ओ निष्ठुर परिवर्तन तू ,
मत आना मेरी गलियों में,
तेरे डर से हलचन है ,
मेरी बगिया की कलियों में ।
जिनके दिल का रश पीने काे,
बैठे हैं भंवरी सारे,
उनकी खुशियों के पराग कण,
सिमट गये हैं नलियों में ।।
ओ निष्ठुर परिवर्तन ………
मत आना तू तेरे डर से,
पुष्पों में अकुलाहट है,
प्रात: ही तोडे जायेंगें,
सबके मन में आहट है ।
कुछ का भाग्य रहा तो सायद,
पहुॅच जॉयं वो देवालय,
बाकी कुचले जायेगें ,
बस लोगों की रंगरलियों में ।।
ओ निष्ठुर परिर्वन..................
दुबक गये हैं तेरे डर से,
खर पतवारों के पौधे,
आज अंकुरित हुए मगर,
कल कहीं पडें होंगें औंधे।
माली के मन की बातों को,
समझ गये हैं ये नवजात,
एक एक को काट काट भर,
फेकेगा जो डलियों में ।।
ओ निष्ठुर परिवर्तन तू,
मत आना मेरी गलियों में,
तेरे डर से हलचल है,
मेरी बगिया की कलियों में ।।
..............................................................