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वसुधा के अंचल पर

25 अप्रैल 2022

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वसुधा के अंचल पर

यह क्या कन- कन सा गया बिखर ?

जल-शिशु की चंचल क्रीड़ा- सा 

जैसे सरसिज डाल पर 

       लालसा निराशा में ढलमल

       वेदना और सुख में विह्वल

       यह या है रे मानव जीवन?

       कितना है रहा निखर.

मिलने चलते अब दो कन,

आकर्षण - मय चुम्बन बन,

दल के नस-नस में बह जाती

लघु-लघु धारा सुंदर

       हिलता-डुलता चन्चल दल,

       ये सब कितने हैं रहे मचल?

       कन-कन अनन्त अंबुधि बनते!

       कब रूकती लीला निष्ठुर!

तब क्यों रे यह सब क्यों ?

यह रोष भरी लाली क्यों ?

गिरने दे नयनों से उज्जवल

आँसू के कन मनहर

वसुधा के अंचल पर !

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रचनाएँ
लहर
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डॉ॰ प्रेमशंकर की मान्यता है कि 'लहर' में कवि एक चिन्तनशील कलाकार के रूप में सम्मुख आता है, जिसने अतीत की घटनाओं से प्रेरणा ग्रहण की है। प्रसाद के गीतों की विशेषता यही है कि उनमें केवल भावोच्छ्वास ही नहीं रहते, जिनमें प्रणय के विभिन्न व्यापार हों, किन्तु कई बार एक स्वस्थ जीवन-दर्शन की नियोजना भी होती है।
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लहर 1

23 अप्रैल 2022
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वे कुछ दिन कितने सुंदर थे ? जब सावन घन सघन बरसते इन आँखों की छाया भर थे सुरधनु रंजित नवजलधर से भरे क्षितिज व्यापी अंबर से मिले चूमते जब सरिता के हरित कूल युग मधुर अधर थे प्राण पपीहे के स्वर

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लहर 2

23 अप्रैल 2022
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(1) उठ उठ री लघु लोल लहर! करुणा की नव अंगड़ाई-सी, मलयानिल की परछाई-सी इस सूखे तट पर छिटक छहर! शीतल कोमल चिर कम्पन-सी, दुर्ललित हठीले बचपन-सी, तू लौट कहाँ जाती है री यह खेल खेल ले ठहर-ठहर!

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अशोक की चिन्ता

23 अप्रैल 2022
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जलता है यह जीवन पतंग जीवन कितना? अति लघु क्षण, ये शलभ पुंज-से कण-कण, तृष्णा वह अनलशिखा बन दिखलाती रक्तिम यौवन। जलने की क्यों न उठे उमंग? हैं ऊँचा आज मगध शिर पदतल में विजित पड़ा, दूरागत क्र

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प्रलय की छाया

23 अप्रैल 2022
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थके हुए दिन के निराशा भरे जीवन की सन्ध्या हैं आज भी तो धूसर क्षितिज में! और उस दिन तो; निर्जन जलधि-वेला रागमयी सन्ध्या से सीखती थी सौरभ से भरी रंग-रलियाँ। दूरागत वंशी रव गूँजता था धीवरों की छोटी

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ले चल वहाँ भुलावा देकर

23 अप्रैल 2022
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ले चल वहाँ भुलावा देकर मेरे नाविक ! धीरे-धीरे ।                            जिस निर्जन में सागर लहरी,                         अम्बर के कानों में गहरी,                      निश्छल प्रेम-कथा कहती हो

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निज अलकों के अंधकार में

23 अप्रैल 2022
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निज अलकों के अंधकार में तुम कैसे छिप जाओगे? इतना सजग कुतूहल! ठहरो,यह न कभी बन पाओगे ! आह, चूम लूँ जिन चरणों को चाँप-चाँप कर उन्हें नहीं दुख दो इतना, अरे अरुणिमा उषा-सी वह उधर बही. वसुधा चरण चिह्न

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मधुप गुनगुनाकर कह जाता

23 अप्रैल 2022
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मधुप गुनगुना कर कह जाता कौन कहानी अपनी, मुरझा कर गिर रही पत्तियां देखो कितनी आज धनि.           इस गंभीर अनंत नीलिमा में अस्संख्य जीवन-इतिहास-           यह लो, करते ही रहते हैं अपना व्यंग्य-मलिन उपह

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अरी वरुणा की शांत कछार

23 अप्रैल 2022
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अरी वरुणा की शांत कछार !           तपस्वी के वीराग की प्यार ! सतत व्याकुलता के विश्राम, अरे ऋषियों के कानन कुञ्ज! जगत नश्वरता के लघु त्राण, लता, पादप,सुमनों के पुञ्ज! तुम्हारी कुटियों में चुपचाप,

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हे सागर संगम अरुण नील

23 अप्रैल 2022
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हे सागर संगम अरुण नील !           अतलांत महा गम्भीर जलधि            तज कर अपनी यह नियत अवधि, लहरों के भीषण हासों में , आकर खारे उच्छवासों में           युग-युग की मधुर कामना के            बंधन क

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उस दिन जब जीवन के पथ में

23 अप्रैल 2022
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उस दिन जब जीवन के पथ में,         छिन्न पात्र ले कम्पित कर में ,         मधु-भिक्षा की रटन अधर में ,         इस अनजाने निकट नगर में ,         आ पँहुचा था एक अकिंचन . उस दिन जब जीवन के पथ में,   

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आँखों से अलख जगाने को

23 अप्रैल 2022
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आँखों से अलख जगाने को,              यह आज भैरवी आई है  उषा-सी आँखों में कितनी,              मादकता भरी ललाई है  कहता दिगन्त से मलय पवन              प्राची की लाज भरी चितवन है रात घूम आई मधुबन ,

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आह रे,वह अधीर यौवन

23 अप्रैल 2022
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आह रे, वह अधीर यौवन !          मत्त-मारुत पर चढ़ उद्भ्रांत ,           बरसने ज्यों मदिरा अश्रांत सिंधु वेला-सी घन मंडली, अखिल किरणों को ढँककर चली,           भावना के निस्सीम गगन,           बुद्ध

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तुम्हारी आँखों का बचपन

23 अप्रैल 2022
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तुम्हारी आँखों का बचपन !        खेलता था जब अल्हड़ खेल,        अजिर के उर में भरा कुलेल,         हारता था हँस-हँस कर मन,         आह रे वह व्यतीत जीवन ! तुम्हारी आँखों का बचपन !          साथ ले स

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अब जागो जीवन के प्रभात

23 अप्रैल 2022
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अब जागो जीवन के प्रभात !            वसुधा पर ओस बने बिखरे            हिमकन आँसू जो क्षोभ भरे            उषा बटोरती अरुण गात ! अब जागो जीवन के प्रभात !            तम नयनों की ताराएँ सब           

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कोमल कुसुमों की मधुर रात

23 अप्रैल 2022
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कोमल कुसुमों की मधुर रात !           शशि - शतदल का यह सुख विकास,           जिसमें निर्मल हो रहा हास,           उसकी सांसो का मलय वात  ! कोमल कुसुमों की मधुर रात !           वह लाज भरी कलियाँ अनंत

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कितने दिन जीवन जल-निधि में

23 अप्रैल 2022
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कितने दिन जीवन जल-निधि में  विकल अनिल से प्रेरित होकर    लहरी, कूल चूमने चल कर     उठती गिरती सी रुक-रुक कर      सृजन करेगी छवि गति-विधि में ! कितनी मधु- संगीत- निनादित    गाथाएँ निज ले चिर-संचि

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मेरी आँखों की पुतली में

23 अप्रैल 2022
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मेरी आँखों की पुतली में        तू बन कर प्रान समां जा रे ! जिससे कण कण में स्पंदन हों, मन में मलायानिल चंदन हों, करुणा का नव अभिनन्दन हों- वह जीवन गीत सुना जा रे  !         खिंच जाय अधर पर वह रे

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जग की सजल कालिमा रजनी

25 अप्रैल 2022
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जग की सजल कालिमा रजनी में मुखचन्द्र दिखा जाओ  ह्रदय अँधेरी झोली इनमे ज्योति भीख देने आओ  प्राणों की व्याकुल पुकार पर एक मींड़ ठहरा जाओ  प्रेम वेणु की स्वर- लहरी में जीवन - गीत सुना जाओ  स्नेहालि

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वसुधा के अंचल पर

25 अप्रैल 2022
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वसुधा के अंचल पर यह क्या कन- कन सा गया बिखर ? जल-शिशु की चंचल क्रीड़ा- सा  जैसे सरसिज डाल पर         लालसा निराशा में ढलमल        वेदना और सुख में विह्वल        यह या है रे मानव जीवन?        कि

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अपलक जगती हो एक रात

25 अप्रैल 2022
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अपलक जगती हो एक रात!       सब सोये हों इस भूतल में,       अपनी निरीहता संबल में,              चलती हों कोई भी न बात!       पथ सोये हों हरयाली में,       हों सुमन सो रहे डाली में,              हो

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जगती की मंगलमयी उषा बन

25 अप्रैल 2022
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जगती की मंगलमयी उषा बन,                करुणा उस दिन आई थी, जिसके नव गैरिक अंचल की प्राची में भरी ललाई थी .                भय- संकुल रजनी बीत गई,                भव की व्याकुलता दूर गई, घन-तिमिर-भा

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चिर तृषित कंठ से तृप्त-विधुर

25 अप्रैल 2022
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चिर संचित कंठ से तृप्त-विधुर वह कौन अकिंचन अति आतुर अत्यंत तिरस्कृत अर्थ सदृश ध्वनि कम्पित करता बार-बार, धीरे से वह उठता पुकार मुझको न मिला रे कभी प्यार.            सागर लहरों सा आलिंगन        

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काली आँखों का अंधकार

25 अप्रैल 2022
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  काली आँखों का अंधकार      जब हो जाता है वार पार,      मद पिए अचेतन कलाकार      उन्मीलित करता क्षितित पार                वह चित्र ! रंग का ले बहार                जिसमे है केवल प्यार प्यार!     

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अरे कहीं देखा है तुमने

25 अप्रैल 2022
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      अरे कहीं देखा है तुमने       मुझे प्यार करने वाले को?       मेरी आँखों में आकर फिर       आँसू बन ढरने वाले को?                सूने नभ में आग जलाकर                यह सुवर्ण-सा ह्रदय गला कर

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शशि-सी वह सुन्दर रूप विभा

25 अप्रैल 2022
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शशि सी वह सुंदर रूप विभा                छाहे न मुझे दिखलाना. उसकी निर्मल शीतल छाया                हिमकन को बिखरा जाना. संसार स्वप्न बनकर दिन-सा                 आया है नहीं जगाने, मेरे जीवन के सु

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अरे!आ गई है भूली-सी

25 अप्रैल 2022
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अरे! आ गई है भूली- सी यह मधु ऋतु दो दिन को, छोटी सी कुटिया मैं रच दू, नयी व्यथा-साथिन को! वसुधा नीचे ऊपर नभ हो, नीड़ अलग सबसे हो, झारखण्ड के चिर पतझड में भागो सूखे तिनको! आशा से अंकुर झूलेंगे

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निधरक तूने ठुकराया तब

25 अप्रैल 2022
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निधरक तूने ठुकराया तब          मेरी टूटी मधु प्याली को, उसके सूखे अधर मांगते          तेरे चरणों की लाली को. जीवन-रस के बचे हुए कन,          बिखरे अमर में आँसू बन, वही दे रहा था सावन घन        

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ओ री मानस की गहराई

25 अप्रैल 2022
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ओ री मानस की गहराइ! तू सुप्त , शांत कितनी शीतल निर्वात मेघ ज्यों पूरित जल          नव मुकुर नीलमणि फलक अमल,          ओ परदर्शिका! चिर चन्चल          यह विश्व बना है परछाई! तेरा विषद द्रव तरल-तरल

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मधुर माधवी संध्या में

25 अप्रैल 2022
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मधुर माधवी संध्या मे जब रागारुण रवि होता अस्त, विरल मृदल दलवाली डालों में उलझा समीर जब व्यस्त, प्यार भरे श्मालम अम्बर में जब कोकिल की कूक अधीर नृत्य शिथिल बिछली पड़ती है वहन कर रहा है उसे समीर तब

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अंतरिक्ष में अभी सो रही है

25 अप्रैल 2022
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अंतरिक्ष में अभी सो रही है उषा मधुबाला, अरे खुली भी अभी नहीं तो प्राची की मधुशाला.        सोता तारक-किरन-पुलक रोमावली मलयज वात,        लेते अंगराई नीड़ों में अलस विहंग मृदु गात, रजनि रानी की बिखरी

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शेरसिंह का शस्त्र समर्पण

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"ले लो यह शस्त्र है गौरव ग्रहण करने का रहा कर मैं अब तो ना लेश मात्र . लाल सिंह ! जीवित कलुष पंचनद का देख दिये देता है सिहों का समूह नख-दंत आज अपना" "अरी, रण - रंगिनी ! कपिशा हुई थी लाल तेरा

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पेशोला की प्रतिध्वनि

25 अप्रैल 2022
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     १. अरुण करुण बिम्ब ! वह निर्धूम भस्म रहित ज्वलन पिंड! विकल विवर्तनों से विरल प्रवर्तनों में श्रमित नमित सा पश्चिम के व्योम में है आज निरवलम्ब सा . आहुतियाँ विश्व की अजस्र से लुटाता रहा सत

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