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युद्धकादृश्य

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ज्येष्ठ मास की दोपहर थी। चिलचिलाती धूप में जमीन तवे कीतरह तप रही थी। गर्म लू के थपेड़े शरीर में एक चुभन पैदा कर रहेथे। सूरज की तपिश से पसीना भी बाहर आने से डरता था। आसमानमें परिंदों का नाम ना था। उस आग बरसाते हुए आसमान के नीचेरियासतों की पलटनों में कोहराम मचा था। हर तरफ लाशें कटे हुएपेड़ों की तरह गि

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