नई दिल्ली : एयरटेल के मालिक सुनील भारती मित्तल यूँ तो कभी जेल नही गए लेकिन टेलिकॉम मामलों में कोर्ट कचहरी के चक्कर काटते काटते जब उनकी नज़र सैकड़ों गरीब कैदियों पर पडी तो उनका दिल पिघल गया. भारती कहते हैं कि जब उन्हें ये मालूम हुआ कि हज़ारों विचाराधीन कैदी छोटे छोटे मुकदमो में वर्षों से जेल में बन्द है तो उन्होंने न्याय भारती संस्था की स्थापना की. ये संस्था दिल्ली और पंजाब के आसपास गरीब कैदियों की मुफ्त में ज़मानत कराती है.
कोई भी गरीब कैदी अगर हत्या या बलात्कार जैसे संगीन मामलों को छोड़कर , किसी अन्य मुकदमो में जेल में कैद हैं तो उनका परिवार इस ईमेल पर nyaya.bharti@bhartifoundation.org भारती फाउंडेशन से संपर्क साध सकता है. भर्ती मित्तल हर साल अपने वेतन से पांच करोड़ इस संस्था को देते हैं जबकि एयरटेल भी पांच करोड़ की धनराशि इस फण्ड में देती है. मित्तल के मुताबिक दस करोड़ से रूपए फिलहाल न्याय भारती को अप्रैल 2016 से शुरू किया गया है.न्याय भारती के बोर्ड के प्रमुख देश के पूर्व मुख्य न्यायधीश जस्टिस ए एस आनंद हैं.
देश के 1400 जेल में तकरीबन 3 लाख विचाराधीन बंदी न्याय का इंतज़ार कर रहे हैं. इसमें ज्यादातर ऐसे कैदी हैं जो बेहद मामूली मुकदमो में कैद हैं. लेकिन पैसों की कमी की वजह से ऐसे बन्दी अपनी ज़मानत नही करवा पा रहे हैं. भारती मित्तल की इस कोशिश से उन गरोबों को नया जीवन मिल सकता है जो निरीह होने के कारण न्याय से दूर हैं. सूत्रों के मुताबिक हाई कोर्ट में एक मुक़दमे की पैरवी में जहाँ 5 लाख आसानी से खर्च हो जाते हैं वहीँ दिल्ली जैसे शहर में छोटे अपराध के मामलों में भी 15 - 20 हज़ार रूपए ज़मानत में ख़र्च होते हैं. महंगी न्याय व्यवस्था के कारण गरीब आदमी इस देश में अगर मुकदमो में उलझता है तो आर्थिक रूप से कंगाल हो जाता है. सवाल ये है कि न्याय भारती की तरह अब कितने कॉरपोरेट गरीब कैदियों की मदद के लिए आगे आते हैं