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आदमियों के अलग-अलग दरजे- नेहरू/ प्रेमचंद

10 नवम्बर 2021

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लड़के, लड़कियों और सयानों को भी इतिहास अकसर एक अजीब ढंग से पढ़ाया जाता है। उन्हें राजाओं और दूसरे आदमियों के नाम और लड़ाइयों की तारीखें याद करनी पड़ती हैं। लेकिन दरअसल इतिहास लड़ाइयों का, या थोड़े- से राजाओं या सेनापतियों का नाम नहीं है। इतिहास का काम यह है कि हमें किसी मुल्क के आदमियों का हाल बतलाए, कि वे किस तरह रहते थे, क्या करते थे और क्या सोचते थे, किस बात से उन्हें खुशी होती थीं, किस बात से रंज होता था, उनके सामने क्या-क्या कठिनाइयाँ आईं और उन लोगों ने कैसे उन पर काबू पाया। अगर हम इतिहास को इस तरीके से पढ़ें तो हमें उससे बहुत-सी बातें मालूम होंगी। अगर उसी तरह की कोई कठिनाई या आफत हमारे सामने आए, तो इतिहास के जानने से हम उस पर विजय पा सकते हैं। पुराने जमाने का हाल पढ़ने से हमें यह पता चल जाता है, कि लोगों की हालत पहले से अच्छी है या खराब, उन्होंने कुछ तरक्‍की की है या नहीं।

यह सच है कि हमें पुराने जमाने के मर्दों और औरतों के चरित्र से कुछ न कुछ सबक लेना चाहिए। लेकिन हमें यह भी जानना चाहिए कि पुराने जमाने में भिन्न-भिन्न जाति के आदमियों का क्या हाल था।

मैं तुम्हें बहुत-से खत लिख चुका हूँ। यह चौबीसवाँ खत है लेकिन अब तक हमने बहुत पुराने जमाने ही की चर्चा की है, जिसके बारे में हमें थोड़ी ही-सी बातें मालूम हैं। इसे हम इतिहास नहीं कह सकते। हम इस इतिहास की शुरुआत, या इतिहास का उदय कह सकते हैं। जल्द ही हम बाद के जमाने का जिक्र करेंगे, जिससे हम ज्यादा वाकिफ हैं और जिसे ऐतिहासिक काल कह सकते हैं। लेकिन उस पुरानी सभ्यता का जिक्र छेड़ने के पहले आओ हम उस पर फिर एक निगाह डालें और इसका पता लगाएं कि उस जमाने में आदमियों की कौन-कौन-सी किस्में थीं।

हम यह पहले देख चुके हैं कि पुरानी जातियों के आदमियों ने तरह-तरह के काम करने शुरू किए। काम या पेशे का बँटवारा हो गया। हमने यह भी देखा है कि जाति के सरपंच या सरगना ने अपने परिवार को दूसरों से अलग कर लिया और काम का इंतजाम करने लगा। वह ऊँचे दरजे का आदमी बन बैठा, या यों समझ लो कि उसका परिवार औरों से ऊँचे दरजे में आ गया। इस तरह आदमियों के दो दरजे हो गए। एक इंतजाम करता था, हुक्म देता था और दूसरा असली काम करता था। और यह तो जाहिर है कि इंतजाम करनेवाले दरजे का इख्तियार ज्यादा था और इसके जोर से उन्होंने वह सब चीजें ले लीं जिन पर वह हाथ बढ़ा सके। वे ज्यादा मालदार हो गए और काम करनेवालों की कमाई को दिन-दिन ज्यादा हड़पने लगे।

इसी तरह ज्यों-ज्यों काम की बाँट होती गई और दरजे पैदा होते गए। राजा और उसका परिवार तो था ही, उसके दरबारी भी पैदा हो गए। वे मुल्क का इंतजाम करते थे और दुश्मनों से उसकी हिफाजत करते थे। वे आमतौर पर कोई दूसरा काम न करते थे।

मंदिरों के पुजारियों और नौकरों का एक दूसरा दरजा था। उस जमाने में इन लोगों का बहुत रोबदाब था और हम उनका जिक्र फिर करेंगे।

तीसरा दरजा व्यापारियों का था। ये वे सौदागर लोग थे जो एक मुल्क का माल दूसरे मुल्क में ले जाते थे, माल खरीदते थे और बेचते थे और दुकानें खोलते थे।

चौथा दरजा कारीगरों का था, जो हर एक किस्म की चीजें बनाते थे, सूत कातते और कपड़े बुनते थे, मिट्टी के बरतन बनाते थे, पीतल के बरतन गढ़ते थे, सोने और हाथी दाँत की चीजें बनाते थे तथा बहुत-से और काम करते थे। ये लोग अकसर शहरों में या शहरों के नजदीक रहते थे लेकिन बहुत से देहातों में भी बसे हुए थे।

सबसे नीचा दरजा उन किसानों और मजदूरों का था जो खेतों में या शहरों में काम करते थे। इस दरजे में सबसे ज्यादा आदमी थे। और सभी दरजों के लोग उन्हीं पर दाँत लगाए रहते थे और उनसे कुछ न कुछ ऐंठते रहते थे।

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आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इसमें अपनी एकलौती बेटी इंदिरा नेहरू का जिक्र किया था। जिसका सारांश इस प्रकार है- एक खत एकाएक खत्म हो जाता है। गर्मी का मौसम खत्म होता है और इंदिरा पहाड़ से उतर आई। फिर ऐसे खत लिखने का मौका मुझे नहीं मिला। उसके बाद के साल वह पहाड़ नहीं गई और दो साल बाद 1630 में मुझे नैनी की जो पहाड़ नहीं है, यात्रा करनी पड़ी। नैनी जेल में कुछ और पत्र मैंने इंदिरा को लिखे लेकिन वे भी अधूरे रह गए और भौर छोड़ दिया गया। ये नए खत इस किताब में शामिल नहीं है।
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