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यह मेरा देश नही है ?

murshid ansari

4 अध्याय
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‘कौन आजाद हुआ, किसके माथे से गुलामी की सियाही छुटी, मेरे सीने में दर्द है अभी महकूमी का मादरे हिंद के चेहरे पे उदासी है अभी।’ आजादी के 70 साल बाद भी यह सवाल ज्यों का त्यों हैं। रत्नगर्भा झारखण्ड की धरती पर हजारों वर्षों से कई जातियों के लोग रह रहे हैं। जिन्हें आज राजनीति ने बांट कर रख दिया। उनमें से कुछ की माली हालत तो आदिवासियों से भी बदतर है। पर उनका हाल जानना भी लोग जरूरी नहीं समझते। हक अधिकार तो जाने दीजिए। ब्रेख्त ने कहा है - ‘लेखन के जरीये लड़ो’। यह उपन्यास उन्हीं वंचित लोगों को आवाज देने की कोशिश है। यह ना तो देश के खिलाफ है, ना ही किसी जाति समुदाय के खिलाफ। फिर भी जाने अनजाने कुछ कष्टदायक बातें लिख गया हूँ तो क्षमाप्रार्थी हूँ।- मुर्शिद आलम अंसारी  

yah mera desh nahi hai

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पुस्तक के भाग

1

हमारी जमीन

6 अगस्त 2022
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भाग -एक पिछली दोनों टांगों में सुतली का फंदा लगाया और कस दिया... फिर घसीटते हुए ले चला चैना... उसे जो रात किसी गाड़ी के नीचे आकर चिपटा हो गया था। अभी बाजारटांड़ पहुचा ही था कि सड़क के दोनों ओर पुलिस की

2

अस्थि युद्ध

6 अगस्त 2022
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 वैशाख का महीना है।  सूरज बांस भर उपर उठते ही आग बरसाने लगता है। लेकिन नापीदल के पहुंचने से पहले ही ग्रामिणों की भीड़ बाजारटांड़ में हाजिर है। कानाफुसियों की कानफोड़ू भिन-भिनाहट से उनकी बेचैनी का पता चल

3

एक पुतले की मौत

7 अगस्त 2022
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गोली- धांय, धांय, धांय...!  धूल धुँआ और दहशत!  भगदड़!  जो जिधर नहीं चाहता था, उधर भाग रहा है। चिखते-चिल्लाते... अपनों को पुकारते लोग! पशुओं की तरह भागते मनुष्य!  पदचापों का शोर... उठता गुब्बार! 

4

अनावरण

8 अगस्त 2022
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 जिस दिन अनावरण होने वाला था-बाजार का दिन था। मुझे लगता है। बाजार का दिन जानबुझ कर रखा गया था। क्योंकि उस दिन भीड़ होती है और आप तो जानते ही हैं कि हर राजनीतिक अनुष्ठान की पूर्णता के लिए भीड़ एक आवश्यक

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