नई दिल्लीः समाजवादी पार्टी में बाप-बेटे और चाचा की लड़ाई में जिस तरह से अखिलेश की लोकप्रियता देख कई नेता थाली के बैगन की तरफ उनकी तरफ लुढ़क चले हैं, उसमें यूपी की सियासत के मुगलेआजम कहे जाने वाले आजम खान भी शुमार हैं। यह वही आजम खान हैं जो सदन से लेकर सड़क तक हमेशा मुलायम संग जीने-मरने की कसमें खाते रहे हैं। मुलायम के सहारे ही यूपी की सियासत में शबाब पर पहुंचने में सफल रहे। मगर रविवार को हुए सुपर सियासी ड्रामे में मुगलेआजम का रुख मुलायम खेमे की बजाए अखिलेश की तरफ ही रहा। पार्टी में ही सवाल उठ रहा है कि क्या सियासत के यह मुगलेआजम भी आम नेताओं की तरह थाली का बैगन साबित होंगे। कहा जा रहा है कि जिस तरह से विधानमंडल दल की बैठक में अखिलेश ने आजम के धुर
विरोधी अमर सिंह पर भड़ास निकालते हुए कलह का कारण बताया, उससे आजम के कलेजे को खासी ठंडक पहुंची। इस वजह से अखिलेश के पक्ष में खुद को ज्यादा मुफीद पा रहे। जबकि उके विरोध के बाद भी मुलायम ने अमर को पार्टी में शामिल कराया था।
मुलायम से गद्दारी करेंगे या आखिरी दम तक नमक का कर्ज अदा करेंगे
आजम खान के कदम पर पार्टी व पार्टी के बाहर के लोगों की भी निगाह टिक गई है। वह यह कि क्या अपने राजनीति क साथी व गुरु मुलायम सिंह यादव से गद्दारी कर आजम खान उन रामगोपाल के खेमे का हिस्सा बन जाएंगे, जिन रामगोपाल से दिल्ली की राजनीति को लेकर उनकी कभी नहीं पटी। या फिर जिस तरह से चुनावी रैलियों में दावे करते दिखते हैं उसके मुताबिक वह
आखिरी दम तक मुलायम के प्रति वफादारी का कर्ज अदा करेंगे।
बेटे को सेट करने के लिए उगते सूरज को सलाम करने की मजबूरी
आजम खान अपने बेटे को राजनीति में स्थापित करने के लिए काफी उतावले हैं। वजह कि सियासी विरासत बेटे को सौंपे बगैर चैन नहीं मिलने वाला। वे अपने दूसरे बेटे अब्दुल्ला आजम को स्वार टांडा सीट से उम्मीदवार बनवा रहे हैं। अमर सिंह और आजम खान में 36 का आंकड़ा है। आजम खान शिवपाल से बेटे को टिकट न देने की सिफारिश कर रहे। ऐसी सूचना मिलने की वजह से आजम खान को लगता है कि अखिलेश ही पार्टी के उगते सूरच हैं। आने वाला वक्त अखिलेश का है। उनके साथ जुड़े रहने पर ही बेटे को सपा के बैनर तले यूपी की सियासत में स्थापित किया जा सकता है। आखिर में आजम पर एक लाइन और बात खत्मकुछ तो मजबूरियां रहीं होंगी यूं ही कोई बेवफा नहीं होता