नई दिल्ली : 27 सितंबर 1925 को विजयादशमी के दिन जब हेडगेवार ने संघ की स्थापना की तब उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती हिन्दुत्वतले लोगों को खड़े करना था। संघ अपने इस एजेंडे पर कितना कामयाब हो पाया इसकी झलक भी संघ की 91वे स्थापना दिवस पर दिखी जब बीजेपी शासित राज्य गुजरात के अहमदाबाद, ककोल और सुरेंद्र नगर में लगभग 2 हजार दलितों ने बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया।
बौद्ध धर्म स्वीकार करने वाले कई दलितों का कहना है कि वह जातिप्रथा से मुक्ति चाहते हैं। उनका मानना है कि बौद्ध धर्म में सभी एक सामान माने जाते हैं। इन दलितों का गुस्सा पिछले कुछ समय से गुजरात में दलितों के साथ हुई हिंसक घटनाओं के बाद भी बढ़ा है। बौद्ध धर्म ग्रहण करने वालों में बड़ी संख्या में कॉलेज में पढ़ने वाले छात्र भी हैं, इनका मानना है कि अब वह हिन्दू से बौद्ध हो गए और अब उन्हें उम्मीद है कि उन्हें जाति प्रथा से मुक्ति मिल जाएगी।
संघ की स्थापना पर दलितों का हुजूम उमड़ता था
पूर्वी नागपुर के रेशमबाग मैदान में जब 1925 को हेडगेवार ने संघ की स्थापना की तब देश और दुनिया के कोने-कोने से दलित दीक्षा लेने के लिए आये थे और इसी मैदान ने आंबेडकर ने 1956 में हिन्दू धर्म त्यागकर बौद्ध धर्म स्वीकार किया था। तब से नागपुर में कई दलित विजयदशमी के दिन बौद्ध धर्म अपनाते हैं और वह सिलसिला अब तक चला आ रहा है। हालाँकि संघ प्रमुख मोहन भगवत ने विजयदशमी पर अपने भाषण में कहा कि छुआछूत अभी भी जारी है और संघ उन्हें ठीक करने के उपाय करेगा। आंध्र प्रदेश, उत्तर कर्नाटक और दक्षिण तमिलनाडु इस पर काम भी चल रहा है।