*हमारे देश भारत में आदिकाल से राजा एवं प्रजा के बीच अटूट सम्बन्ध रहा है | प्रजा पर शासन करने वाले राजाओं ने अपनी प्रजा को पुत्र के समान माना है तो अपराध करने पर उन्हें दण्डित भी किया है | हमारे शास्त्रों में लिखा है कि :- "पिता हि सर्वभूतानां राजा भवति सर्वदा" अर्थात किसी भी देश का राजा प्रजा के लिए पिता के समान ही होता है | जिस प्रकार एक पिता अपनी सन्तान के द्वारा किये गये अच्छे व विवेकपूर्ण कार्यों पर उसे पुरस्कृत करके उनका मनोबल तो बढाता ही है साथ ही सन्तान के द्वारा की गयी उदण्डता पर अपनी प्राणप्रिय सन्तान को भी दण्डित करने से नहीं चूकता ! उसी प्रकार राजा का भी कर्म है कि वह अपनी प्रजा के सत्कार्यों पर उन्हें उत्साहित करे परन्तु वही प्रजा जब निरंकुश होने लगे तो उसे दण्डित करके उन्हें भय दिखलाकर सीधे राह पर लाने का प्रयास करे | हमारे भारत का इतिहास रहा है कि यहाँ अपराध करने वाले दण्डित होते रहे हैं | कोई भी राजा तब तक निर्विघ्न राज्य नहीं कर सकता जब तक उसे राजनीति का ज्ञान न हो | पूर्वकाल के शासकों ने अपनी प्रजा के उत्थान के लिए जहाँ अनेकों लोककल्याणक कार्य किये हैं वहीं किसी अपराध पर अपने प्रियजनों को भी दण्डित किया है | सभी धर्मों से ऊपर उठते हुए किसी भी राजा का एक ही धर्म होता है जिसे राजधर्म कहा जाता है | राजधर्म का पालन करने वाले राजा का अपना कोई हित नहीं होता है बल्कि उसका प्रमुख कार्य होता प्रजारंजन अर्थात प्रजा के विषय में ही सोंचते रहना | इस प्रकार के राजधर्म का पालन करने वाले राजाओं का एक लम्बा इतिहास हमारे देश भारत में देखने को मिलता है | प्रजाजन अपने राजा को उनके कार्यों के अनुसार ही सम्मान देते रहे हैं | अन्य देशों में जहाँ राजाओं द्वारा प्रजा पर अत्याचार की कथायें पढ़ने एवं सुनने को मिलती हैं वहीं हमारे देश के इतिहास में राजाओं द्वारा प्रजारंजन का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत करने वाली कथायें हृदय को पुलकित कर देती हैं |*
*आज समय परिवर्तित हो गया है राजा एवं उनका राज्य इतिहास हो गया है न तो राजा रह गये और न ही उनका राज्य | आज हम लोकतांत्रिक शासकीय व्यवस्था के अन्तर्गत जीवन यापन कर रहे हैं | राजा के स्थान पर अब जनता द्वारा चुने गये शासकों ने ले लिया है परंतु शासन करने की प्रणाली लगभग वही है | अपराधियों को दण्डित करने प्रावधान आज भी है | यदि आज कुछ परिवर्तित हुआ है तो वह है अपराध एवं अपराधी | आज सफेदपोश अपराधी यत्र तत्र समाज में देखे जा सकते हैं | ये सफेदपोश अपराधी हमारी जनता के द्वारा ही चुने गये होते हैं और अपना स्वार्थसिद्ध करने के लिए जनता को बरगलाकर शासक के प्रति विद्रोह की स्थिति उत्पन्न करने का प्रयास करते रहते हैं | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" भगवान वाल्मीकि जी द्वारा रचित एक श्लोक की व्याख्या को पढ़कर विचार करता हूँ कि जो आज हो रहा है वह बहुत पहले हमारे मनीषियों द्वारा लिख दिया गया है | वाल्मीकि जी विखते हैं :-- "नाराजके जनपदे स्वकं भवति कस्यचित् ! मत्स्या इव जना नित्यं भक्षयन्ति परस्परम् !!" अर्थात जब प्रजा निरंकुश होने लगती है तो कोई किसी का नहीं रह जाता है लोग एक दूसरों को मछलियों की भाँति खाने लगते हैं , सामाजिक सम्बन्धों का महत्त्व नहीं रह जाता है समर्थ लोग निर्बलों पर अत्याचार करने लगते हैं | ऐसे में राजा को राजधर्म का पालन करते हुए इन सफेदपोश अपराधियों को भी दण्डित करने से नहीं बचना चाहिए अपितु कठोर निर्णय लेते हुए निरंकुश हो चुकी प्रजा को उचित दण्ड देते हुए उन्हें उनके अपराधों के अनुसार उनके प्रति व्यवहार करना चाहिए | आज हमारे देश की जो स्थिति है ऐसे में देश के शासकों को राजधर्म का पालन करते हुए अपराधियों पर कठोर से कठोर दण्डात्मक कार्यवाही करनी चाहिए तभी इस देश में पुन: समरसता का परिवेश निर्मित हो पायेगा | परंतु जिस प्रकार आज सभी धर्म प्रदूषित हो गये हैं ऐसे में राजधर्म भी इस विकृत प्रदूषण से स्वयं को बचा नहीं पाया है |*
*राजा या शासक सदैव अपने प्रजाधर्म से बंधा होता है किसी भी धर्म एवं दलगत राजनीति से ऊपर उठकर उसका एक ही धर्म होना चाहिए जिसे राजधर्म कहा गया है |*