आज उठी फिर अन्तर्मन में, भूली बिसरी सी ज्वाला ।
फिर से इस ह्रदय पटल पर, उन मेघों ने डाका डाला !!
विमुख हो चुका था जिनसे मैं, भूल गया था जिनके दॉव ।
आज अचानक हेर घेर कर, हाय दे गये कितने घाव ।।
यौवन की थीं कुछ यादें, और कुछ यादें थी तरूणाई की ।
कुछ उसके अधरों की थीं, और कुछ उसकी अगणाई की ।।
उस यौना का अधर मिलन, और उस तरूणी का मधुर मिलन,
फिर समाज का विकट रूप, जिसका है प्रेम में सदा चलन ।।
फिर भी डट कर खड़ा रहा था, चले तीर, बरछी, भाला ।
छन्नी छन्नी हुआ ह्रदय, पाने को अपनी मधुशाला ।।
फिर भी जीत न पाया मैं बिंध, गई कहीं वरमाला में ।
वर्षो तक डूबा उतराया, मैं गम के इस प्याला में ।।