लोगो के पूर्व में दिए हुए प्यार, स्नेह और ऊर्जा को आधार बनाकर एक बार फिर कुछ रचनाएँ आपके हवाले कर रहा हूँ। रचनाएँ अच्छी बनी हैं या बुरी, ये तो पाठक ही तय करेंगे, मगर इतना जरूर कह सकता हूँ कि इन्हें लिखने, सुधारने और सँवारने में मैंने अपना सबकुछ झोंक
मैंने और अधिक उत्साह से बोलना शुरू किया, ‘‘भाईसाहब, मैं या मेरे जैसे इस क्षेत्र के पच्चीस-तीस हजार लोग लामचंद से प्रेम करते हैं, उनकी लालबत्ती से नहीं।’’ मेरी बात सुनकर उनके चेहरे पर एक विवशता भरी मुसकराहट आई, वे बहुत धीमे स्वर में बोले, ‘‘प्लेलना (प
Reading books is a kind of enjoyment. Reading books is a good habit. We bring you a different kinds of books. You can carry this book where ever you want. It is easy to carry. It can be an ideal gift to yourself and to your loved ones. Care instructi
परसाई हँसाने की हड़बड़ी में नहीं होते। वे पढ़नेवाले को देवता नहीं मानते, न ग्राहक, सिर्फ एक नागरिक मानते हैं, वह भी उस देश का जिसका स्वतंत्रता दिवस बारिश के मौसम में पड़ता है और गणतंत्र दिवस कड़ाके की ठंड में। परसाई की निगाह से यह बात नहीं बच सकी तो सि$र्
ज्ञान चतुर्वेदी ने परसाई, शरद जोशी, रवीन्द्रनाथ त्यागी और श्रीलाल शुक्ल की व्यंग्य-परम्परा को न केवल आगे बढ़ाया है, वरन् कई अर्थों में उसे और समृद्ध किया है। विषय-वैभिन्नय तथा भाषा और शैलीगत प्रयोगों के लिए वे हिन्दी व्यंग्य में ‘हमेशा ही कुछ नया करन
परसाई, शरद जोशी, रवीन्द्रनाथ त्यागी और श्रीलाल शुक्ल की पीढ़ी के बाद यदि हिन्दी-विश्व को कोई एक व्यंग्यकार सर्वाधिक आश्वस्त करता है तो वह ज्ञान चतुर्वेदी हैं। वे क्या ‘नया लिख रहे हैं’—इसको लेकर जितनी उत्सुकता उनके पाठकों को रहती है, उतनी ही आलोचकों
जब भारतीय क्रिकेट टीम के कुछ युवा खिलाड़ियों को मालूम चला कि मिड-लेवल एडवर्टाइज़िंग एक्जीक्यूटिव ज़ोया सिंह सोलंकी की पैदाइश ठीक उसी समय की है जिस लम्हे भारत ने 1983 में वर्ल्ड कप जीता था, तो वे हैरान हो जाते हैं। ज़ोया के साथ नाश्ता करने का सिलसिला जब उ
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हर बड़ा लेखक, अपने ‘सृजनात्मक जीवन’ में, जिन तीन सच्चाइयों से अनिवार्यतः भिड़न्त लेता है, वे हैं—‘ईश्वर’, ‘काल’ तथा ‘मृत्यु’। अलबत्ता, कहा जाना चाहिए कि इनमें भिड़े बग़ैर कोई लेखक बड़ा भी हो सकता है, इस बात में सन्देह है। कहने की ज़रूरत नहीं कि ज्ञान चत
सामयिक, सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक विसंगतियों और विडम्बनाओं पर तीखा प्रहार करते हुए व्यंग्य परम्परा को एक नई भाषा और शिल्प प्रदान करनेवाला विशिष्ट संकलन। लेखक यहाँ हमारे दैनिक जीवन और रोज़मर्रा की विडम्बनापूर्ण घटनाओं का सूक्ष्म विश्लेषण कर न सिर्फ़ ह
विख्यात व्यंग्यकार तथा उपन्यासकार ज्ञान चतुर्वेदी का यह तीसरा उपन्यास है। उनके पिछले दो उपन्यासों—‘नरक यात्रा’ और ‘बारामासी’—का हिन्दी पाठक जगत् ने तो अप्रतिम स्वागत किया ही, साथ ही विभिन्न आलोचकों तथा समीक्षकों ने इन्हें हिन्दी व्यंग्य तथा उपन्यास क
दिल्ली के आलीशान इलाके, हेली रोड के एक शानदार बंगले में जस्टिस लक्ष्मी नारायण ठाकुर और उनकी पत्नी ममता अपनी पाचं सुंदर (लेकिन आफतखोर) बेटियों के साथ रहते हैं। पांचों बेटियों का नाम उन्होंने अंग्रेजी वर्णमाला के अनुसार रखा है।अंजनी, बड़ी बेटी लेकिन फ्ल
काका हाथरसी हास्यरस के सच्चे कवि ही नहीं, काव्य-ऋषि थे। उनकी कविताओं के तीन रंग हैं-सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक। इन तीनों रंगों में काका हाथरसी ने कभी साहित्यिक शालीनता और शिष्टता की मर्यादा का उल्लंघन नहीं किया। उनका हास्य गुदगुदाता है, मन में आ
साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त साहित्यकार हरिशंकर परसाई हिंदी के सबसे समर्थ व्यंगकार हैं. पैनी दृष्टि और चुटीली भाषा उनके अचूक औज़ार हैं. जीवन, समाज और राजनीति में व्याप्त सभी बिमारियों और बुराइयों की पहचान वे किसी कुशल 'सर्जन' की तरह हैं. 'अपनी अपनी
स्वाँग कभी एक बेहद लोकप्रिय लोकनाट्य विधा रही है बुंदेलखंड की। नाटक, नौटंकी, रामलीला से थोड़ी इतर। न मंच, न परदा, न ही कोई विशेष वेशभूषा। बस अभिनय। स्वाँग का मज़ा इसके असल जैसा लगने में है। एकदम असली, गोकि वहाँ सब नकली होता है : नकली राजा, नकली सि
"विलक्षण हाजिरजवाब एंग्री यंगमैन के साथ" हमारे नौजवानी के दिनों में सुनाई पड़ता था कि हमसे पहले वाली पूरी शहराती पीढ़ी की नाल खेत में गड़ी होती है। मतलब साहित्य के इलाके में किसान पृष्ठभूमि से आए लोगों की बहार हुआ करती थी और उनके लिए कस्बा या शहर बड
चैत्र मास का अंतिम दौर चल रहा था। वसंत का यौवन चतुर्दिक बिखरी हरीतिमा के अंग-प्रत्यंगों से फूट चला था। संध्या का समय था। चंद्रमा कभी बादलों के आवरण में मुँह छिपाता और कभी स्वच्छ नीलाकाश में खुले मुँह अठखेलियाँ सी करता फिरता। मैं भोजन के उपरांत अपने अ
अपनी गंभीर पुस्तकों से भिन्न प्रवीण की रुचि व्यंग्य विधा में है। उनके व्यंग्य ‘जानकीपुल’ पर नियमित प्रकाशित होते रहे, जो समाज और राजनीति पर अक्सर असहज प्रश्नों पर होते हैं। ‘उल्टी गंगा’ उनके समस्त व्यंग्य-कथाओं का अनूठा संकलन है।
बकर पुराण हर उस बैचलर लड़के की ज़िंदगी की किताब है जो घर छोड़कर दिल्ली जैसे शहरों में पढ़ने आता है और फिर उन शहरों का हिस्सा हो जाता है । इसके पन्नों पर हर उस लड़के की कहानी है जिसने कभी प्रेम किया हो, मूर्खता की हो, चाय की दुकान पर भारत की विदेश नीत