सरकार और सेलिब्रिटी टाइप लोग कह रहे हैं की "योग का कोई मजहब नहीं होता"...इसी प्रकार ये अक्सर कहते हैं की "आतंक का मजहब नहीं होता"...पूरी दुनिया जानती है की दोनों बाते "सफ़ेद झूठ" हैं..आतंकवाद पर बात नहीं करना चाहता क्योंकि पूरा विश्व देख रहा है मगर योग का मजहब है और वो कौन सा मजहब है उसके कुछ साक्ष्य
योग भारतीय संस्कृति की एक महत्वपूर्ण वीध्या है. योग से हमारा सर्वांगीण, शरीरिक, मानसिक, बौद्धिक, व्यवहारिक विकास होता है. योग जीवन जीने की कला है, जिसे सीखकर व्यक्ति स्वस्थ रहता है, जीवन में सफल होता है. जीवन दिव्य बनाता है और अपना भाग्य बदलने में सक्षम होता है. योग सर्वांगीण विकास करने वाली कला ह
उसका नाम है रामदीन. वह भी ''योगासन'' करना चाहता है पर अभी वह ''भूख-आसन'' का शिकार है. उसे देख कर यह कविता बनी -भूखे को रोटी भी दे दो,फिर सिखलाना योग .बड़ा रोग है एक गरीबी, चलो भगाएं रोग.खा-पीकर कुछ अघा गए हैं, अब सेहत की चिंता जो भूखे हैं उन लोगो को कौन यहां पर गिनता। पहले महंगाई से निबटो, भ्रष्टाचा
दस साल तक बिल्कुल मासूमफिर भी पहले वर्ष से ही बस्ते में गुमबीस साल तक पढ़ाई,बाद बीस के पढ़ाई को पूर्णविरामऔर सुरक्षित भविष्य को जद्दोजहद 25 वर्ष तक शादी की आसकालसैंटरों ने किया लेकिन बहुत बुरा हालतीस वर्ष तक जब-तब काम की तलाशइंजीनियरिंग के बाद भी अर्धबेकारऑनरोड़ कनौपी लगाने की थमें न तलाशचालीस वर्ष