shabd-logo

समुद्री सफर और व्यापार- नेहरू/ प्रेमचंद

6 नवम्बर 2021

15 बार देखा गया 15

फिनीशियन भी पुराने जमाने की एक सभ्य जाति थी। उसकी नस्ल भी वही थी जो यहूदियों और अरबों की है। वे खासकर एशिया माइनर के पश्चिमी किनारे पर रहते थे, जो आजकल का तुर्की है। उनके खास-खास शहर एकर, टायर और सिडोन भूमध्‍य समुद्र के किनारे पर थे। वे व्यापार के लिए लंबे सफर करने में मशहूर थे। वे भूमध्‍य समुद्र से होते हुए सीधे इंग्लैंड तक चले जाते थे। शायद वे हिंदुस्तान भी आए हों।

अब हमें दो बड़ी-बड़ी बातों की दिलचस्प शुरुआत का पता चलता है। समुद्री सफर और व्यापार। आजकल की तरह उस जमाने में अच्छे अगिनवोट और जहाज न थे। सबसे पहली नाव किसी दरख्त के तने को खोखला कर बनी होगी। इनके चलने के लिए डंडों से काम लिया जाता था और कभी-कभी हवा के जोर के लिए तिरपाल लगा देते थे। उस जमाने में समुद्र के सफर बहुत दिलचस्प और भयानक रहे होंगे। अरब सागर को एक छोटी-सी किश्ती पर, जो डंडों और पालों से चलती, तय करने का खयाल तो करो। उनमें चलने-फिरने के लिए बहुत कम जगह रहती होगी और हवा का एक हलका-सा झोंका भी उसे तले ऊपर कर देता है। अक्सर वह डूब भी जाती थी। खुले समुद्र में एक छोटी-सी किश्ती पर निकलना बहादुरों ही का काम था। उसमें बड़े-बड़े खतरे थे और उनमें बैठनेवाले आदमियों को महीनों तक जमीन के दर्शन न होते थे। अगर खाना कम पड़ जाता था तो उन्हें बीच समुद्र में कोई चीज न मिल सकती थी, जब तक कि वे किसी मछली या चिड़िया का शिकार न करें। समुद्र खतरों और जोखिम से भरा हुआ था। पुराने जमाने के मुसाफिरों को जो खतरे पेश आते थे उसका बहुत कुछ हाल किताबों में मौजूद है।

लेकिन इस जोखिम के होते हुए भी लोग समुद्री सफर करते थे। मुमकिन है कुछ लोग इसलिए सफर करते हों कि उन्हें बहादुरी के काम पसंद थे; लेकिन ज्यादातर लोग सोने और दौलत के लालच से सफर करते थे। वे व्यापार करने जाते थे; माल खरीदते थे और बेचते थे; और धन कमाते थे। व्यापार क्या है? आज तुम बड़ी-बड़ी दुकानें देखती हो और उनमें जा कर अपनी जरूरत की चीज खरीद लेना कितना सहज है। लेकिन क्या तुमने ध्‍यान दिया है कि जो चीजें तुम खरीदती हो वे आती कहाँ से हैं? तुम इलाहाबाद की एक दुकान में एक शाल खरीदती हो। वह कश्मीर से यहाँ तक सारा रास्ता तय करता हुआ आया होगा और ऊन कश्मीर और लद्दाख की पहाड़ियों में भेड़ों की खाल पर पैदा हुआ होगा। दाँत का मंजन जो तुम खरीदती हो शायद जहाज और रेलगाड़ियों पर होता हुआ अमरीका से आया हो। इसी तरह चीन, जापान, पेरिस या लंदन की बनी हुई चीजें भी मिल सकती हैं। विलायती कपड़े के एक छोटे-से टुकड़े को ले लो जो यहाँ बाजार में बिकता है। रुई पहले हिंदुस्तान में पैदा हुई और इंग्लैंड भेजी गई। एक बड़े कारखाने ने इसे खरीदा, साफ किया, उसका सूत बनाया और तब कपड़ा तैयार किया। यह कपड़ा फिर हिंदुस्तान आया और बाजार में बिकने लगा। बाजार में बिकने के पहले इसे लौटा-फेरी में कितने हजार मीलों का सफर करना पड़ा। यह नादानी की बात मालूम होती है कि हिंदुस्तान में पैदा होनेवाली रुई इतनी दूर इंग्लैंड भेजी जाए, वहाँ उसका कपड़ा बने और फिर हिंदुस्तान में आए। इसमें कितना वक्त, रुपया और मेहनत बरबाद हो जाती है। अगर रुई का कपड़ा हिंदुस्तान में ही बने तो वह जरूर ज्यादा सस्ता और अच्छा होगा। तुम जानती हो कि हम विलायती कपड़े नहीं खरीदते। हम खद्दर पहनते हैं क्योंकि जहाँ तक मुमकिन हो अपने मुल्क में पैदा होनेवाली चीजों को खरीदना अक्लमंदी की बात है। हम इसलिए भी खद्दर खरीदते और पहनते हैं कि उससे उन गरीब आदमियों की मदद होती है जो उसे कातते और बुनते हैं।

अब तुम्हें मालूम हो गया होगा कि आजकल व्यापार कितनी पेचीदा चीज है। बड़े-बड़े जहाज एक मुल्क का माल दूसरे देश को पहुँचाते रहते हैं। लेकिन पुराने जमाने में यह बात न थी।

जब हम पहले-पहल किसी एक जगह आबाद हुए तो हमें व्यापार करना बिल्कुल न आता था। आदमी को अपनी जरूरत की चीजें आप बनानी पड़ती थीं। यह सच है कि उस वक्त आदमी को बहुत चीजों की जरूरत न थी। जैसा तुमसे पहले कह चुका हूँ। उसके बाद जाति में काम बॉंटा जाने लगा। लोग तरह-तरह के काम करने लगे और तरह-तरह की चीजें बनाने लगे। कभी-कभी ऐसा होता होगा कि एक जाति के पास एक चीज ज्यादा होती होगी और दूसरी जाति के पास दूसरी चीज। इसलिए अपनी-अपनी चीजों को बदल लेना उनके लिए बिल्कुल सीधी बात थी। मिसाल के तौर पर एक जाति एक बोरे चने पर एक गाय देती होगी। उस जमाने में रुपया न था। चीजों का सिर्फ बदला होता था। इस तरह बदला शुरू हुआ। इसमें कभी-कभी दिक्‍कत पैदा होती होगी। एक बोरे चने या इसी तरह की किसी दूसरी चीज के लिए एक आदमी को एक गाय या दो भेड़ें ले जानी पड़ती होंगी लेकिन फिर भी व्यापार तरक्‍की करता रहा।

जब सोना और चाँदी निकलने लगा तो लोगों ने उसे व्यापार के लिए काम में लाना शुरू किया। उन्हें ले जाना ज्यादा आसान था। और धीरे-धीरे माल के बदले में सोने या चाँदी देने का रिवाज निकल पड़ा। जिस आदमी को पहले-पहल यह बात सूझी होगी वह बहुत होशियार होगा। सोने-चॉंदी के इस तरह काम में लाने से व्यापार करना बहुत आसान हो गया। लेकिन उस वक्त भी आजकल की तरह सिक्के न थे। सोना तराजू पर तौल कर दूसरे आदमी को दे दिया जाता था। उसके बहुत दिनों के बाद सिक्के का रिवाज हुआ और इससे व्यापार और बदले में और भी सुभीता हो गया। तब तौलने की जरूरत न रही क्योंकि सभी आदमी सिक्के की कीमत जानते थे। आजकल सब जगह सिक्के का रिवाज है। लेकिन हमें याद रखना चाहिए कि निरा रुपया हमारे किसी काम का नहीं है। यह हमें अपनी जरूरत की दूसरी चीजों के लेने में मदद देता है। इससे चीजों का बदलना आसान हो जाता है। तुम्हें राजा मीदास का किस्सा याद होगा जिसके पास सोना तो बहुत था लेकिन खाने को कुछ नहीं। इसलिए रुपया बेकार है। जब तक हम उससे जरूरत की चीजें न खरीद लें।

मगर आजकल भी तुम्हें देहातों में ऐसे लोग मिलेंगे जो सचमुच चीजों का बदला करते हैं और दाम नहीं देते। लेकिन आम तौर पर रुपया काम में लाया जाता है क्योंकि इसमें बहुत ज्यादा सुभीता है। बाज नादान लोग समझते हैं कि रुपया खुद ही बहुत अच्छी चीज है और वह उसे खर्च करने के बदले बटोरते और गाड़ते हैं। इससे मालूम हो जाता है कि उन्हें यह नहीं मालूम है कि रुपए का रिवाज कैसे पड़ा और यह दरअसल क्या है।

स्नेहा दुबे की अन्य किताबें

निःशुल्कअमृता प्रीतम के नौ सपनों का संग्रह  - shabd.in

अमृता प्रीतम के नौ सपनों का संग्रह

अभी पढ़ें
निःशुल्कअमृता प्रीतम की कविताएं  - shabd.in

अमृता प्रीतम की कविताएं

अभी पढ़ें
निःशुल्कCCC 8 Digital Fianance  - shabd.in

CCC 8 Digital Fianance

अभी पढ़ें
निःशुल्कभारत के प्रसिद्ध खेल  - shabd.in

भारत के प्रसिद्ध खेल

अभी पढ़ें
निःशुल्कपिता के पत्र पुत्री के नाम- जवाहरलाल नेहरू  - shabd.in

पिता के पत्र पुत्री के नाम- जवाहरलाल नेहरू

अभी पढ़ें
निःशुल्कभारतेंदु हरिषचंद्र की 'अंधेर नगरी' - shabd.in

भारतेंदु हरिषचंद्र की 'अंधेर नगरी'

अभी पढ़ें
निःशुल्कस्नेहा दुबे  की डायरी - shabd.in

स्नेहा दुबे की डायरी

अभी पढ़ें
पुस्तक लेखन प्रतियोगिता - 2023

अन्य इतिहास की किताबें

निःशुल्कराव हम्मीर देव चौहान - shabd.in
दिनेश कुमार कीर

राव हम्मीर देव चौहान

अभी पढ़ें
निःशुल्कइतिहास - हमारा अतीत है - shabd.in
दिनेश कुमार कीर

इतिहास - हमारा अतीत है

अभी पढ़ें
₹ 300/-हिमयुग में प्रेम  - shabd.in
रत्नेश्वर कुमार सिंह

हिमयुग में प्रेम

अभी पढ़ें
निःशुल्कनमस्ते - shabd.in
Kamal Singh

नमस्ते

अभी पढ़ें
निःशुल्ककमल की बुक  - shabd.in
Kamal Singh

कमल की बुक

अभी पढ़ें
निःशुल्कशहीद दिवस  - shabd.in
Neeraj Agarwal

शहीद दिवस

अभी पढ़ें
₹ 450/-इंदिरा फाइल्स  - shabd.in
विष्णु शर्मा

इंदिरा फाइल्स

अभी पढ़ें
निःशुल्कशिवाजी महाराज - shabd.in
Praveen

शिवाजी महाराज

अभी पढ़ें
₹ 599/-हे राम : गाँधी हत्याकांड की प्रामाणिक पड़ताल  - shabd.in
प्रखर श्रीवास्तव

हे राम : गाँधी हत्याकांड की प्रामाणिक पड़ताल

अभी पढ़ें
₹ 224/-सावरकर: काला पानी और उसके बाद  - shabd.in
अशोक कुमार पांडेय

सावरकर: काला पानी और उसके बाद

अभी पढ़ें
Dinesh Dubey

Dinesh Dubey

बहुत ही अच्छी जानकारी है

9 नवम्बर 2021

आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इसमें अपनी एकलौती बेटी इंदिरा नेहरू का जिक्र किया था। जिसका सारांश इस प्रकार है- एक खत एकाएक खत्म हो जाता है। गर्मी का मौसम खत्म होता है और इंदिरा पहाड़ से उतर आई। फिर ऐसे खत लिखने का मौका मुझे नहीं मिला। उसके बाद के साल वह पहाड़ नहीं गई और दो साल बाद 1630 में मुझे नैनी की जो पहाड़ नहीं है, यात्रा करनी पड़ी। नैनी जेल में कुछ और पत्र मैंने इंदिरा को लिखे लेकिन वे भी अधूरे रह गए और भौर छोड़ दिया गया। ये नए खत इस किताब में शामिल नहीं है।
1

पिता के पत्र पुत्री के नाम

2 अक्टूबर 2021

3
0
1

पिता के पत्र पुत्री के नाम

2 अक्टूबर 2021
3
0
2

संसार पुस्तक है- नेहरू/ प्रेमचंद

26 अक्टूबर 2021

1
0
2

संसार पुस्तक है- नेहरू/ प्रेमचंद

26 अक्टूबर 2021
1
0
3

शुरू का इतिहास कैसे लिखा गया - जवाहरलाल नेहरू

26 अक्टूबर 2021

0
0
3

शुरू का इतिहास कैसे लिखा गया - जवाहरलाल नेहरू

26 अक्टूबर 2021
0
0
4

जमीन कैसे बनी - जवाहरलाल नेहरू

27 अक्टूबर 2021

0
0
4

जमीन कैसे बनी - जवाहरलाल नेहरू

27 अक्टूबर 2021
0
0
5

जानवर कब पैदा हुए - जवाहरलाल नेहरू

27 अक्टूबर 2021

1
0
5

जानवर कब पैदा हुए - जवाहरलाल नेहरू

27 अक्टूबर 2021
1
0
6

आदमी कब पैदा हुआ- नेहरू/ प्रेमचंद

28 अक्टूबर 2021

0
0
6

आदमी कब पैदा हुआ- नेहरू/ प्रेमचंद

28 अक्टूबर 2021
0
0
7

शुरू के आदमी- नेहरू/ प्रेमचंद

28 अक्टूबर 2021

0
0
7

शुरू के आदमी- नेहरू/ प्रेमचंद

28 अक्टूबर 2021
0
0
8

तरह- तरह की कौमें क्योंकर बनीं- नेहरू/ प्रेमचंद

29 अक्टूबर 2021

0
0
8

तरह- तरह की कौमें क्योंकर बनीं- नेहरू/ प्रेमचंद

29 अक्टूबर 2021
0
0
9

आदमियों की कौमें और जबानें- नेहरू/ प्रेमचंद

29 अक्टूबर 2021

0
0
9

आदमियों की कौमें और जबानें- नेहरू/ प्रेमचंद

29 अक्टूबर 2021
0
0
10

जबानों का आपस में रिश्ता- नेहरू/ प्रेमचंद

29 अक्टूबर 2021

0
0
10

जबानों का आपस में रिश्ता- नेहरू/ प्रेमचंद

29 अक्टूबर 2021
0
0
11

सभ्यता क्या है?- नेहरू/ प्रेमचंद

30 अक्टूबर 2021

0
0
11

सभ्यता क्या है?- नेहरू/ प्रेमचंद

30 अक्टूबर 2021
0
0
12

जातियों का बनना- नेहरू/ प्रेमचंद

30 अक्टूबर 2021

0
0
12

जातियों का बनना- नेहरू/ प्रेमचंद

30 अक्टूबर 2021
0
0
13

मजहब की शुरुआत और काम का बंटवारा- नेहरू/ प्रेमचंद

30 अक्टूबर 2021

0
0
13

मजहब की शुरुआत और काम का बंटवारा- नेहरू/ प्रेमचंद

30 अक्टूबर 2021
0
0
14

खेती से पैदा हुई तब्दीलियां- नेहरू/ प्रेमचंद

1 नवम्बर 2021

0
0
14

खेती से पैदा हुई तब्दीलियां- नेहरू/ प्रेमचंद

1 नवम्बर 2021
0
0
15

खानदान का सरगना कैसे बना- नेहरू/ प्रेमचंद

1 नवम्बर 2021

0
0
15

खानदान का सरगना कैसे बना- नेहरू/ प्रेमचंद

1 नवम्बर 2021
0
0
16

सरगना का इख्तियार कैसे बढ़ा- नेहरू/ प्रेमचंद

1 नवम्बर 2021

1
1
16

सरगना का इख्तियार कैसे बढ़ा- नेहरू/ प्रेमचंद

1 नवम्बर 2021
1
1
17

सरगना राजा हो गया- नेहरू/ प्रेमचंद

3 नवम्बर 2021

0
0
17

सरगना राजा हो गया- नेहरू/ प्रेमचंद

3 नवम्बर 2021
0
0
18

शुरू का रहन-सहन- नेहरू/ प्रेमचंद

3 नवम्बर 2021

0
0
18

शुरू का रहन-सहन- नेहरू/ प्रेमचंद

3 नवम्बर 2021
0
0
19

पुरानी दुनिया के बडे़-बड़े शहर- नेहरू/ प्रेमचंद

3 नवम्बर 2021

0
0
19

पुरानी दुनिया के बडे़-बड़े शहर- नेहरू/ प्रेमचंद

3 नवम्बर 2021
0
0
20

मिस्र और क्रीट- नेहरू/ प्रेमचंद

3 नवम्बर 2021

0
0
20

मिस्र और क्रीट- नेहरू/ प्रेमचंद

3 नवम्बर 2021
0
0
21

चीन और हिंदुस्तान- नेहरू/ प्रेमचंद

6 नवम्बर 2021

0
0
21

चीन और हिंदुस्तान- नेहरू/ प्रेमचंद

6 नवम्बर 2021
0
0
22

समुद्री सफर और व्यापार- नेहरू/ प्रेमचंद

6 नवम्बर 2021

1
1
22

समुद्री सफर और व्यापार- नेहरू/ प्रेमचंद

6 नवम्बर 2021
1
1
23

भाषा, लिखावट और गिनती- नेहरू/ प्रेमचंद

6 नवम्बर 2021

0
0
23

भाषा, लिखावट और गिनती- नेहरू/ प्रेमचंद

6 नवम्बर 2021
0
0
24

आदमियों के अलग-अलग दरजे- नेहरू/ प्रेमचंद

10 नवम्बर 2021

0
0
24

आदमियों के अलग-अलग दरजे- नेहरू/ प्रेमचंद

10 नवम्बर 2021
0
0
25

राजा, मंदिर और पुजारी- नेहरू/ प्रेमचंद

10 नवम्बर 2021

0
0
25

राजा, मंदिर और पुजारी- नेहरू/ प्रेमचंद

10 नवम्बर 2021
0
0
26

पीछे की तरफ एक नजर- नेहरू/ प्रेमचंद

10 नवम्बर 2021

0
0
26

पीछे की तरफ एक नजर- नेहरू/ प्रेमचंद

10 नवम्बर 2021
0
0
27

फॉसिल और पुराने खंडहर- नेहरू/ प्रेमचंद

10 नवम्बर 2021

1
0
27

फॉसिल और पुराने खंडहर- नेहरू/ प्रेमचंद

10 नवम्बर 2021
1
0
---