जिंदगी कुछ और सस्ती
हो गई।
शहर में इन कातिलों की,
जबसे बस्ती हो गई।
दूध जिनको था पिलाया,
अब वही हमको डसेंगें ।
अब तो सत्ता जालिमों की,
ही गिरिस्ती हो गई।।
14 अक्टूबर 2015
जिंदगी कुछ और सस्ती
हो गई।
शहर में इन कातिलों की,
जबसे बस्ती हो गई।
दूध जिनको था पिलाया,
अब वही हमको डसेंगें ।
अब तो सत्ता जालिमों की,
ही गिरिस्ती हो गई।।
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मै सुशील कुमार रावत "शील" साधारण व्यक्ति हूँ , मैं कुछ थोड़ी बहुत तुकबंदी कर लेता हूँ , मेरी तरह मेरी कावताएं भी सरल और साधारण हैं , D
ज़िंदगी सस्ती क्या, माटी के मोल हो गयी है... देश-दुनिया के मौजूदा हालात पर सटीक लिखा है !
14 अक्टूबर 2015