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शुरू का रहन-सहन- नेहरू/ प्रेमचंद

3 नवम्बर 2021

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सरगनों और राजाओं की चर्चा हम काफी कर चुके। अब हम उस जमाने के रहन-सहन और आदमियों का कुछ हाल लिखेंगे।

हमें उस पुराने जमाने के आदमियों का बहुत ज्यादा हाल तो मालूम नहीं, फिर भी पुराने पत्थर के युग और नए पत्थर के युग के आदमियों से कुछ ज्यादा ही मालूम है। आज भी बड़ी-बड़ी इमारतों के खंडहर मौजूद हैं जिन्हें बने हजारों साल हो गए। उन पुरानी इमारतों, मंदिरों और महलों को देख कर हम कुछ अन्दाजा कर सकते हैं कि वे पुराने आदमी कैसे थे और उन्होंने क्या-क्या काम किए। उन पुरानी इमारतों की संगतराशी और नक्‍काशी से खासकर बड़ी मदद मिलती है। इन पत्थर के कामों से हमें कभी-कभी इसका पता चल जाता है कि वे लोग कैसे कपड़े पहनते थे। और भी बहुत-सी बातें मालूम हो जाती हैं।

हम यह तो ठीक-ठीक नहीं कह सकते कि पहले-पहल आदमी कहाँ आबाद हुए और रहने-सहने के तरीके निकाले। बाज आदमियों का खयाल है कि जहाँ एटलांटिक सागर है वहाँ एटलांटिक नाम का एक बड़ा मुल्क था। कहते हैं कि इस मुल्क में रहनेवालों का रहन-सहन बहुत ऊँचे दरजे का था, लेकिन किसी वजह से सारा मुल्क एटलांटिक सागर में समा गया और अब उसका कोई हिस्सा बाकी नहीं है। लेकिन किस्से कहानियों को छोड़ कर हमारे पास इसका कोई सबूत नहीं है, इसलिए उसका जिक्र करने की जरूरत नहीं।

कुछ लोग यह भी कहते हैं कि पुराने जमाने में अमरीका में ऊँचे दरजे की सभ्यता फैली हुई थी। तुम्हें मालूम है कि कोलंबस को अमरीका का पता लगानेवाला कहा जाता है। लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि कोलम्बस के जाने से पहले अमरीका था ही नहीं। इसका खाली इतना मतलब है कि यूरोपवालों को कोलंबस के पहले उसका पता न था। कोलंबस के जाने के बहुत पहले से वह मुल्क आबाद और सभ्य था। युकेटन में, जो उत्तरी अमरीका के मेक्सिको राज्य में है, और दक्षिनी अमरीका के पेरू राज्य में, पुरानी इमारतों के खंडहर हमें मिलते हैं। इससे इसका यकीन हो जाता है कि बहुत पुराने जमाने में भी पेरू और युकेटन के लोगों में सभ्यता फैली हुई थी। लेकिन उनका और ज्यादा हाल हमें अब तक नहीं मालूम हो सका। शायद कुछ दिनों के बाद हमें उनके बारे में कुछ और बातें मालूम हों।

यूरोप और एशिया को मिला कर यूरेशिया कहते हैं। यूरेशिया में सबसे पहले मेसोपोटैमिया, मिस्र, क्रीट, हिंदुस्तानी और चीन में सभ्यता फैली। मिस्र अब अफ्रीका में है लेकिन हम इसे यूरेशिया में रख सकते हैं क्योंकि वह इससे बहुत नजदीक है।

पुरानी जातियाँ जो इधर-उधर घूमती-फिरती थीं, जब कहीं आबाद होना चाहती होंगी तो वे कैसे जगह पसंद करती होंगी? वह ऐसी जगह होती होगी जहाँ वे आसानी से खाना पा सकें। उनका कुछ खाना खेती से जमीन में पैदा होता था। और खेती के लिए पानी का होना जरूरी है। पानी न मिले तो खेत सूख जाते हैं और उनमें कुछ नहीं पैदा होता। तुम्हें मालूम है कि जब चौमासे में हिंदुस्तान में काफी बारिश नहीं होती तो अनाज बहुत कम होता है और अकाल पड़ जाता है। गरीब आदमी भूखों मरने लगते हैं। पानी के बगैर काम नहीं चल सकता। पुराने जमाने के आदमियों को ऐसी ही जमीन चुननी पड़ी होगी जहाँ पानी की बहुतायत हो। यही हुआ भी।

मेसोपोटैमिया में वे दजला और फरात इन दो बड़ी नदियों के बीच में आबाद हुए। मिस्र में नील नदी के किनारे। हिंदुस्तान में उनके करीब-करीब सभी शहर सिंधु, गंगा, जमुना इत्यादि बड़ी-बड़ी नदियों के किनारे आबाद हुए। पानी उनके लिए इतना जरूरी था कि वे इन नदियों को देवता समझने लगे जो उन्हें खाना और आराम की दूसरी चीजें देता था। मिस्र में नील को 'पिता नील' कहते थे और उसकी पूजा करते थे। हिंदुस्तान में गंगा की पूजा होने लगी और अब तक उसे पवित्र समझा जाता है। लोग उसे 'गंगा माई' कहते हैं और तुमने यात्रियों को 'गंगा माई की जय' का शोर मचाते सुना होगा। यह समझना मुश्किल नहीं है कि क्यों वे नदियों की पूजा करते थे, क्योंकि नदियों से उनके सभी काम निकलते थे। उनसे सिर्फ पानी ही न मिलता था, अच्छी मिट्टी और बालू भी मिलती थी जिससे उनके खेत उपजाऊ हो जाते थे। नदी ही के पानी और मिट्टी से तो अनाज के ढेर लग जाते थे, फिर वे नदियों को क्यों न 'माता' और 'पिता' कहते। लेकिन आदमियों की आदत है कि असली सबब को भूल जाते हैं। वे बिना सोचे-समझे लकीर पीटते चले जाते हैं। हमें याद रखना चाहिए कि नील और गंगा की बड़ाई सिर्फ इसलिए है कि उनसे आदमियों को अनाज और पानी मिलता है।

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रचनाएँ
पिता के पत्र पुत्री के नाम- जवाहरलाल नेहरू
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आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इसमें अपनी एकलौती बेटी इंदिरा नेहरू का जिक्र किया था। जिसका सारांश इस प्रकार है- एक खत एकाएक खत्म हो जाता है। गर्मी का मौसम खत्म होता है और इंदिरा पहाड़ से उतर आई। फिर ऐसे खत लिखने का मौका मुझे नहीं मिला। उसके बाद के साल वह पहाड़ नहीं गई और दो साल बाद 1630 में मुझे नैनी की जो पहाड़ नहीं है, यात्रा करनी पड़ी। नैनी जेल में कुछ और पत्र मैंने इंदिरा को लिखे लेकिन वे भी अधूरे रह गए और भौर छोड़ दिया गया। ये नए खत इस किताब में शामिल नहीं है।
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पिता के पत्र पुत्री के नाम

2 अक्टूबर 2021
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<p><br></p> <figure><img src="https://shabd.s3.us-east-2.amazonaws.com/articles/61580f00a9e73b20b620

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संसार पुस्तक है- नेहरू/ प्रेमचंद

26 अक्टूबर 2021
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<p>जब तुम मेरे साथ रहती हो तो अकसर मुझसे बहुत-सी बातें पूछा करती हो और मैं उनका जवाब देने की कोशिश क

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शुरू का इतिहास कैसे लिखा गया - जवाहरलाल नेहरू

26 अक्टूबर 2021
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<p>अपने पहले पन्‍ने में मैंने तुम्हें बताया था कि हमें संसार की किताब से ही दुनिया के शुरू का हाल मा

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जमीन कैसे बनी - जवाहरलाल नेहरू

27 अक्टूबर 2021
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<p>तुम जानती हो कि जमीन सूरज के चारों तरफ घूमती है और चाँद जमीन के चारों तरफ घूमता है। शायद तुम्हें

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जानवर कब पैदा हुए - जवाहरलाल नेहरू

27 अक्टूबर 2021
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<p>हम बतला चुके हैं कि शुरू में छोटे-छोटे समुद्री जानवर और पानी में होनेवाले पौधे दुनिया की जानदार च

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आदमी कब पैदा हुआ- नेहरू/ प्रेमचंद

28 अक्टूबर 2021
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<p>मैंने तुम्हें पिछले खत में बतलाया था कि पहले दुनिया में बहुत नीचे दरजे के जानवर पैदा हुए और धीरे-

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शुरू के आदमी- नेहरू/ प्रेमचंद

28 अक्टूबर 2021
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<p>मैंने अपने पिछले खत में लिखा था कि आदमी और जानवर में सिर्फ अक्ल का फर्क है। अक्ल ने आदमी को उन बड

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तरह- तरह की कौमें क्योंकर बनीं- नेहरू/ प्रेमचंद

29 अक्टूबर 2021
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<p>अपने पिछले खत में मैंने नए पत्थर-युग के आदमियों का जिक्र किया था जो खासकर झीलों के बीच में मकानों

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आदमियों की कौमें और जबानें- नेहरू/ प्रेमचंद

29 अक्टूबर 2021
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<p>हम यह नहीं कह सकते कि दुनिया के किस हिस्से में पहले-पहल आदमी पैदा हुए। न हमें यही मालूम है कि शुर

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जबानों का आपस में रिश्ता- नेहरू/ प्रेमचंद

29 अक्टूबर 2021
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<p>हम बतला चुके हैं कि आर्य बहुत-से मुल्कों में फैल गए और जो कुछ भी उनकी जबान थी उसे अपने साथ लेते ग

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सभ्यता क्या है?- नेहरू/ प्रेमचंद

30 अक्टूबर 2021
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<p>मैं आज तुम्हें पुराने जमाने की सभ्यता का कुछ हाल बताता हूँ। लेकिन इसके पहले हमें यह समझ लेना चाहि

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जातियों का बनना- नेहरू/ प्रेमचंद

30 अक्टूबर 2021
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<p>मैंने पिछले खतों में तुम्हें बतलाया है कि शुरू में जब आदमी पैदा हुआ तो वह बहुत कुछ जानवरों से मिल

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मजहब की शुरुआत और काम का बंटवारा- नेहरू/ प्रेमचंद

30 अक्टूबर 2021
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<p>पिछले खत में मैंने तुम्हें बतलाया था कि पुराने जमाने में आदमी हर एक चीज से डरता था और खयाल करता थ

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खेती से पैदा हुई तब्दीलियां- नेहरू/ प्रेमचंद

1 नवम्बर 2021
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<p>अपने पिछले खत में मैंने कामों के अलग-अलग किए जाने का कुछ हाल बतलाया था। बिल्कुल शुरू में जब आदमी

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खानदान का सरगना कैसे बना- नेहरू/ प्रेमचंद

1 नवम्बर 2021
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<p>मुझे भय है कि मेरे खत कुछ पेचीदा होते जा रहे हैं। लेकिन अब जिंदगी भी तो पेचीदा हो गई है। पुराने ज

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सरगना का इख्तियार कैसे बढ़ा- नेहरू/ प्रेमचंद

1 नवम्बर 2021
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<p>मुझे उम्मीद है कि पुरानी जातियों और उनके बुजुर्गों का हाल तुम्हें रूखा न मालूम होता होगा।</p> <p>

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सरगना राजा हो गया- नेहरू/ प्रेमचंद

3 नवम्बर 2021
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<p>बूढ़े सरगना ने हमारा बहुत-सा वक्त ले लिया। लेकिन हम उससे जल्द ही फुर्सत पा जाएंगे या यों कहो उसका

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शुरू का रहन-सहन- नेहरू/ प्रेमचंद

3 नवम्बर 2021
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<p>सरगनों और राजाओं की चर्चा हम काफी कर चुके। अब हम उस जमाने के रहन-सहन और आदमियों का कुछ हाल लिखेंग

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पुरानी दुनिया के बडे़-बड़े शहर- नेहरू/ प्रेमचंद

3 नवम्बर 2021
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<p>मैं लिख चुका हूँ कि आदमियों ने पहले-पहल बड़ी-बड़ी नदियों के पास और उपजाऊ घाटियों में बस्तियाँ बना

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मिस्र और क्रीट- नेहरू/ प्रेमचंद

3 नवम्बर 2021
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<p>पुराने जमाने में शहरों और गाँवों में किस तरह के लोग रहते थे? उनका कुछ हाल उनके बनाए हुए बड़े-बड़े

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चीन और हिंदुस्तान- नेहरू/ प्रेमचंद

6 नवम्बर 2021
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<p>हम लिख चुके हैं कि शुरू में मेसोपोटैमिया, मिस्र और भूमध्‍य सागर के छोटे-से टापू क्रीट में सभ्यता

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समुद्री सफर और व्यापार- नेहरू/ प्रेमचंद

6 नवम्बर 2021
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<p>फिनीशियन भी पुराने जमाने की एक सभ्य जाति थी। उसकी नस्ल भी वही थी जो यहूदियों और अरबों की है। वे ख

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भाषा, लिखावट और गिनती- नेहरू/ प्रेमचंद

6 नवम्बर 2021
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<p>हम तरह-तरह की भाषाओं का पहले ही जिक्र कर चुके हैं और दिखा चुके हैं कि उनका आपस में क्या नाता है।

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आदमियों के अलग-अलग दरजे- नेहरू/ प्रेमचंद

10 नवम्बर 2021
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<p>लड़के, लड़कियों और सयानों को भी इतिहास अकसर एक अजीब ढंग से पढ़ाया जाता है। उन्हें राजाओं और दूसरे

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राजा, मंदिर और पुजारी- नेहरू/ प्रेमचंद

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<p>हमने पिछले खत में लिखा था कि आदमियों के पाँच दरजे बन गए। सबसे बड़ी जमात मजदूर और किसानों की थी। क

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पीछे की तरफ एक नजर- नेहरू/ प्रेमचंद

10 नवम्बर 2021
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<p>तुम मेरी चिट्ठियों से ऊब गई होगी! जरा दम लेना चाहती होगी। खैर, कुछ अरसे</p> <p>तक मैं तुम्हें नई

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फॉसिल और पुराने खंडहर- नेहरू/ प्रेमचंद

10 नवम्बर 2021
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<p>मैंने अरसे से तुम्हें कोई खत नहीं लिखा। पिछले दो खतों में हमने उस पुराने जमाने पर एक नजर डाली थी

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