नई दिल्ली ; यूपी में होने जा रहीं 40 हजार सफाईकर्मियों की भर्ती में स्वर्ण जाति में ब्राह्मण सबसे आगे हैं. यही नहीं सालों बाद सरकार ने खोली इन भर्तियों के जरिये सरकारी नौकरी पाने के लिए समाज की ब्राह्मण जाति के लोगों ने धानुक और बाल्मीकि जातियों को भी पीछे छोड़ दिया है. जिसके चलते बेरोजगारी के डोर से गुजर रहे दलित समाज के लोगों ने इसका विरोध यह कहकर शुरू कर दिया है कि यह काम उनका है. लेकिन पढ़े लिखे लोगों ने इस नौकरी को हथियाने के लिए अपने आवेदन देकर उनकी ख़ुशी को फिर से छीनने कि कोशिश कर रहे हैं. इसको लेकर दलित जातियों में रोष व्यक्त है.
सफाईकर्मी बनने को तैयार हुए ब्राह्मण
दरअसल दलितों की नाराजगी की सबसे बड़ी वजह यह बताई जाती है कि सरकार की इस भर्ती प्रक्रिया में ब्राह्मण, बनिया, कायस्थ समेत कई अन्य उच्च जातियों के पढ़े लिखे लोग अब सफाईकर्मी की नौकरी के चक्कर में बाल्मीकि और धानुक बनने को तैयार हो गए हैं. इतना ही नहीं बेरोजगारी इस कदर परवान चढ़ी हुई है कि एमएससी,बीएससी, एमटेक जैसी योग्यता रखने वाले भी सपा सरकार द्वारा दिए गए नौकरी के इस मौके को अपने हाथ से गंवाना नहीं चाहते. जिसके चलते दलित समाज की कई जातियों के लोगों ने इसका विरोध शुरू कर दिया है. बताया जाता है कि इन विरोध कर रही दलित समाज कि जातियों में धानुक और बाल्मीकि समाज के लोग प्रमुख हैं.
ब्राह्मण भर्ती होने के बाद काम दलितों से ही करवाते हैं
इन जाति के लोगों की मानें तो उनका आरोप है कि नौकरी के समय तो समाज के उच्च वर्ग के लोग सफाईकर्मी की नौकरी के लिए आवेदन कर उनका हक छीनकर नौकरियां हथिया लेते हैं, लेकिन जब सफाई की बारी आती है तो वह उनकी जातियों के बेरोजगार युवकों को अपने स्थान पर ड्यूटी करने के लिए प्रतिमाह 1 हजार रुपये पर नगर निगम के बीट इंचार्ज से सेटिंग करके उन्हें तैनात कर देते हैं. जिसके चलते उनके समाज के लोग नौकरी से वंचित रह जाते हैं. बताया जाता है कि पूर्व में बसपा कि सरकार जब यूपी में थी और स्वंय मायावती मुख्यमंत्री थीं. तब सफाईकर्मियों कि कमी को देखते हुए सूबे की जिला पंचायतों में भी संविदा पर सफाईकर्मियों की भर्ती की गयी थी. इस भर्ती के दौरान भी स्वर्ण जाति की महिलाएं और पुरुषों ने आवेदन किया था.
बसपा के कार्यकाल में हुआ था ऐसा ही
यही नहीं दलितों का हक मारकर नौकरी उनसे हथिया ली थी. इसके बाद जब गांवों में नित्यदिन सफाई की बारी आयी तो इन जातियों की महिलाओं व पुरुषों ने अपने स्थान पर ड्यूटी के लिए बेरोजगार बाल्मीकि और धानुक समाज के लोगों को लगाकर उनका महीना तय कर दिया था, जिसमें पंचायत विभाग के अधिकारी भी शामिल थे, जो भी हर माह इन सफाईकर्मियों से प्रति महीने काम न करने के एवज में माल ऐंठते थे. फिलहाल इन जातियों के लोगों का कहना है कि यह उनका काम है. इसलिए इस नौकरी पर सिर्फ उनका हक होना चाहिए और सरकार को उच्च जाति के लोगों कि भर्ती प्रक्रिया पर रोक लगनी चाहिए. जिससे जिसको नौकरी मिले वह खुद अपनी ड्यूटी कर सके. आपको बता दें कि सूबे के नगर निगमों. नगर पालिकाओं और परिषदों में लंबे समय से सफाईकर्मियों के हजारों पद खली पड़े हैं. जिसकी वजह से यूपी कि राजधानी सहित अन्य जिलों कि सफाई व्यवस्था चौपट है. इसी को ध्यान में रखते हुए अखिलेश सरकार ने पूर्व में 35 ,774 पदों पर पूर्व में भर्ती प्रक्रिया खोली थी, मगर बाद में इसे निरस्त कर 40 हजार सफाई कर्मियों की संविदा पर भर्ती किये जाने का निर्णय लिया है.