*प्राचीनकाल से ही भारत देश आपसी सौहार्द्र , प्रेम एवं भाईचारे का उदाहरण समस्त विश्व के समक्ष प्रस्तुत करता रहा है | वैदिककाल में मनुष्य आपस में तो सौहार्द्र पूर्वक रहता ही था अपितु इससे भी आगे बढ़कर वैदिककाल के महामानवों ने पशु - पक्षियों के प्रति भी अपना प्रेम प्रकट करके उनसे भी सम्बन्ध स्थापित करने में सफल हुआ | अपने इन्हीं सौहार्द्रपूर्ण परिवेश के कारण ही भारत एवं भारतीय समस्त विश्व में सम्माननीय हुए | परन्तु समय सदैव एक समान नहीं रहता है , कालचक्र के पराधीन होकर सतत् परिवर्तन ही सृष्टि का नियम है | हमारे देश का समय भी परिवर्तित हुआ और भारतवासी भारतीय न होकर जातियों में बंटने लगे और आपसी सौहार्द्र गायब होने लगा और उसका स्थान आपसी वैमनस्यता एवं जातिवाद ने ले लिया | इसी आपसी वैमनस्य एवं जातिवाद को सीढ़ी बनाकर विदेशियों ने हम पर आक्रमण करना प्रारम्भ कर दिया और एक लम्बे कालखण्ड के बाद हम पहले मुगलों फिर अंग्रेजों के गुलाम हो गये | लम्बी दासता झेलने के बाद हमारे पूर्वजों ने आपसी वैमनस्यता एवं जातिवाद को भूलकर एक साथ आजादी के लिए बिगुल फूँका | आजादी की इस लड़ाई में हिन्दू , मुसलमान , सिख , ईसाई की भावना से ऊपर उठते हुए मात्र भारतीय लड़े और उसके परिणामस्वरूप हमको स्वतंत्रता प्राप्त हुई | आजाद भारत में जातिवाद तो नहीं समाप्त हुआ परन्तु इसके बाद भी सभी भारतवासी एक साथ मिलजुल कर रहते चले आये हैं | ऐसी साझा संस्कृति हमें विश्व में अन्यत्र शायद ही देखने को मिले | यही भारत की महानता , संस्कृति , सभ्यता एवं संस्कार की पहचान समस्त विश्व में प्रमाणित एवं प्रचारित हुई |*
*आज हम आधुनिक युग में इतने अधिक आधुनिक हो गये हैं कि एक दूसरे को पहचानना बंद कर दिया है | जातिवाद एवं धर्म की राजनीति अपने चरम पर है | आज हमारे देश में सौहार्द्र एवं आपसी सामंजस्य को मुट्ठी भर लोग बिगाड़ने का प्रयास करते हुए देखे जा सकते हैं | आज हमारा संस्कार , हमारी सभ्यता एवं संस्कृति एक कोने खड़ी अपनी दुर्दशा पर रोती हुई दिखाई पड़ रही है | छल - कपट , वैमनस्यता आज चारों ओर दिखाई पड़ रही है , पूरा समाज धर्म एवं जाति के नाम पर बंट गया है | मनुष्य आज मनुष्य नहीं रह गया बल्कि प्रत्येक मनुष्य किसी न किसी धर्म का झंडा अपने हाथ में उठाए हुए चल रहा है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" इन सभी झंडाबरदारों से इतना ही कहना चाहूंगा कि हम किसी धर्म , किसी जाति के होने के पहले एक भारतीय हैं | भारतीयता को स्वयं में समाहित करके विचार करने की आवश्यकता है कि आज धर्म एवं जाति के नाम पर जो हम कर रहे हैं वह कितना उचित है ? हम आज स्वविवेक से कार्य नहीं कर रहे हैं बल्कि कुछ लोगों के इशारे की कठपुतली मात्र बनकर रह गए हैं | हम को आपस में लड़ा कर के जिस प्रकार अंग्रेजों ने फूट डालो और राज्य करो की रणनीति अपनाई थी आज वही रणनीति कुछ राजनीतिक दलों ने अपना ली है और हम उनकी इस रणनीति के चक्रव्यूह में इस कदर उलझ गये हैं कि विवेक ने कार्य करना बन्द कर दिया है | आज आवश्यकता है कि जिस प्रकार हमने अंग्रेजों की मंशा को समझकर के एकजुटता दिखाकर अपने देश को आजाद कराया था उसी प्रकार इन राजनीतिक दलों की मंशा को समझकर के आपसी सौहार्द एवं भाईचारा बनाए रखते हुए इनको किनारे करने की , अन्यथा वह दिन बहुत दूर नहीं दिखाई पड़ रहा है जब हम टुकड़ो में बटे हुए दिखाई पड़ेंगे | प्रत्येक मनुष्य विवेक वान है और वह जानता है कि समाज का निर्माण आपसी सौहार्द से ही हो सकता है तो समाज को तोड़ने वाले तत्वों को पहचानना पड़ेगा , जिससे कि हमारी आने वाली पीढ़ियां हमारे विषय में नकारात्मक विचार लाने के लिए विवश न हों |*
*आज पुन: भारत के इतिहास को पढ़ने की आवश्यकता है ! हमारे पूर्वजों ने किस प्रकार सौहार्द्रपूर्ण समाज का निर्माण किया था यह भी समझने की आवश्यकता है |*