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पीछे की तरफ एक नजर- नेहरू/ प्रेमचंद

10 नवम्बर 2021

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तुम मेरी चिट्ठियों से ऊब गई होगी! जरा दम लेना चाहती होगी। खैर, कुछ अरसे

तक मैं तुम्हें नई बात न लिखूँगा। हमने थोड़े-से खतों में हजारों लाखों बरसों की

दौड़ लगा डाली है। मैं चाहता हूँ कि जो कुछ हम देख आए हैं उस पर तुम जरा गौर करो। हम उस जमाने से चले थे जब जमीन सूरज ही का एक हिस्सा थी, तब वह उससे अलग हो कर धीरे-धीरे ठंडी हो गई। उसके बाद चाँद ने उछाल मारी और जमीन से निकल भागा, मुद्दतों तक यहाँ कोई जानवर न था। तब लाखों, करोड़ों बरसों में, धीरे-धीरे जानदारों की पैदाइश हुई। दस लाख बरसों की मुद्दत कितनी होती है, इसका तुम्हें कुछ अंदाजा होता है? इतनी बड़ी मुद्दत का अंदाजा करना निहायत मुश्किल है। तुम अभी कुल दस बरस की हो और कितनी बड़ी हो गई हो! खासी कुमारी हो गई हो। तुम्हारे लिए सौ साल ही बहुत हैं। फिर कहाँ हजार, और कहाँ लाख जिसमें सौ हजार होते हैं। हमारा छोटा-सा सिर इसका ठीक अंदाजा कर ही नहीं सकता। लेकिन हम अपने आपको बहुत बड़ा समझते हैं और जरा-जरा-सी बातों पर झुँझला उठते हैं, और घबरा जाते हैं। लेकिन दुनिया के इस पुराने इतिहास में इन छोटी-छोटी बातों की हकीकत ही क्या? इतिहास के इन अपार युगों का हाल पढ़ने और उन पर विचार करने से हमारी आँखें खुल जाएँगी और हम छोटी-छोटी बातों से परेशान न होंगे।

जरा उन बेशुमार युगों का खयाल करो जब किसी जानदार का नाम तक न था। फिर उस लंबे जमाने की सोचो जब सिर्फ समुद्र के जंतु ही थे। दुनिया में कहीं आदमी का पता नहीं है। जानवर पैदा होते हैं और लाखों साल तक बेखटके इधर-उधर कुलेलें किया करते हैं। कोई आदमी नहीं है जो उनका शिकार कर सके। और अंत में जब आदमी पैदा भी होता है तो बिल्कुल बित्ता भर का, नन्हा-सा, सब जानवरों से कमज़ोर! धीरे-धीरे हजारों बरसों में वह ज्यादा मजबूत और होशियार हो जाता है, यहाँ तक कि वह दुनिया के जानवरों का मालिक हो जाता है। और दूसरे जानवर उसके ताबेदार और गुलाम हो जाते हैं और उसके इशारे पर चलने लगते हैं।

तब सभ्यता के फैलने का जमाना आता है। हम इसकी शुरुआत देख चुके हैं। अब हम यह देखने को कोशिश करेंगे कि आगे चल कर उसकी क्या हालत हुई। अब हमें लाखों बरसों का जिक्र नहीं करना है। पिछले खतों में हम तीन-चार हजार साल पहले के जमाने तक पहुँच गए थे। लेकिन इधार के तीन-चार हजार बरसों का हाल हमें उधार के लाखों बरसों से ज्यादा मालूम है। आदमी के इतिहास की तरक्‍की दरअसल इन्हीं तीन हजार बरसों में हुई है। जब तुम बड़ी हो जाओगी तो तुम इतिहास के बारे में बहुत कुछ पढ़ोगी। मैं इनके बारे में कुछ थोड़ा-सा लिखूँगा जिससे तुम्हें कुछ खयाल हो जाए कि इस छोटी-सी दुनिया में आदमी पर क्या-क्या गुजरी।

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आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इसमें अपनी एकलौती बेटी इंदिरा नेहरू का जिक्र किया था। जिसका सारांश इस प्रकार है- एक खत एकाएक खत्म हो जाता है। गर्मी का मौसम खत्म होता है और इंदिरा पहाड़ से उतर आई। फिर ऐसे खत लिखने का मौका मुझे नहीं मिला। उसके बाद के साल वह पहाड़ नहीं गई और दो साल बाद 1630 में मुझे नैनी की जो पहाड़ नहीं है, यात्रा करनी पड़ी। नैनी जेल में कुछ और पत्र मैंने इंदिरा को लिखे लेकिन वे भी अधूरे रह गए और भौर छोड़ दिया गया। ये नए खत इस किताब में शामिल नहीं है।
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