लखनऊ : सादगी और साधारण जीवन गुजर बसर करने वाले गोरखपुर से पांचवीं बार चुने गए सांसद योगी आदित्यनाथ यूपी के सीएम बनने के बाद भी नहीं बदले हैं। जनता की समस्या सुननी हो या उन पर किसी तरह का बोझ, वह आये हुए आगंतुकों को ऐसा सम्मान देते हैं कि किसी को इस बात का अहसास तक नहीं होता कि वह जिससे मिलने आये हैं,वे उनके बीच का एक साधारण इन्सान नहीं बल्कि सूबे के मुख्यमंत्री हैं। दरअसल कल तक मुख्यमंत्री दरबार में आने वाली जिस जनता को जमीन पर बैठने की जगह दी जाती थी, उसे अब कुर्सी पर बैठाया जाता है। उनकी समस्याएं स्वयं खड़े होकर मुख्यमंत्री योगी सुनते हैं। जनता के हितैषी बनने का नगाड़ा पीटने वाले पूर्व सीएम अखिलेश यादव जनता के कितने बड़े हितैषी थे, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है।
प्रदेश की जनता का दुःख दर्द सुनने और निराकरण करने के लिये प्रायः मुख्य मंत्री आवास पर जनता दरबार का आयोजन किया जाता है। दरबार मे फरियादी अपनी फरियाद लेकर आता है और सामान्यतः मुख्यमंन्त्री उसकी फरियाद सुनने के बाद तत्काल या एक नियत समय पर,जैसी स्थिति हो,उसके अनुसार उसका निस्तारण कराते है।
जनता दरबार की व्यवस्था मुख्यमंन्त्री आवास पर उपलब्ध अधिकारियों की देखरेख में आयोजित होती है।सुरक्षा की औपचारिकता पूरी होने के बाद दूर दराज़ से आये हुए नागरिको को मुख्यमंन्त्री आवास के भीतर निर्धारित स्थान पर कुर्सियो पर बैठाया जाता है।
मुख्यमंत्री स्वंम आकर एक एक व्यक्ति से उसकी बात सुनकर 'डे ऑफिसर' के रूप में लगे अधिकारियों को उसके प्रार्थना पत्र देकर नियत तिथि तक उसका काम करने या परीक्षण कर यथोचित कार्यवाही के आदेश देता है।आपातकालीन स्थिति में फरियाद पर तुरन्त मुख्यमंन्त्री आवास कार्यालय से ही काम कर दिया जाता है।आर्थिक सहायता के मामले तुरन्त निबटाये जाते है।
अखिलेश यादव मुख्य मंत्री के रूप में अपने को भगवान समझ कर कुर्सी पर बैठ जाते थे जबकि फरियादी जमीन पर बैठते थे। वर्तमान मुख्यमंन्त्री की कार्य प्रणाली इसके विपरीत है।मुख्यमंन्त्री योगी आदित्य नाथ ने पहले दिन से ही फरियादी को भगवान का दर्जा दिया है,योगी कुर्सियो पर बैठे फरियादी के पास स्वंम जाकर एक एक से उनका हाल पूछते है। योगी फरियादियो के प्रति काम करने की भावना रखते है न कि मुख्य मंत्री के रूप में अपने को भगवान समझते है।
संस्कारो का अन्तर यही देखने को मिलता है कि एक 'योगी' घर परिवार त्याग कर देश प्रेम पर निकला है तो दूसरा 'ढोगी' बाप को धोखा देकर सत्ता की लोलुपता का शिकार है।
योगी का परिवार योगी के साथ न रहते हुए भी खुश है जबकि दूसरी ओर मुलायम सिंह अपने पुत्र से इतना दुखी है कि स्वंम यह कहते घूम रहे है कि जो अपने बाप का नही हो सका वह किसी और का क्या होगा।