सुबह से घर में चहल पहल थी। सभी अपने अपने कामों में व्यस्त थे। कोई दरवाजे पर गेंदे के फूलों की लड़ियाँ लगा रहा था, तो कोई हॉल के सामान को करीने से व्यवस्थित कर रहा था। हॉल से सोफा और टेबल को हटा दिया था। नीचे फर्श पर गद्दे डाल दिए थे, जिनके ऊपर चादर बिछा दिये थे। दीवार पर लगी पेंटिंग और दीवार घड़ी और बाकी सामान को अच्छे से साफ करके व्यवस्थित कर दिया था। दरवाजे, खिड़कियों के पर्दे उतार कर नये पर्दे टांग दिये थे।
एक महिला साड़ी के पल्लू से चेहरे का पसीना पोंछते हुए हॉल में प्रवेश करती है। गेहुंआ रंग, माथे पर बड़ी सी बिंदी, और टाइट गुथी कमर तक लटकती बालों की लंबी चोटी...।
ये हैं माधवी जी... विनी की मम्मी और घर की "होम मिनिस्टर"
छोटी छोटी बातों पर परेशान होने की आदत है इनकी....हर काम परफेक्ट चाहिए।
माधवी ने पूरे हॉल का अच्छे से मुआयना किया।
"अरे यह चादर सही से नहीं बिछी... और ये यहाँ क्यूँ रखी है... हे भगवान! कैसे होगा सब..."
माथे पर हाथ रखे माधवी बड़बड़ाते हुए नीचे बिछी चादरों को सही करने लगी।
माधवी की आवाज सुनकर बाहर की तरफ से खुलने वाले दूसरे दरवाजे से सिद्धार्थ जी हॉल में आते हैं।
सिद्धार्थ जी स्कूल के अध्यापक हैं। सभी उन्हें मास्टर जी कहकर ही बुलाते हैं। सामान्य कद काठी, गंभीर स्वभाव, सफेद और काले बालों की खिचड़ी के बीच में झाँकती हुई चाँद, आँखों पर चढ़ा नजर का चश्मा उनका व्यक्तित्व उनकी गंभीरता का परिचय दे रहा था।
माधवी को परेशान देखकर मास्टर जी बोले-
"अरे परेशान क्यों हो रही हो... सब ठीक से हो जाएगा... तुम एक काम करो... बैठो थोड़ा पानी पी लो... रिलेक्स..."
कहते हुए मास्टर जी ने आवाज लगाई-
"विनी बेटा एक गिलास पानी लाना..."
"विनी तैयार हो रही है..." माधवी ने आँखे तरेरते हुए कहा
मास्टर जी- "अरे हाँ हाँ...."
"अरे वैधर्वी बेटा...."
"वैधर्वी विनी को तैयार कर रही है... और दो सहेलियाँ हैं... चारों कमरे में है घंटे भर से..." माधवी चादर को सही से बिछाती हुई बोली।
मास्टर जी- "तुम फालतू परेशान हो रही हो...सब ठीक हो जाएगा..."
माधवी - "वह सब तो ठीक है... लेकिन जब लड़का लड़की को देख चुका है तो दस पन्द्रह लोगों को बुलाने की क्या जरूरत थी..."
"अरे होंगे उनके रिश्तेदार, परिवार वाले... हम मना थोड़ी कर सकते थे उनको..." मास्टर जी बोले
माधवी - "अरे जब लड़के ने विनी को पसंद कर ही लिया है तो फिर इतने लोगों को लाने की क्या जरूरत थी... आप नहीं समझते...परिवार वाले, रिश्तेदार कभी कुछ ना कुछ कमी तो निकालते ही हैं.... मुझे इसी बात की चिंता खाए जा रही है... और लोगों को बनी बनाई बात बिगाड़ने में देर नहीं लगती..."
"तुम चिंता मत करो... हमारी विनी इतनी होनहार है कि कोई भी उसमें कमी नहीं निकाल सकता है... इंग्लिश से एम.ए. किया है... और घर के कामों में भी निपुण है..."
मास्टर जी हाथ की उँगलियों को हवा में लहराते बोल रहे थे कि-
माधवी ने बीच में टोकते हुए कहा "बस...बस.... रहने दो... आपको तो बस अपनी बेटियों का बखान करने का मौका मिल जाए बस..." और तो कोई काम है नहीं..."
"दस पन्द्रह लोगों का चाय नाश्ता... खाने पीने की व्यवस्था सब देखना है... आपके लिए तो बस कहना बहुत आसान है कि सब हो जाएगा..."
मास्टर जी ने फिर चुटकी ली- "सब हो जाएगा... और दीपक, सरला हैं तो मदद के लिए... और मयंक, खुशी भी तो सुबह से ही आ गए... और तुम्हारे लाड़ले के दोस्त भी आ गए हैं... लाड़ले से याद आया कहाँ हैं साहबजादे....दिखाई नहीं दे रहे हैं...."
होगा यहीं कहीं.... मैं तो रसोई में थी... मुझे तो सचमुच बहुत चिंता हो रही है... कैसे होगा सब..."
माधवी बोली।
"अरे मम्मी.... वो कैम्फर वाला आ गया... कहाँ रखवा दूँ..." बाहर से रोहित ने आवाज लगाई।
"लो आ गया तुम्हारा लाड़ला" मास्टर जी ने मुस्कुराते हुए कहा।
"सुबह से बस एक ही काम कर पाए हैं जनाब..."
मास्टर जी ने अपनी बात जारी रखी।
लेकिन बीच में टोकते हुए हवा में हाथ लहराते हुए माधवी बोली- "तो है भी तो कितना छोटा....सिर्फ पन्द्रह साल का ही तो है... और आप तो हमेशा उसके पीछे ही पड़े रहते हैं..."
"गुस्ताखी माफ....गलती हो गई... साहबजादे के बारे में एक शब्द नहीं....माफ कर दीजिये बेगम साहिवा..." और मास्टर जी ने कहते हुए दोनों कान पकड़ लिए।
हूॅं.... कहते हुए माधवी पैर पटकती हुई रसोई की तरफ चली गयी।
मास्टर जी ने थोड़ी राहत की सांस ली। वो सोचने लगे... माधवी को तो समझा दिया....लेकिन अब सब अच्छे से निपट जाए.... कोई कमी नहीं की बच्चों की परवरिश में.... खूब पढ़ाया लिखाया... घर के काम में भी दक्ष.... और संस्कार तो जैसे गहना है विनी का.... बड़ो को अदब से बात करना.... छोटों से स्नेह... उस घर में जाते ही सब का दिल जीत लेगी.... उस घर के तो भाग्य ही खुल जाएंगे... और ये घर...
जैसे उन्हें किसी ने नींद से जगा दिया हो। चस्मा हटा कर आँखों को थोड़ा मलते हुए मास्टर जी हाॅल के बाहर आ गये।
उधर विनी के कमरे में वैधर्वी विनी की हेयरस्टाइल बना रही थी। रीना और पूर्वा सूट के मैचिंग की इयररिंग और कंगन सिलेक्ट कर रहीं थीं।
गुलाबी रंग के घेरदार सूट में छोटा छोटा गोल्डन प्रिंट हो रहा था। गुलाबी रंग विनी के गोरे रंग पर खूब खिल रहा था। और उस पर कमर तक लम्बे बाल उसकी खूबसूरती में चार चाँद लगा रहे थे।
"दीदू.... खुले बाल कितने अच्छे लग रहे हैं... कितनी सुन्दर लग रही हो... एक काम करते हैं खुले बाल में ही जाना लड़के बालों के सामने..." वैधर्वी विनी के बालों को कंघी करते हुए बोली।
"अरे नहीं नहीं वैदू....मम्मी गुस्सा करेंगी... एक काम कर कोई सिम्पल सा हेयरस्टाइल बना दे... नहीं तो सब छोड़ सागर चोटी ही कर दे..." विनी बोली
पूर्वा - हाँ... हाँ... सागर चोटी तेरे चेहरे पर अच्छी लगती है... वही कर दे वैधर्वी..."
वैधर्वी - "नहीं नहीं... मैं कुछ और ट्राई करती हूँ..."
रिया - "अरे दो तो बज गए... कब तक आएंगे लड़के बाले..."
पूर्वा - "अरे आ रहे होंगे... तू क्यूँ उतावली हो रही है...?"
"रिया दी... वो होने वाले जीजू भी तो तैयार शैयार हो रहे होंगें... मेकअप शेकअप करके हीरो बनके आएंगे... उन्हें डर लग रहा होगा कि कहीं हमारी दीदू के सामने फीके न पड़ जाएँ..." वैधर्वी हाथ और गर्दन मटकाते हुए बोली।
पूर्वा - "हाँ... हाँ... बिल्कुल सही कहा..."
और चारों हँसने लगतीं हैं।
क्रमशः