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मजहब की शुरुआत और काम का बंटवारा- नेहरू/ प्रेमचंद

30 अक्टूबर 2021

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पिछले खत में मैंने तुम्हें बतलाया था कि पुराने जमाने में आदमी हर एक चीज से डरता था और खयाल करता था कि उस पर मुसीबतें लानेवाले देवता हैं जो क्रोधी हैं और इर्ष्‍या करते है। उसे ये फर्जी देवता जंगल, पहाड़, नदी, बादल सभी जगह नजर आते थे। देवता को वह दयालु और नेक नहीं समझता था, उसके खयाल में वह बहुत ही क्रोधी था और बात-बात पर झल्ला उठता था। और चूँकि वे उसके गुस्से से डरते थे इसलिए वे उसे भेंट देकर, खासकर खाना पहुँचा कर, हर तरह की रिश्वत देने की कोशिश करते रहते थे। जब कोई बड़ी आफत आ जाती थी, जैसे भूचाल या बाढ़ या महामारी जिसमें बहुत-से आदमी मर जाते थे, तो वे लोग डर जाते थे और सोचते थे कि देवता नाराज हैं। उन्हें खुश करने के लिए वे मर्दों-औरतों का बलिदान करते, यहाँ तक कि अपने ही बच्चों को मार कर देवताओं को चढ़ा देते। यही बड़ी भयानक बात मालूम होती है लेकिन डरा हुआ आदमी जो कुछ कर बैठे, थोड़ा है।

इसी तरह मजहब शुरू हुआ होगा। इसलिए मजहब पहले डर के रूप में आया और जो बात डर से की जाए बुरी है। तुम्हें मालूम है कि मजहब हमें बहुत सी अच्छी-अच्छी बातें सिखाता है। जब तुम बड़ी हो जाओगी तो तुम दुनिया के मज़हबों का हाल पढ़ोगी और तुम्हें मालूम होगा कि मजहब के नाम पर क्या-क्या अच्छी और बुरी बातें की गई हैं। यहाँ हमें सिर्फ यह देखना है कि मजहब का खयाल कैसे पैदा हुआ और क्योंकर बढ़ा। लेकिन चाहे वह जिस तरह बढ़ा हो, हम आज भी लोगों को मजहब के नाम पर एक दूसरे से लड़ते और सिर फोड़ते देखते हैं। बहुत-से आदमियों के लिए मजहब आज भी वैसी ही डरावनी चीज है। वह अपना वक्त फर्जी देवताओं को खुश करने के लिए मंदिरों में पूजा, चढ़ाने और जानवरों की कुर्बानी करने में खर्च करते हैं।

इससे मालूम होता है कि शुरू में आदमी को कितनी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था। उसे रोज का खाना तलाश करना पड़ता था, नहीं तो भूखों मर जाता। उन दिनों कोई आलसी आदमी जिंदा न रह सकता था। कोई ऐसा भी नहीं कर सकता था कि एक ही दिन बहुत-सा खाना जमा कर ले और बहुत दिनों तक आराम से पड़ा रहे।

जब जातियाँ (फिरके) बन गईं, तो आदमी को कुछ सुविधा हो गई। एक जाति के सब आदमी मिल कर उससे ज्यादा खाना जमा कर लेते थे जितना कि वे अलग-अलग कर सकते थे। तुम जानती हो कि मिल कर काम करना या सहयोग, ऐसे बहुत से काम करने में मदद देता है जो हम अकेले नहीं कर सकते। एक या दो आदमी कोई भारी बोझ नहीं उठा सकते लेकिन कई आदमी मिल कर आसानी से उठा ले जा सकते हैं। दूसरी बड़ी तरक्‍की जो उस जमाने में हुई वह खेती थी। तुम्हें यह सुन कर ताज्जुब होगा कि खेती का काम पहले कुछ चींटियों ने शुरू किया। मेरा यह मतलब नहीं है कि चींटियाँ बीज बोतीं, हल चलातीं या खेती काटती हैं। मगर वे कुछ इसी तरह की बातें करती हैं। अगर उन्हें ऐसी झाड़ी मिलती है, जिसके बीज वे खाती हों, तो वे बड़ी होशियारी से उसके आस-पास की घास निकाल डालती हैं। इससे वह दरख्त ज्यादा फलता-फूलता है और बढ़ता है। शायद किसी जमाने में आदमियों ने भी यही किया होगा जो चींटियाँ करती हैं। तब उन्हें यह समझ क्या थी कि खेती क्या चीज है। इसके जानने में उन्हें एक जमाना गुजर गया होगा और तब उन्हें मालूम हुआ होगा कि बीज कैसे बोया जाता है।

खेती शुरू हो जाने पर खाना मिलना बहुत आसान हो गया। आदमी को खाने के लिए सारे दिन शिकार नही करना पड़ता था। उसकी जिंदगी पहले से ज्यादा आराम से कटने लगी। इसी जमाने में एक और बड़ी तब्दीली पैदा हुई। खेती के पहले हर आदमी शिकारी था और शिकार ही उसका एक काम था। औरतें शायद बच्चों की देख-रेख करती होंगी और फल बटोरती होंगी। लेकिन जब खेती शुरू हो गई तो तरह-तरह के काम निकल आए। खेतों में भी काम करना पड़ता था, शिकार करना, गाय-बैलों की देख-भाल करना भी जरूरी था। औरतें शायद गायों की देखभाल करतीं थीं और उनको दुहती थीं। कुछ आदमी एक तरह का काम करने लगे, कुछ दूसरी तरह का।

आज तुम्हें दुनिया में हर एक आदमी एक खास किस्‍म का काम करता हुआ दिखाई देता है। कोई डाक्टर है, कोई सड़कों और पुलों को बनानेवाला इंजीनियर, कोई बढ़ई, कोई लुहार, कोई घरों का बनानेवाला, कोई मोची या दरजी वगैरह। हर एक आदमी का अपना अलग पेशा है और दूसरे पेशों के बारे में वह कुछ नहीं जानता। इसे काम का बँटना कहते हैं। अगर काई आदमी एक ही काम करे तो उसे बहुत अच्छी तरह करेगा। बहुत-से काम वह इतनी अच्छी तरह पूरे नहीं कर सकता, दुनिया में आज-कल इसी तरह काम बँटा हुआ है।

जब खेती शुरू हुई तो पुरानी जातियों में इसी तरह धीरे-धीरे काम का बँटना शुरू हुआ।

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रचनाएँ
पिता के पत्र पुत्री के नाम- जवाहरलाल नेहरू
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आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इसमें अपनी एकलौती बेटी इंदिरा नेहरू का जिक्र किया था। जिसका सारांश इस प्रकार है- एक खत एकाएक खत्म हो जाता है। गर्मी का मौसम खत्म होता है और इंदिरा पहाड़ से उतर आई। फिर ऐसे खत लिखने का मौका मुझे नहीं मिला। उसके बाद के साल वह पहाड़ नहीं गई और दो साल बाद 1630 में मुझे नैनी की जो पहाड़ नहीं है, यात्रा करनी पड़ी। नैनी जेल में कुछ और पत्र मैंने इंदिरा को लिखे लेकिन वे भी अधूरे रह गए और भौर छोड़ दिया गया। ये नए खत इस किताब में शामिल नहीं है।
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पिता के पत्र पुत्री के नाम

2 अक्टूबर 2021
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<p><br></p> <figure><img src="https://shabd.s3.us-east-2.amazonaws.com/articles/61580f00a9e73b20b620

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संसार पुस्तक है- नेहरू/ प्रेमचंद

26 अक्टूबर 2021
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<p>जब तुम मेरे साथ रहती हो तो अकसर मुझसे बहुत-सी बातें पूछा करती हो और मैं उनका जवाब देने की कोशिश क

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शुरू का इतिहास कैसे लिखा गया - जवाहरलाल नेहरू

26 अक्टूबर 2021
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<p>अपने पहले पन्‍ने में मैंने तुम्हें बताया था कि हमें संसार की किताब से ही दुनिया के शुरू का हाल मा

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जमीन कैसे बनी - जवाहरलाल नेहरू

27 अक्टूबर 2021
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<p>तुम जानती हो कि जमीन सूरज के चारों तरफ घूमती है और चाँद जमीन के चारों तरफ घूमता है। शायद तुम्हें

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जानवर कब पैदा हुए - जवाहरलाल नेहरू

27 अक्टूबर 2021
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<p>हम बतला चुके हैं कि शुरू में छोटे-छोटे समुद्री जानवर और पानी में होनेवाले पौधे दुनिया की जानदार च

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आदमी कब पैदा हुआ- नेहरू/ प्रेमचंद

28 अक्टूबर 2021
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<p>मैंने तुम्हें पिछले खत में बतलाया था कि पहले दुनिया में बहुत नीचे दरजे के जानवर पैदा हुए और धीरे-

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शुरू के आदमी- नेहरू/ प्रेमचंद

28 अक्टूबर 2021
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<p>मैंने अपने पिछले खत में लिखा था कि आदमी और जानवर में सिर्फ अक्ल का फर्क है। अक्ल ने आदमी को उन बड

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तरह- तरह की कौमें क्योंकर बनीं- नेहरू/ प्रेमचंद

29 अक्टूबर 2021
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<p>अपने पिछले खत में मैंने नए पत्थर-युग के आदमियों का जिक्र किया था जो खासकर झीलों के बीच में मकानों

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आदमियों की कौमें और जबानें- नेहरू/ प्रेमचंद

29 अक्टूबर 2021
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<p>हम यह नहीं कह सकते कि दुनिया के किस हिस्से में पहले-पहल आदमी पैदा हुए। न हमें यही मालूम है कि शुर

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जबानों का आपस में रिश्ता- नेहरू/ प्रेमचंद

29 अक्टूबर 2021
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<p>हम बतला चुके हैं कि आर्य बहुत-से मुल्कों में फैल गए और जो कुछ भी उनकी जबान थी उसे अपने साथ लेते ग

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सभ्यता क्या है?- नेहरू/ प्रेमचंद

30 अक्टूबर 2021
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<p>मैं आज तुम्हें पुराने जमाने की सभ्यता का कुछ हाल बताता हूँ। लेकिन इसके पहले हमें यह समझ लेना चाहि

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जातियों का बनना- नेहरू/ प्रेमचंद

30 अक्टूबर 2021
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<p>मैंने पिछले खतों में तुम्हें बतलाया है कि शुरू में जब आदमी पैदा हुआ तो वह बहुत कुछ जानवरों से मिल

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मजहब की शुरुआत और काम का बंटवारा- नेहरू/ प्रेमचंद

30 अक्टूबर 2021
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<p>पिछले खत में मैंने तुम्हें बतलाया था कि पुराने जमाने में आदमी हर एक चीज से डरता था और खयाल करता थ

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खेती से पैदा हुई तब्दीलियां- नेहरू/ प्रेमचंद

1 नवम्बर 2021
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<p>अपने पिछले खत में मैंने कामों के अलग-अलग किए जाने का कुछ हाल बतलाया था। बिल्कुल शुरू में जब आदमी

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खानदान का सरगना कैसे बना- नेहरू/ प्रेमचंद

1 नवम्बर 2021
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<p>मुझे भय है कि मेरे खत कुछ पेचीदा होते जा रहे हैं। लेकिन अब जिंदगी भी तो पेचीदा हो गई है। पुराने ज

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सरगना का इख्तियार कैसे बढ़ा- नेहरू/ प्रेमचंद

1 नवम्बर 2021
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<p>मुझे उम्मीद है कि पुरानी जातियों और उनके बुजुर्गों का हाल तुम्हें रूखा न मालूम होता होगा।</p> <p>

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सरगना राजा हो गया- नेहरू/ प्रेमचंद

3 नवम्बर 2021
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<p>बूढ़े सरगना ने हमारा बहुत-सा वक्त ले लिया। लेकिन हम उससे जल्द ही फुर्सत पा जाएंगे या यों कहो उसका

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शुरू का रहन-सहन- नेहरू/ प्रेमचंद

3 नवम्बर 2021
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<p>सरगनों और राजाओं की चर्चा हम काफी कर चुके। अब हम उस जमाने के रहन-सहन और आदमियों का कुछ हाल लिखेंग

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पुरानी दुनिया के बडे़-बड़े शहर- नेहरू/ प्रेमचंद

3 नवम्बर 2021
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<p>मैं लिख चुका हूँ कि आदमियों ने पहले-पहल बड़ी-बड़ी नदियों के पास और उपजाऊ घाटियों में बस्तियाँ बना

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मिस्र और क्रीट- नेहरू/ प्रेमचंद

3 नवम्बर 2021
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<p>पुराने जमाने में शहरों और गाँवों में किस तरह के लोग रहते थे? उनका कुछ हाल उनके बनाए हुए बड़े-बड़े

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चीन और हिंदुस्तान- नेहरू/ प्रेमचंद

6 नवम्बर 2021
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<p>हम लिख चुके हैं कि शुरू में मेसोपोटैमिया, मिस्र और भूमध्‍य सागर के छोटे-से टापू क्रीट में सभ्यता

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समुद्री सफर और व्यापार- नेहरू/ प्रेमचंद

6 नवम्बर 2021
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<p>फिनीशियन भी पुराने जमाने की एक सभ्य जाति थी। उसकी नस्ल भी वही थी जो यहूदियों और अरबों की है। वे ख

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भाषा, लिखावट और गिनती- नेहरू/ प्रेमचंद

6 नवम्बर 2021
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<p>हम तरह-तरह की भाषाओं का पहले ही जिक्र कर चुके हैं और दिखा चुके हैं कि उनका आपस में क्या नाता है।

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आदमियों के अलग-अलग दरजे- नेहरू/ प्रेमचंद

10 नवम्बर 2021
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<p>लड़के, लड़कियों और सयानों को भी इतिहास अकसर एक अजीब ढंग से पढ़ाया जाता है। उन्हें राजाओं और दूसरे

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राजा, मंदिर और पुजारी- नेहरू/ प्रेमचंद

10 नवम्बर 2021
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<p>हमने पिछले खत में लिखा था कि आदमियों के पाँच दरजे बन गए। सबसे बड़ी जमात मजदूर और किसानों की थी। क

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पीछे की तरफ एक नजर- नेहरू/ प्रेमचंद

10 नवम्बर 2021
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<p>तुम मेरी चिट्ठियों से ऊब गई होगी! जरा दम लेना चाहती होगी। खैर, कुछ अरसे</p> <p>तक मैं तुम्हें नई

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फॉसिल और पुराने खंडहर- नेहरू/ प्रेमचंद

10 नवम्बर 2021
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<p>मैंने अरसे से तुम्हें कोई खत नहीं लिखा। पिछले दो खतों में हमने उस पुराने जमाने पर एक नजर डाली थी

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