेह.