shabd-logo

शुरू के आदमी- नेहरू/ प्रेमचंद

28 अक्टूबर 2021

36 बार देखा गया 36

मैंने अपने पिछले खत में लिखा था कि आदमी और जानवर में सिर्फ अक्ल का फर्क है। अक्ल ने आदमी को उन बड़े-बड़े जानवरों से ज्यादा चालाक और मजबूत बना दिया जो मामूली तौर पर उसे नष्ट कर डालते। ज्यों-ज्यों आदमी की अक्ल बढ़ती गई वह ज्यादा बलवान होता गया। शुरू में आदमी के पास जानवरों से मुकाबला करने के लिए कोई खास हथियार न थे। वह उन पर सिर्फ पत्थर फेंक सकता था। इसके बाद उसने पत्थर की कुल्हाड़ियाँ और भाले और बहुत-सी दूसरी चीजें भी बनाईं जिनमें पत्थर की सूई भी थी। हमने इन पत्थरों के हथियारों को साउथ कैंसिंगटन और जेनेवा के अजायबघरों में देखा था।

धीरे-धीरे बर्फ का जमाना खत्म हो गया जिसका मैंने अपने पिछले खत में जिक्र किया है। बर्फ के पहाड़ मध्‍य-एशिया और यूरोप से गायब हो गए। ज्यों-ज्यों गरमी बढ़ती गई आदमी फैलते गए।

उस जमाने में न तो मकान थे और न कोई दूसरी इमारत थी। लोग गुफाओं में रहते थे। खेती करना किसी को न आता था। लोग जंगली फल खाते थे, या जानवरों का शिकार करके माँस खा कर रहते थे। रोटी और भात उन्हें कहाँ मयस्सर होता क्योंकि उन्हें खेती करनी आती ही न थी। वे पकाना भी नहीं जानते थे; हाँ, शायद माँस को आग में गर्म कर लेते हों। उनके पास पकाने के बर्तन, जैसे कढ़ाई और पतीली भी न थे।

एक बात बड़ी अजीब है। इन जंगली आदमियों को तस्वीर खींचना आता था। यह सच है कि उनके पास कागज, कलम, पेंसिल या ब्रश न थे। उनके पास सिर्फ पत्थर की सुइयाँ और नोकदार औजार थे। इन्हीं से वे गुफाओं की दीवारों पर जानवरों की तस्वीरें बनाया करते थे। उनके बाज-बाज खाके खासे अच्छे हैं मगर वे सब इकरुखे हैं। तुम्हें मालूम है कि इकरुखी तस्वीर खींचना आसान है और बच्चे इसी तरह की तस्वीरें खींचा करते हैं। गुफाओं में अँधेरा होता था इसलिए मुमकिन है कि वे चिराग जलाते हों।

जिन आदमियों का हमने ऊपर जिक्र किया है वे पाषाण या पत्थर-युग के आदमी कहलाते हैं। उस जमाने को पत्थर का युग इसलिए कहते हैं कि आदमी अपने सभी औजार पत्थर के बनाते थे। धातुओं को काम में लाना वे न जानते थे। आजकल हमारी चीजें अकसर धातुओं से बनती हैं, खासकर लोहे से। लेकिन उस जमाने में किसी को लोहे या काँसे का पता न था। इसलिए पत्थर काम में लाया जाता था, हालांकि उससे कोई काम करना बहुत मुश्किल था।

पाषाण युग के खत्म होने के पहले ही दुनिया की आबोहवा बदल गई और उसमें गर्मी आ गई। बर्फ के पहाड़ अब उत्तरी सागर तक ही रहते थे और मध्यएशिया और यूरोप में बड़े-बड़े जंगल पैदा हो गए। इन्हीं जंगलों में आदमियों की एक नई जाति रहने लगी। ये लोग बहुत-सी बातों में पत्थर के आदमियों से ज्यादा होशियार थे। लेकिन वे भी पत्थर के ही औजार बनाते थे। ये लोग भी पत्थर ही के युग के थे; मगर वह पिछला पत्थर का युग था, इसलिए वे नए पत्थर के युग के आदमी कहलाते थे।

गौर से देखने से मालूम होता है कि नए पत्थर युग के आदमियों ने बड़ी तरक्‍की कर ली थी। आदमी की अक्ल और जानवरों के मुकाबले में उसे तेजी से बढ़ाए लिये जा रही है। इन्हीं नए पाषाण-युग के आदमियों ने एक बहुत बड़ी चीज निकाली। यह खेती करने का तरीका था। उन्होंने खेतों को जोत कर खाने की चीजें पैदा करना शुरू कर दिया। उनके लिए यह बहुत बड़ी बात थी। अब उन्हें आसानी से खाना मिल जाता था, इसकी जरूरत न थी कि वे रात-दिन जानवरों का शिकार करते रहें। अब उन्हें सोचने और आराम करने की ज्यादा फुर्सत मिलने लगी। और उन्हें जितनी ही ज्यादा फुरसत मिलती थी, नई चीजें और तरीके निकालने में वे उतनी ही ज्यादा तरक्‍की करते थे। उन्होंने मिट्टी के बर्तन बनाने शुरू किए और उनकी मदद से खाना पकाने लगे। पत्थर के औजार भी अब ज्यादा अच्छे बनने लगे और उन पर पालिश भी अच्छी होने लगी। उन्होंने गाय, कुत्ता, भेड़, बकरी वगैरह जानवरों को पालना सीख लिया और वे कपडे़ भी बुनने लगे।

वे छोटे-छोटे घरों या झोंपड़ों में रहते थे। ये झोंपड़े अकसर झीलों के बीच में बनाए जाते थे, क्योंकि जंगली जानवर या दूसरे आदमी वहाँ उन पर आसानी से हमला न कर सकते थे। इसलिए ये लोग झील के रहनेवाले कहलाते थे।

तुम्हें अचंभा होता होगा कि इन आदमियों के बारे में हमें इतनी बातें कैसे मालूम हो गईं। उन्होंने कोई किताब तो लिखी नहीं। लेकिन मैं तुमसे पहले ही कह चुका हूँ कि इन आदमियों का हाल जिस किताब में हमें मिलता है वह संसार की किताब है। उसे पढ़ना आसान नहीं है। उसके लिए बड़े अभ्यास की जरूरत है। बहुत-से आदमियों ने इस किताब के पढ़ने में अपनी सारी उम्र खत्म कर दी है। उन्होंने बहुत-सी हड्डियाँ और पुराने जमाने की बहुत-सी निशानियाँ जमा कर दी हैं। ये चीजें बड़े-बड़े अजायबघरों में जमा हैं, और वहाँ हम उम्दा चमकती हुई कुल्हाड़ियाँ और बर्तन, पत्थर के तीर और सुइयाँ, बहुत-सी दूसरी चीजें देख सकते हैं, जो पिछले पत्थर युग के आदमी बनाते थे। तुमने खुद इनमें से बहुत-सी चीजें देखी हैं, लेकिन शायद तुम्हें याद न हो। अगर तुम फिर उन्हें देखो तो ज्यादा अच्छी तरह समझ सकोगी।

मुझे याद आता है कि जिनेवा के अजायबघर में झील के मकान का एक बहुत अच्छा नमूना रखा हुआ था। झील में लकड़ी के डंडे गाड़ दिए गए थे और उनके ऊपर लकड़ी के तख्ते बाँध कर उन पर झोंपड़ियाँ बनाई गई थीं। इस घर और जमीन के बीच में एक छोटा-सा पुल बना दिया गया था। ये पिछले पत्थर के युगवाले आदमी, जानवरों की खालें पहनते थे और कभी-कभी सन के मोटे कपड़े भी पहनते थे। सन एक पौधा है जिसके रेशों से कपड़ा बनता है। आजकल सन से महीन कपड़े बनाए जाते हैं। लेकिन उस जमाने के सन के पकड़े बहुत ही भद्दे रहे होंगे।

ये लोग इसी तरह तरक्‍की करते चले गए; यहाँ तक कि उन्होंने ताँबे और काँसे के औजार बनाने शुरू किए। तुम्हें मालूम है कि काँसा, तांबे और रांगे के मेल से बनता है और इन दोनों से ज्यादा सख्त होता है। वे सोने का इस्तेमाल करना भी जानते थे और इसके जेवर बनाकर इतराते थे।

हमें यह ठीक तो मालूम नहीं कि इन लोगों को हुए कितने दिन गुजरे लेकिन अंदाज से मालूम होता है कि दस हजार साल से कम न हुए होंगे। अभी तक तो हम लाखों बरसों की बात कर रहे थे, लेकिन धीरे-धीरे हम आजकल के जमाने के करीब आते जाते हैं। नए पाषाण युग के आदमियों में और आजकल के आदमियों में एकाएक कोई तब्दीली नहीं आ गई। फिर भी हम उनके-से नहीं हैं। जो कुछ तब्दीलियाँ हुईं बहुत धीरे-धीरे हुईं और यही प्रकृति का नियम है। तरह-तरह की कौमें पैदा हुईं और हर एक कौम के रहन-सहन का ढंग अलग था। दुनिया के अलग-अलग हिस्सों की आबोहवा में बहुत फर्क था और आदमियों को अपना रहन-सहन उसी के मुताबिक बनाना पड़ता था। इस तरह लोगों में तब्दीलियाँ होती जाती थीं। लेकिन इस बात का जिक्र हम आगे चल कर करेंगे।

आज मैं तुमसे सिर्फ एक बात का जिक्र और करूँगा। जब नया पत्थर का युग खत्म हो रहा था तो आदमी पर एक बड़ी आफत आई। मैं तुमसे पहले ही कह चुका हूँ कि उस जमाने में भूमध्‍य सागर था ही नहीं। वहाँ चंद झीलें थीं और इन्हीं में लोग आबाद थे। एकाएक यूरोप और अफ्रीका के बीच में जिब्राल्टर के पास जमीन बह गई और अटलांटिक समुद्र का पानी उस नीचे गढढ़े में भर आया। इस बाढ़ में बहुत-से मर्द और औरतें जो वहाँ रहते थे डूब गए होंगे। भाग कर जाते कहाँ? सैकड़ों मील तक पानी के सिवा कुछ नजर ही न आता था। अटलांटिक सागर का पानी बराबर भरता गया और इतना भरा कि भूमध्‍य सागर बन गया।

तुमने शायद पढ़ा होगा, कम से कम सुना तो है ही, कि किसी जमाने में बड़ी भारी बाढ़ आई थी। बाइबिल में इसका जिक्र है और बाज संस्कृत की किताबों में भी उसकी चर्चा आई है। हम तो समझते हैं कि भूमध्‍य सागर का भरना ही वह बाढ़ होगी। यह इतनी बड़ी आफत थी कि इससे बहुत थोड़े आदमी बचे होंगे। और उन्होंने अपने बच्चों से यह हाल कहा होगा। इसी तरह यह कहानी हम तक पहुँची।

पुस्तक प्रकाशित करें
27
रचनाएँ
पिता के पत्र पुत्री के नाम- जवाहरलाल नेहरू
0.0
आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इसमें अपनी एकलौती बेटी इंदिरा नेहरू का जिक्र किया था। जिसका सारांश इस प्रकार है- एक खत एकाएक खत्म हो जाता है। गर्मी का मौसम खत्म होता है और इंदिरा पहाड़ से उतर आई। फिर ऐसे खत लिखने का मौका मुझे नहीं मिला। उसके बाद के साल वह पहाड़ नहीं गई और दो साल बाद 1630 में मुझे नैनी की जो पहाड़ नहीं है, यात्रा करनी पड़ी। नैनी जेल में कुछ और पत्र मैंने इंदिरा को लिखे लेकिन वे भी अधूरे रह गए और भौर छोड़ दिया गया। ये नए खत इस किताब में शामिल नहीं है।
1

पिता के पत्र पुत्री के नाम

2 अक्टूबर 2021

3
0
1

पिता के पत्र पुत्री के नाम

2 अक्टूबर 2021
3
0
2

संसार पुस्तक है- नेहरू/ प्रेमचंद

26 अक्टूबर 2021

1
0
2

संसार पुस्तक है- नेहरू/ प्रेमचंद

26 अक्टूबर 2021
1
0
3

शुरू का इतिहास कैसे लिखा गया - जवाहरलाल नेहरू

26 अक्टूबर 2021

0
0
3

शुरू का इतिहास कैसे लिखा गया - जवाहरलाल नेहरू

26 अक्टूबर 2021
0
0
4

जमीन कैसे बनी - जवाहरलाल नेहरू

27 अक्टूबर 2021

0
0
4

जमीन कैसे बनी - जवाहरलाल नेहरू

27 अक्टूबर 2021
0
0
5

जानवर कब पैदा हुए - जवाहरलाल नेहरू

27 अक्टूबर 2021

1
0
5

जानवर कब पैदा हुए - जवाहरलाल नेहरू

27 अक्टूबर 2021
1
0
6

आदमी कब पैदा हुआ- नेहरू/ प्रेमचंद

28 अक्टूबर 2021

0
0
6

आदमी कब पैदा हुआ- नेहरू/ प्रेमचंद

28 अक्टूबर 2021
0
0
7

शुरू के आदमी- नेहरू/ प्रेमचंद

28 अक्टूबर 2021

0
0
7

शुरू के आदमी- नेहरू/ प्रेमचंद

28 अक्टूबर 2021
0
0
8

तरह- तरह की कौमें क्योंकर बनीं- नेहरू/ प्रेमचंद

29 अक्टूबर 2021

0
0
8

तरह- तरह की कौमें क्योंकर बनीं- नेहरू/ प्रेमचंद

29 अक्टूबर 2021
0
0
9

आदमियों की कौमें और जबानें- नेहरू/ प्रेमचंद

29 अक्टूबर 2021

0
0
9

आदमियों की कौमें और जबानें- नेहरू/ प्रेमचंद

29 अक्टूबर 2021
0
0
10

जबानों का आपस में रिश्ता- नेहरू/ प्रेमचंद

29 अक्टूबर 2021

0
0
10

जबानों का आपस में रिश्ता- नेहरू/ प्रेमचंद

29 अक्टूबर 2021
0
0
11

सभ्यता क्या है?- नेहरू/ प्रेमचंद

30 अक्टूबर 2021

0
0
11

सभ्यता क्या है?- नेहरू/ प्रेमचंद

30 अक्टूबर 2021
0
0
12

जातियों का बनना- नेहरू/ प्रेमचंद

30 अक्टूबर 2021

0
0
12

जातियों का बनना- नेहरू/ प्रेमचंद

30 अक्टूबर 2021
0
0
13

मजहब की शुरुआत और काम का बंटवारा- नेहरू/ प्रेमचंद

30 अक्टूबर 2021

0
0
13

मजहब की शुरुआत और काम का बंटवारा- नेहरू/ प्रेमचंद

30 अक्टूबर 2021
0
0
14

खेती से पैदा हुई तब्दीलियां- नेहरू/ प्रेमचंद

1 नवम्बर 2021

0
0
14

खेती से पैदा हुई तब्दीलियां- नेहरू/ प्रेमचंद

1 नवम्बर 2021
0
0
15

खानदान का सरगना कैसे बना- नेहरू/ प्रेमचंद

1 नवम्बर 2021

0
0
15

खानदान का सरगना कैसे बना- नेहरू/ प्रेमचंद

1 नवम्बर 2021
0
0
16

सरगना का इख्तियार कैसे बढ़ा- नेहरू/ प्रेमचंद

1 नवम्बर 2021

1
1
16

सरगना का इख्तियार कैसे बढ़ा- नेहरू/ प्रेमचंद

1 नवम्बर 2021
1
1
17

सरगना राजा हो गया- नेहरू/ प्रेमचंद

3 नवम्बर 2021

0
0
17

सरगना राजा हो गया- नेहरू/ प्रेमचंद

3 नवम्बर 2021
0
0
18

शुरू का रहन-सहन- नेहरू/ प्रेमचंद

3 नवम्बर 2021

0
0
18

शुरू का रहन-सहन- नेहरू/ प्रेमचंद

3 नवम्बर 2021
0
0
19

पुरानी दुनिया के बडे़-बड़े शहर- नेहरू/ प्रेमचंद

3 नवम्बर 2021

0
0
19

पुरानी दुनिया के बडे़-बड़े शहर- नेहरू/ प्रेमचंद

3 नवम्बर 2021
0
0
20

मिस्र और क्रीट- नेहरू/ प्रेमचंद

3 नवम्बर 2021

0
0
20

मिस्र और क्रीट- नेहरू/ प्रेमचंद

3 नवम्बर 2021
0
0
21

चीन और हिंदुस्तान- नेहरू/ प्रेमचंद

6 नवम्बर 2021

0
0
21

चीन और हिंदुस्तान- नेहरू/ प्रेमचंद

6 नवम्बर 2021
0
0
22

समुद्री सफर और व्यापार- नेहरू/ प्रेमचंद

6 नवम्बर 2021

1
1
22

समुद्री सफर और व्यापार- नेहरू/ प्रेमचंद

6 नवम्बर 2021
1
1
23

भाषा, लिखावट और गिनती- नेहरू/ प्रेमचंद

6 नवम्बर 2021

0
0
23

भाषा, लिखावट और गिनती- नेहरू/ प्रेमचंद

6 नवम्बर 2021
0
0
24

आदमियों के अलग-अलग दरजे- नेहरू/ प्रेमचंद

10 नवम्बर 2021

0
0
24

आदमियों के अलग-अलग दरजे- नेहरू/ प्रेमचंद

10 नवम्बर 2021
0
0
25

राजा, मंदिर और पुजारी- नेहरू/ प्रेमचंद

10 नवम्बर 2021

0
0
25

राजा, मंदिर और पुजारी- नेहरू/ प्रेमचंद

10 नवम्बर 2021
0
0
26

पीछे की तरफ एक नजर- नेहरू/ प्रेमचंद

10 नवम्बर 2021

0
0
26

पीछे की तरफ एक नजर- नेहरू/ प्रेमचंद

10 नवम्बर 2021
0
0
27

फॉसिल और पुराने खंडहर- नेहरू/ प्रेमचंद

10 नवम्बर 2021

1
0
27

फॉसिल और पुराने खंडहर- नेहरू/ प्रेमचंद

10 नवम्बर 2021
1
0
---