नई दिल्लीः यूपी विधानसभा चुनाव नजदीक आते ही सबसे ज्यादा दलबदलू नेता किस पार्टी में गए...। जवाब-भाजपा में। सत्ताधारी सपा हो या संख्या बल के लिहाज से दूसरे नंबर की बसपा या फिर केंद्र की मुख्य प्रतिद्वंदी कांग्रेस। भाजपा ने किसी पार्टी को नहीं बख्शा। सभी पार्टियों के जातीय व क्षेत्रीय क्षत्रपों को तोड़ा ही कई विधायकों को भी पार्टी के पाले में कर लिया। जिस तरह से पिछले एक महीने से दलबदलुओं की भाजपा में आने की लाइन लगी है उससे लग रहा है कि मानो पार्टी ने खुला ऑफर दे दिया है कि....चले जाओ... जिसे भी आना हो..। दलबदलुओं को इस कदर तरजीह मिलने से पार्टी के अंदरखाने कुछ सिद्धांतवादी नेता निराश हैं। वे पार्टी के प्रणेता दीनदयाल उपाध्याय के विचार का हवाला देकर पार्टी को सिद्धांतों से भटक जाने की बात कह रहे हैं। उनका कहना है कि पार्टी जिन दीनदयाल को गुरु मानती है उन्होंने दलबदल को राजनीति के चरित्र के लिए हमेशा अपराध माना। सवाल उठता है तो फिर क्या मजबूरी है जो भाजपा अपने ही प्रणेता के विचारों को नजरअंदाज कर दलबदल को यूं बढ़ावा दे रही है। आइए हम बताते हैं इसके पीछे क्या है शाह की चाणक्य नीति
दलबदल पर दीनदयाल उपाध्याय की राय
जनतंत्र में एक से अधिक दल तो होंगे ही, किंतु इन दलों को एक आचार-संहिता या पंचशील का पालन करना चाहिए। दल-बदल को प्रोत्साहन नहीं देना चाहिए। तभी देश में स्थिर शासन आएगा और अनुत्तरदायी राजनीति नहीं चलेगी।' — पं. दीनदयाल उपाध्याय
जनता में भाजपा का लहर दिखाने की कोशिश
अमित शाह का मानना है कि सपा-बसपा अपने जीत के दावे खूब कर रहीं हैं। इनके नेताओं को तोड़कर ही जनता को संदेश दिया जा सकता है कि भाजपा ही नहीं विरोधी दलों के नेता भी आगामी चुनाव में बीजेपी में भविष्य व संभावना देख रहे हैं। नेताओं को तोड़कर अपने खेमे में लाने से जनता में भाजपा की लहर दिखेगी। जिससे मतदाताओं के एक बडे़ तबके को प्रभावित किया जा सकता है। यह वह तबका है जो चुनाव में किसी पार्टी की हवा देखकर उसी के पक्ष में बह जाता है।
विरोधी दलों पर मनोवै ज्ञान िक दबाव कायम करना
यूपी चुनाव जीतने के लिए अमित शाह की दूसरी बड़ी चाणक्य नीति विरोधी दलों को हतोत्साहित करना है। यह काम विरोधी दलों के उन क्षत्रपों को तोड़कर ही किया जा सकता है, जो कि जाति विशेष के चेहरे के रूप में जाने जाते हैं। सियासी गलियारे में माना जा रहा है कि बसपा के नेता प्रतिपक्ष रहे स्वामी प्रसाद मौर्य, दलित नेता जुगल किशोर और ब्राह्मण चेहरे ब्रजेश पाठक को इसी मंशा से तोड़कर भाजपा ने बसपा को चुनाव से पहले कमजोर करने का काम किया है। यूपी में महज 28 विधायकों वाली कांग्रेस से भी बस्ती के विधायक संजय जायसवाल को भाजपा ने अपने पाले में लाने में सफलता हासिल की। इसी तरह बसपा के लखीमपुर खीरी से विधायक बाला प्रसाद अवस्थी व सपा के अंबेडकरनगर शेरबहादुर को भी अमित शाह ने भाजपा की सदस्यता दिला दी।
कौन किस पार्टी से आया
नेता पूर्व पार्टी
स्वामी प्रसाद मौर्य बसपा
जुगल किशोर बसपा
ब्रजेश पाठक बसपा
राजेश त्रिपाठी बसपा
शेर बहादुर: सपा से आए
संजय जायसवाल कांग्रेस विधायक बस्ती
विजय कुमार दुबे: कांग्रेस के कुशीनगर विधायक
माधुरी वर्मा बहराइच में कांग्रेस विधायक
विधायक बाला प्रसाद अवस्थी बसपा
शेरबहादुर सपा विधायक