*हमारे देश भारत में आदिकाल से राजा एवं प्रजा के बीच अटूट सम्बन्ध रहा है | प्रजा पर शासन करने वाले राजाओं ने अपनी प्रजा को पुत्र के समान माना है तो अपराध करने पर उन्हें दण्डित भी किया है | हमारे शास्त्रों में लिखा है कि :- "पिता हि सर्वभूतानां राजा भवति सर्वदा" अर्थात किसी भी देश का राजा प्रजा के लिए
*इस धरती पर मानव समाज में वैसे तो अनेकों प्रकार के मनुष्य होते हैं परंतु इन सभी को यदि सूक्ष्मता से देखा जाय तो प्रमुखता दो प्रकार के व्यक्ति पाए जाते हैं | एक तो वह होते हैं जो समाज की चिंता करते हुए समाज को विकासशील बनाने के लिए निरंतर प्रगतिशील रहते हैं जिन्हें सभ्य समाज का प्राणी कहा जाता है ,
*प्राचीनकाल से ही भारत देश आपसी सौहार्द्र , प्रेम एवं भाईचारे का उदाहरण समस्त विश्व के समक्ष प्रस्तुत करता रहा है | वैदिककाल में मनुष्य आपस में तो सौहार्द्र पूर्वक रहता ही था अपितु इससे भी आगे बढ़कर वैदिककाल के महामानवों ने पशु - पक्षियों के प्रति भी अपना प्रेम प्रकट करके उनसे भी सम्बन्ध स्थापित करन
*मानव जीवन में अनेकों प्रकार के क्रियाकलाप मनुष्य द्वारा किए जाते हैं | संपूर्ण जीवन काल में मनुष्य भय एवं भ्रम से भी दो-चार होता रहता है | मानव जीवन की सार्थकता तभी है जब वह किसी भी भ्रम में पड़ने से बचा रहे | भ्रम मनुष्य को किंकर्तव्यविमूढ़ करके सोचने - समझने की शक्ति का हरण कर लेता है | भ्रम में
*आदिकाल से हमारा देश भारत संपूर्ण विश्व में यदि विश्व गुरु कहा जाता था तो इसका कारण था भारत देश की संस्कृति एवं संस्कार | कहने को तो विश्व में अनेकों सभ्यतायें हैं परंतु यदि संस्कृति की बात की जाय तो संपूर्ण विश्व में एक ही संस्कृति देखने को मिलती है जिसे भारतीय संस्कृति कहा जाता है | हमारी भारतीय स
*इस धराधाम पर भाँति - भाँति के धर्म , सम्प्रदाय एवं पंथ विद्यमान हैं जो अपने - अपने मतानुसार जीवन को दिशा देते हैं | वैसे तो मनुष्य जिस धर्म में जन्म लेता है वही उसका धर्म हो जाता है परंतु इन धर्मों के अतिरिक्त भी मनुष्य के कुछ धर्म होते हैं जिसे प्रत्येक मनुष्य को मानना चाहिए | इनको कर्तव्य धर्म भी