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जबानों का आपस में रिश्ता- नेहरू/ प्रेमचंद

29 अक्टूबर 2021

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हम बतला चुके हैं कि आर्य बहुत-से मुल्कों में फैल गए और जो कुछ भी उनकी जबान थी उसे अपने साथ लेते गए। लेकिन तरह-तरह की आबोहवा और तरह-तरह की हालतों ने आर्यों की बड़ी-बड़ी जातियों में बहुत फर्क पैदा कर दिया। हर एक जाति अपने ही ढंग पर बदलती गई और उसकी आदतें और रस्में भी बदलती गईं। वे दूसरे मुल्कों में दूसरी जातियों से न मिल सकते थे, क्योंकि उस जमाने में सफर करना बहुत मुश्किल था, एक गिरोह दूसरे से अलग होता था। अगर एक मुल्क के आदमियों को कोई नई बात मालूम हो जाती, तो वे उसे दूसरे मुल्कवालों को न बतला सकते। इस तरह तब्दीलियाँ होती गई और कई पुश्तों के बाद एक आर्य जाति के बहुत-से टुकड़े हो गए। शायद वे यह भी भूल गए कि हम एक ही बड़े खानदान से हैं। उनकी एक जबान से बहुत-सी जबानें पैदा हो गईं जो आपस में बहुत कम मिलती-जुलती थीं।

लेकिन उनमें इतना फर्क मालूम होता था, उनमें बहुत से शब्द एक ही थे, और कई दूसरी बातें भी मिलती-जुलती थीं। आज हजारों साल के बाद भी हमें तरह-तरह की भाषाओं में एक ही शब्द मिलते हैं। इससे मालूम होता है कि किसी जमाने में ये भाषाएँ एक ही रही होंगी। तुम्हें मालूम है कि फ्रांसीसी और अंग्रेजी में बहुत-से एक जैसे शब्द हैं। दो बहुत घरेलू और मामूली शब्द ले लो, 'फादर' और 'मदर', हिंदी और संस्कृत में यह शब्द 'पिता' और 'माता' हैं। लैटिन में वे 'पेटर' और 'मेटर' हैं; यूनान में 'पेटर' और 'मीटर'; जर्मन में 'फाटेर' और 'मुत्तार'; फ्रांसीसी में 'पेर' और 'मेर' और इसी तरह और जबानों में भी। ये शब्द आपस में कितने मिलते-जुलते हैं! भाई बहनों की तरह उनकी सूरतें कितनी समान हैं! यह सच है कि बहुत-से शब्द एक भाषा से दूसरी भाषा में आ गए होंगे। हिंदी ने बहुत से शब्द अंग्रेजी से लिए हैं और अंग्रेज़ी ने भी कुछ शब्द हिंदी से लिए हैं। लेकिन 'फादर' और 'मदर' इस तरह कभी न लिये गए होंगे। 

ये नए शब्द नहीं हो सकते। शुरू-शुरू में जब लोगों ने एक दूसरे से बात करनी सीखी तो उस वक्त माँ-बाप तो थे ही, उनके लिए शब्द भी बन गए। इसलिए हम कह सकते हैं कि ये शब्द बाहर से नहीं आए। वे एक ही पुरखे या एक ही खानदान से निकले होंगे। और इससे हमें मालूम हो सकता है कि जो कौमें आज दूर-दूर के मुल्कों में रहती हैं और भिन्न-भिन्न भाषाएँ बोलती हैं वे सब किसी जमाने में एक ही बड़े खानदान की रही होंगी। तुमने देख लिया न कि जबानों का सीखना कितना दिलचस्प है और उससे हमें कितनी बातें मालूम होती हैं। अगर हम तीन-चार जबानें जान जाएँ तो और जबानों का सीखना आसान हो जाता है।

तुमने यह भी देखा कि बहुत-से आदमी जो अब दूर-दूर मुल्कों में एक-दूसरे से अलग रहते हैं, किसी जमाने में एक ही कौम के थे। तब से हम में बहुत फर्क हो गया है और हम अपने पुराने रिश्ते भूल गए हैं। हर एक मुल्क के आदमी खयाल करते हैं कि हमीं सबसे अच्छे और अक्लमंद हैं और दूसरी जातें हमसे घटिया हैं। अंग्रेज खयाल करता है कि वह और उसका मुल्क सबसे अच्छा है; फ्रांसीसी को अपने मुल्क और सभी फ्रांसीसी चीजों पर घमंड है; जर्मन और इटालियन अपने मुल्कों को सबसे ऊँचा समझते हैं। और बहुत-से हिंदुस्तानियों का खयाल है कि हिंदुस्तान बहुत-सी बातों में सारी दुनिया से बढ़ा हुआ है। यह सब डींग है। हर एक आदमी अपने को और अपने मुल्क को अच्छा समझता है लेकिन दरअसल कोई ऐसा आदमी नहीं है जिसमें कुछ ऐब और कुछ हुनर न हों। इसी तरह कोई ऐसा मुल्क नहीं है जिसमें कुछ बातें अच्छी और कुछ बुरी न हों। हमें जहाँ कहीं अच्छी बात मिलें उसे ले लेना चाहिए और बुराई जहाँ कहीं हो उसे दूर कर देना चाहिए। 

हमको तो अपने मुल्क हिंदुस्तान की ही सबसे ज्यादा फिक्र है। हमारे दुर्भाग्य से इसका जमाना आजकल बहुत खराब है और बहुत-से आदमी गरीब और दुखी हैं। उन्हें अपनी जिंदगी में कोई खुशी नहीं है। हमें इसका पता लगाना है कि हम उन्हें कैसे सुखी बना सकते हैं। यह देखना है कि हमारे रस्म-रिवाज में क्या खूबियाँ हैं और उनको बचाने की कोशिश करना है, जो बुराइयाँ हैं उन्हें दूर करना है। अगर हमें दूसरे मुल्कों में कोई अच्छी बात मिले तो उसे जरूर ले लेनी चाहिए।

हम हिंदुस्तानी हैं और हमें हिंदुस्तान में रहना और उसी की भलाई के लिए काम करना है लेकिन हमें यह न भूलना चाहिए कि दुनिया के और हिस्सों के रहनेवाले हमारे रिश्तेदार और कुटुम्बी हैं। क्या ही अच्छी बात होती अगर दुनिया के सभी आदमी खुश और सुखी होते। हमें कोशिश करनी चाहिए कि सारी दुनिया ऐसी हो जाए जहाँ लोग चैन से रह सकें।

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रचनाएँ
पिता के पत्र पुत्री के नाम- जवाहरलाल नेहरू
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आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इसमें अपनी एकलौती बेटी इंदिरा नेहरू का जिक्र किया था। जिसका सारांश इस प्रकार है- एक खत एकाएक खत्म हो जाता है। गर्मी का मौसम खत्म होता है और इंदिरा पहाड़ से उतर आई। फिर ऐसे खत लिखने का मौका मुझे नहीं मिला। उसके बाद के साल वह पहाड़ नहीं गई और दो साल बाद 1630 में मुझे नैनी की जो पहाड़ नहीं है, यात्रा करनी पड़ी। नैनी जेल में कुछ और पत्र मैंने इंदिरा को लिखे लेकिन वे भी अधूरे रह गए और भौर छोड़ दिया गया। ये नए खत इस किताब में शामिल नहीं है।
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पिता के पत्र पुत्री के नाम

2 अक्टूबर 2021
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<p><br></p> <figure><img src="https://shabd.s3.us-east-2.amazonaws.com/articles/61580f00a9e73b20b620

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संसार पुस्तक है- नेहरू/ प्रेमचंद

26 अक्टूबर 2021
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<p>जब तुम मेरे साथ रहती हो तो अकसर मुझसे बहुत-सी बातें पूछा करती हो और मैं उनका जवाब देने की कोशिश क

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शुरू का इतिहास कैसे लिखा गया - जवाहरलाल नेहरू

26 अक्टूबर 2021
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<p>अपने पहले पन्‍ने में मैंने तुम्हें बताया था कि हमें संसार की किताब से ही दुनिया के शुरू का हाल मा

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जमीन कैसे बनी - जवाहरलाल नेहरू

27 अक्टूबर 2021
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<p>तुम जानती हो कि जमीन सूरज के चारों तरफ घूमती है और चाँद जमीन के चारों तरफ घूमता है। शायद तुम्हें

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जानवर कब पैदा हुए - जवाहरलाल नेहरू

27 अक्टूबर 2021
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<p>हम बतला चुके हैं कि शुरू में छोटे-छोटे समुद्री जानवर और पानी में होनेवाले पौधे दुनिया की जानदार च

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आदमी कब पैदा हुआ- नेहरू/ प्रेमचंद

28 अक्टूबर 2021
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<p>मैंने तुम्हें पिछले खत में बतलाया था कि पहले दुनिया में बहुत नीचे दरजे के जानवर पैदा हुए और धीरे-

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शुरू के आदमी- नेहरू/ प्रेमचंद

28 अक्टूबर 2021
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<p>मैंने अपने पिछले खत में लिखा था कि आदमी और जानवर में सिर्फ अक्ल का फर्क है। अक्ल ने आदमी को उन बड

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तरह- तरह की कौमें क्योंकर बनीं- नेहरू/ प्रेमचंद

29 अक्टूबर 2021
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<p>अपने पिछले खत में मैंने नए पत्थर-युग के आदमियों का जिक्र किया था जो खासकर झीलों के बीच में मकानों

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आदमियों की कौमें और जबानें- नेहरू/ प्रेमचंद

29 अक्टूबर 2021
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<p>हम यह नहीं कह सकते कि दुनिया के किस हिस्से में पहले-पहल आदमी पैदा हुए। न हमें यही मालूम है कि शुर

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जबानों का आपस में रिश्ता- नेहरू/ प्रेमचंद

29 अक्टूबर 2021
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<p>हम बतला चुके हैं कि आर्य बहुत-से मुल्कों में फैल गए और जो कुछ भी उनकी जबान थी उसे अपने साथ लेते ग

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सभ्यता क्या है?- नेहरू/ प्रेमचंद

30 अक्टूबर 2021
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<p>मैं आज तुम्हें पुराने जमाने की सभ्यता का कुछ हाल बताता हूँ। लेकिन इसके पहले हमें यह समझ लेना चाहि

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जातियों का बनना- नेहरू/ प्रेमचंद

30 अक्टूबर 2021
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<p>मैंने पिछले खतों में तुम्हें बतलाया है कि शुरू में जब आदमी पैदा हुआ तो वह बहुत कुछ जानवरों से मिल

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मजहब की शुरुआत और काम का बंटवारा- नेहरू/ प्रेमचंद

30 अक्टूबर 2021
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<p>पिछले खत में मैंने तुम्हें बतलाया था कि पुराने जमाने में आदमी हर एक चीज से डरता था और खयाल करता थ

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खेती से पैदा हुई तब्दीलियां- नेहरू/ प्रेमचंद

1 नवम्बर 2021
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<p>अपने पिछले खत में मैंने कामों के अलग-अलग किए जाने का कुछ हाल बतलाया था। बिल्कुल शुरू में जब आदमी

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खानदान का सरगना कैसे बना- नेहरू/ प्रेमचंद

1 नवम्बर 2021
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<p>मुझे भय है कि मेरे खत कुछ पेचीदा होते जा रहे हैं। लेकिन अब जिंदगी भी तो पेचीदा हो गई है। पुराने ज

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सरगना का इख्तियार कैसे बढ़ा- नेहरू/ प्रेमचंद

1 नवम्बर 2021
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<p>मुझे उम्मीद है कि पुरानी जातियों और उनके बुजुर्गों का हाल तुम्हें रूखा न मालूम होता होगा।</p> <p>

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सरगना राजा हो गया- नेहरू/ प्रेमचंद

3 नवम्बर 2021
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<p>बूढ़े सरगना ने हमारा बहुत-सा वक्त ले लिया। लेकिन हम उससे जल्द ही फुर्सत पा जाएंगे या यों कहो उसका

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शुरू का रहन-सहन- नेहरू/ प्रेमचंद

3 नवम्बर 2021
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<p>सरगनों और राजाओं की चर्चा हम काफी कर चुके। अब हम उस जमाने के रहन-सहन और आदमियों का कुछ हाल लिखेंग

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पुरानी दुनिया के बडे़-बड़े शहर- नेहरू/ प्रेमचंद

3 नवम्बर 2021
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<p>मैं लिख चुका हूँ कि आदमियों ने पहले-पहल बड़ी-बड़ी नदियों के पास और उपजाऊ घाटियों में बस्तियाँ बना

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मिस्र और क्रीट- नेहरू/ प्रेमचंद

3 नवम्बर 2021
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<p>पुराने जमाने में शहरों और गाँवों में किस तरह के लोग रहते थे? उनका कुछ हाल उनके बनाए हुए बड़े-बड़े

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चीन और हिंदुस्तान- नेहरू/ प्रेमचंद

6 नवम्बर 2021
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<p>हम लिख चुके हैं कि शुरू में मेसोपोटैमिया, मिस्र और भूमध्‍य सागर के छोटे-से टापू क्रीट में सभ्यता

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समुद्री सफर और व्यापार- नेहरू/ प्रेमचंद

6 नवम्बर 2021
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<p>फिनीशियन भी पुराने जमाने की एक सभ्य जाति थी। उसकी नस्ल भी वही थी जो यहूदियों और अरबों की है। वे ख

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भाषा, लिखावट और गिनती- नेहरू/ प्रेमचंद

6 नवम्बर 2021
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<p>हम तरह-तरह की भाषाओं का पहले ही जिक्र कर चुके हैं और दिखा चुके हैं कि उनका आपस में क्या नाता है।

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आदमियों के अलग-अलग दरजे- नेहरू/ प्रेमचंद

10 नवम्बर 2021
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<p>लड़के, लड़कियों और सयानों को भी इतिहास अकसर एक अजीब ढंग से पढ़ाया जाता है। उन्हें राजाओं और दूसरे

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राजा, मंदिर और पुजारी- नेहरू/ प्रेमचंद

10 नवम्बर 2021
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<p>हमने पिछले खत में लिखा था कि आदमियों के पाँच दरजे बन गए। सबसे बड़ी जमात मजदूर और किसानों की थी। क

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पीछे की तरफ एक नजर- नेहरू/ प्रेमचंद

10 नवम्बर 2021
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<p>तुम मेरी चिट्ठियों से ऊब गई होगी! जरा दम लेना चाहती होगी। खैर, कुछ अरसे</p> <p>तक मैं तुम्हें नई

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फॉसिल और पुराने खंडहर- नेहरू/ प्रेमचंद

10 नवम्बर 2021
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<p>मैंने अरसे से तुम्हें कोई खत नहीं लिखा। पिछले दो खतों में हमने उस पुराने जमाने पर एक नजर डाली थी

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