शीतलहर चल रही है कोई गर्म एहसास नहीं है..
सर्द रातों में भी मुझे मोहब्बत की प्यास नहीं है..
दिन तो तपती खिलती धूप में गुजर जाता है.
सर्द हवाओं का घेरा ढलती शाम को आता है
रात भर जलता अलावा भी आता रास नहीं है
सर्द रातों में भी मुझे मोहब्बत की प्यास नहीं है..
कोई तो बाहों में भरकर गले लगा ले मुझे भी..
तरसती हूं कोई तो प्यार से सहला ले मुझे भी..
अकेली कपकपाती रातों में कोई पास नहीं है..
सर्द रातों में भी मुझे मोहब्बत की प्यास नहीं है..
बिखरे ऐसे कि जहां गिरे वही हम जम गए..
जैसे,, बहते आंसू जहां थे वहीं अब थम गए..
कैसे करें गिला कि अब जिस्म में सांस नहीं है
सर्द रातों में भी मुझे मोहब्बत की प्यास नहीं है..
ताल तो बजे सर्द रात में पर साज ना मिले..
थरथराते रहे लब पर कोई अल्फाज़ ना मिले..
बर्फ सी कठोर है रात कोई भी जज्बात नहीं हैं
सर्द रातों में भी मुझे मोहब्बत की प्यास नहीं है..
लौ तो बहुत जल रही है रुह के भीतर मेरे..
जलके राख हो जाऊं तू कहे तो खातिर तेरे..
पर बिन तेरे रोशन हो जाऊं वो साहस नहीं है..
सर्द रातों में भी मुझे मोहब्बत की प्यास नहीं है..
kanchan"savi"