स्वप्नों में रहता हूॅ, भावों में बहता हूॅ।
अपने मन की सुनता हूॅ, अपने मन की कहता हॅ।।
नीर छीर विवेक की, अति विशिष्ट छवि हूॅ ।।
हॉ मै कवि हूॅ..............
प्रकृति के छोरों को, बॉध बॉध धागों में।
एक एक शब्द बॉट, सहस्त्रो भागों में ।।
मेघों को चीर कर, निकलता हुआ रवि हूॅ।।
हॉ हॉ मै कवि हूॅ.........
ह्रदय के छालों से, रूपसि के बालों से,
दुखियों की भूख से, पीड़ा के जालों से,
कवितायें रचता हूॅ,
साहित्य का अवि हूॅ ।।
हॉ हॉ मै कवि हूॅ.........
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