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तरह- तरह की कौमें क्योंकर बनीं- नेहरू/ प्रेमचंद

29 अक्टूबर 2021

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अपने पिछले खत में मैंने नए पत्थर-युग के आदमियों का जिक्र किया था जो खासकर झीलों के बीच में मकानों में रहते थे। उन लोगों ने बहुत-सी बातों में बड़ी तरक्‍की कर ली थी। उन्होंने खेती करने का तरीका निकाला। वे खाना पकाना जानते थे और यह भी जानते थे कि जानवरों को पाल कर कैसे काम लिया जा सकता है। ये बातें कई हजार वर्ष पुरानी हैं और हमें उनका हाल बहुत कम मालूम है लेकिन शायद आज दुनिया में आदमियों की जितनी कौमें हैं उनमें से अकसर उन्हीं नए पत्थर-युग के आदमियों की सन्तान हैं। यह तो तुम जानती ही हो कि आज-कल दुनिया में गोरे, काले, पीले, भूरे सभी रंगों के आदमी हैं। लेकिन सच्ची बात तो यह है कि आदमियों की कौमों को इन्हीं चार हिस्सों में बाँट देना आसान नहीं है। कौमों में ऐसा मेल-जोल हो गया है कि उनमें से बहुतों के बारे में यह बतलाना कि वह किस कौम में से हैं बहुत मुश्किल है। वैज्ञानिक लोग आदमियों के सिरों को नापकर कभी-कभी उनकी कौम का पता लगा लेते हैं, और भी ऐसे कई तरीके हैं जिनसे इस बात का पता चल सकता है।

अब सवाल यह होता है कि ये तरह-तरह की कौमें कैसे पैदा हुईं? अगर सब बस एक ही कौम के हैं तो उनमें आज इतना फर्क क्यों है? जर्मन और हब्शी में कितना फर्क है! एक गोरा है और दूसरा बिल्कुल काला। जर्मन के बाल हल्के रंग के और लंबे होते हैं मगर हब्शी के बाल काले, छोटे और घुँघराले होते हैं। चीनी को देखो तो वह इन दोनों से अलग हैं। तो यह बतलाना बहुत मुश्किल है कि यह फर्क क्योंकर पैदा हो गया, हाँ इसके कुछ कारण हमें मालूम हैं। मैं तुम्हें पहले ही बतला चुका हूँ कि ज्यों-ज्यों जानवरों का रंग-ढंग आसपास की चीजों के मुताबिक होता गया उनमें धीरे-धीरे तब्दीलियाँ पैदा होती गईं। हो सकता है कि जर्मन और हब्शी अलग-अलग कौमों से पैदा हुए हों लेकिन किसी न किसी जमाने में उनके पुरखे एक ही रहे होंगे। उनमें जो फर्क पैदा हुआ उसकी वजह या तो यह हो सकती है कि उन्हें अपना रहन-सहन अपने पास पड़ोस की चीजों के मुताबिक बनाना पड़ा या यह कि बाज जानवरों की तरह कुछ जातियों ने औरों से ज्यादा आसानी के साथ अपना रहन-सहन बदल दिया हो।

मैं तुमको इसकी एक मिसाल देता हूँ। जो आदमी उत्तर के ठंडे और बर्फीले मुल्कों में रहता है उसमें सर्दी बरदाश्त करने की ताकत पैदा हो जाती है। इस जमाने में भी इस्कीमो जातिवाले उत्तर के बर्फीले मैदानों में रहते हैं और वहाँ की भयानक सर्दी बरदाश्त करते हैं। अगर वे हमारे जैसे गर्म मुल्क में आऍं तो शायद जीते ही न रह सकें। और चूँकि वे दुनिया के और हिस्सों से अलग हैं और उन्हें बड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, उन्हें दुनिया की उतनी बातें नहीं मालूम हुईं जितनी और हिस्सों के रहनेवाले जानते हैं। जो लोग अफ्रीका या विषुवत-रेखा के पास रहते हैं, जहाँ बड़ी सख्त गर्मी पड़ती है, इस गर्मी के आदी हो जाते हैं। इसी तेज़ धूप के सबब से उनका रंग काला हो जाता है। यह तो तुमने देखा ही है कि अगर तुम समुद्र के किनारे या कहीं और देर तक धूप में बैठो तो तुम्हारा चेहरा साँवला हो जाता है। अगर चंद हफ्तों तक धूप खाने से आदमी कुछ काला पड़ जाता है तो वह आदमी कितना काला होगा जिसे हमेशा धूप ही में रहना पड़ता है। तो फिर जो लोग सैकड़ों वर्षों तक गर्म मुल्कों में रहें और वहाँ रहते उनकी कई पीढ़ियाँ गुजर जाऍं उनके काले हो जाने में क्या ताज्जुब है। तुमने हिंदुस्तानी किसानों को दोपहरी की धूप में खेतों में काम करते देखा है। वे गरीबी की वजह से न ज्यादा कपड़े पहन सकते हैं, न पहनते हैं। उनकी सारी देह धूप में खुली रहती है और इसी तरह उनकी पूरी उम्र गुजर जाती है। फिर वे क्यों न काले हो जाऍं।

इससे तुम्हें यह मालूम हुआ कि आदमी का रंग उस आबोहवा की वजह से बदल जाता है जिसमें वह रहता है। रंग से आदमी की लियाकत, भलमनसी या खूबसूरती पर कोई असर नहीं पड़ता। अगर गोरा आदमी किसी गर्म मुल्क में बहुत दिनों तक रहे और धूप से बचने के लिए टट्टियों की आड़ में या पंखों के नीचे न छिपा बैठा रहे, तो वह जरूर साँवला हो जाएगा। तुम्हें मालूम है कि हम लोग कश्मीरी हैं और सौ साल पहले हमारे पुरखे कश्मीर में रहते थे। कश्मीर में सभी आदमी, यहाँ तक कि किसान और मजदूर भी, गोरे होते हैं। इसका सबब यही है कि कश्मीर की आबोहवा सर्द है। लेकिन वही कश्मीरी जब हिंदुस्तान के दूसरे हिस्सों में आते हैं, जहाँ ज्यादा गर्मी पड़ती है, कई पुश्तों के बाद सॉंवले हो जाते हैं। हमारे बहुत-से कश्मीरी भाई खूब गोरे हैं और बहुत-से बिल्कुल सॉंवले भी हैं। कश्मीरी जितने ज्यादा दिनों तक हिंदुस्तान के इस हिस्से में रहेगा उसका रंग उतना ही सॉंवला होगा।

अब तुम समझ गईं कि आबोहवा ही की वजह से आदमी का रंग बदल जाता है। यह हो सकता है कि कुछ लोग गर्म मुल्क में रहें लेकिन मालदार होने की वजह से उन्हें धूप में काम न करना पड़े, वे बड़े-बड़े मकानों में रहें और अपने रंग को बचा सकें। अमीर खानदान इस तरह कई पीढ़ियों तक अपने रंग को आबोहवा के असर से बचाए रख सकता है लेकिन अपने हाथों से काम न करना और दूसरों की कमाई खाना ऐसी बात नहीं जिस पर हम गरूर कर सकें। तुमने देखा है कि हिंदुस्तान में कश्मीर और पंजाब के आदमी आम तौर पर गोरे होते हैं लेकिन ज्यों-ज्यों हम दक्षिण जाऐं वे काले होते जाते हैं। मद्रास और श्रीलंका में ये बिल्कुल काले होते हैं। तुम जरूर ही समझ जाओगी कि इसका सबब आबोहवा है। क्योंकि दक्षिण की तरफ हम जितना ही बढ़ें विषुवत-रेखा के पास पहूँचते जाते हैं और गर्मी बढ़ती जाती है। यह बिल्कुल ठीक है और यही एक खास वजह है कि हिंदुस्तानियों के रंग में इतना फर्क है। हम आगे चल कर देखेंगे कि यह फर्क कुछ इस वजह से भी है कि शुरू में जो कौमें हिंदुस्तान में आ कर बसी थीं उनमें आपस में फर्क था। पुराने जमाने में हिंदुस्तान में बहुत-सी कौमें आईं और हालाँकि बहुत दिनों तक उन्होंने अलग रहने की कोशिश की लेकिन वे आखिर में बिना मिले न रह सकीं। आज किसी हिन्दुस्तानी के बारे में यह कहना मुश्किल है कि वह पूरी तरह से किसी एक असली कौम का है।

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रचनाएँ
पिता के पत्र पुत्री के नाम- जवाहरलाल नेहरू
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आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इसमें अपनी एकलौती बेटी इंदिरा नेहरू का जिक्र किया था। जिसका सारांश इस प्रकार है- एक खत एकाएक खत्म हो जाता है। गर्मी का मौसम खत्म होता है और इंदिरा पहाड़ से उतर आई। फिर ऐसे खत लिखने का मौका मुझे नहीं मिला। उसके बाद के साल वह पहाड़ नहीं गई और दो साल बाद 1630 में मुझे नैनी की जो पहाड़ नहीं है, यात्रा करनी पड़ी। नैनी जेल में कुछ और पत्र मैंने इंदिरा को लिखे लेकिन वे भी अधूरे रह गए और भौर छोड़ दिया गया। ये नए खत इस किताब में शामिल नहीं है।
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पिता के पत्र पुत्री के नाम

2 अक्टूबर 2021
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<p><br></p> <figure><img src="https://shabd.s3.us-east-2.amazonaws.com/articles/61580f00a9e73b20b620

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संसार पुस्तक है- नेहरू/ प्रेमचंद

26 अक्टूबर 2021
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<p>जब तुम मेरे साथ रहती हो तो अकसर मुझसे बहुत-सी बातें पूछा करती हो और मैं उनका जवाब देने की कोशिश क

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शुरू का इतिहास कैसे लिखा गया - जवाहरलाल नेहरू

26 अक्टूबर 2021
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<p>अपने पहले पन्‍ने में मैंने तुम्हें बताया था कि हमें संसार की किताब से ही दुनिया के शुरू का हाल मा

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जमीन कैसे बनी - जवाहरलाल नेहरू

27 अक्टूबर 2021
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<p>तुम जानती हो कि जमीन सूरज के चारों तरफ घूमती है और चाँद जमीन के चारों तरफ घूमता है। शायद तुम्हें

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जानवर कब पैदा हुए - जवाहरलाल नेहरू

27 अक्टूबर 2021
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<p>हम बतला चुके हैं कि शुरू में छोटे-छोटे समुद्री जानवर और पानी में होनेवाले पौधे दुनिया की जानदार च

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आदमी कब पैदा हुआ- नेहरू/ प्रेमचंद

28 अक्टूबर 2021
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<p>मैंने तुम्हें पिछले खत में बतलाया था कि पहले दुनिया में बहुत नीचे दरजे के जानवर पैदा हुए और धीरे-

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शुरू के आदमी- नेहरू/ प्रेमचंद

28 अक्टूबर 2021
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<p>मैंने अपने पिछले खत में लिखा था कि आदमी और जानवर में सिर्फ अक्ल का फर्क है। अक्ल ने आदमी को उन बड

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तरह- तरह की कौमें क्योंकर बनीं- नेहरू/ प्रेमचंद

29 अक्टूबर 2021
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<p>अपने पिछले खत में मैंने नए पत्थर-युग के आदमियों का जिक्र किया था जो खासकर झीलों के बीच में मकानों

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आदमियों की कौमें और जबानें- नेहरू/ प्रेमचंद

29 अक्टूबर 2021
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<p>हम यह नहीं कह सकते कि दुनिया के किस हिस्से में पहले-पहल आदमी पैदा हुए। न हमें यही मालूम है कि शुर

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जबानों का आपस में रिश्ता- नेहरू/ प्रेमचंद

29 अक्टूबर 2021
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<p>हम बतला चुके हैं कि आर्य बहुत-से मुल्कों में फैल गए और जो कुछ भी उनकी जबान थी उसे अपने साथ लेते ग

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सभ्यता क्या है?- नेहरू/ प्रेमचंद

30 अक्टूबर 2021
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<p>मैं आज तुम्हें पुराने जमाने की सभ्यता का कुछ हाल बताता हूँ। लेकिन इसके पहले हमें यह समझ लेना चाहि

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जातियों का बनना- नेहरू/ प्रेमचंद

30 अक्टूबर 2021
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<p>मैंने पिछले खतों में तुम्हें बतलाया है कि शुरू में जब आदमी पैदा हुआ तो वह बहुत कुछ जानवरों से मिल

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मजहब की शुरुआत और काम का बंटवारा- नेहरू/ प्रेमचंद

30 अक्टूबर 2021
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<p>पिछले खत में मैंने तुम्हें बतलाया था कि पुराने जमाने में आदमी हर एक चीज से डरता था और खयाल करता थ

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खेती से पैदा हुई तब्दीलियां- नेहरू/ प्रेमचंद

1 नवम्बर 2021
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<p>अपने पिछले खत में मैंने कामों के अलग-अलग किए जाने का कुछ हाल बतलाया था। बिल्कुल शुरू में जब आदमी

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खानदान का सरगना कैसे बना- नेहरू/ प्रेमचंद

1 नवम्बर 2021
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<p>मुझे भय है कि मेरे खत कुछ पेचीदा होते जा रहे हैं। लेकिन अब जिंदगी भी तो पेचीदा हो गई है। पुराने ज

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सरगना का इख्तियार कैसे बढ़ा- नेहरू/ प्रेमचंद

1 नवम्बर 2021
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<p>मुझे उम्मीद है कि पुरानी जातियों और उनके बुजुर्गों का हाल तुम्हें रूखा न मालूम होता होगा।</p> <p>

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सरगना राजा हो गया- नेहरू/ प्रेमचंद

3 नवम्बर 2021
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<p>बूढ़े सरगना ने हमारा बहुत-सा वक्त ले लिया। लेकिन हम उससे जल्द ही फुर्सत पा जाएंगे या यों कहो उसका

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शुरू का रहन-सहन- नेहरू/ प्रेमचंद

3 नवम्बर 2021
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<p>सरगनों और राजाओं की चर्चा हम काफी कर चुके। अब हम उस जमाने के रहन-सहन और आदमियों का कुछ हाल लिखेंग

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पुरानी दुनिया के बडे़-बड़े शहर- नेहरू/ प्रेमचंद

3 नवम्बर 2021
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<p>मैं लिख चुका हूँ कि आदमियों ने पहले-पहल बड़ी-बड़ी नदियों के पास और उपजाऊ घाटियों में बस्तियाँ बना

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मिस्र और क्रीट- नेहरू/ प्रेमचंद

3 नवम्बर 2021
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<p>पुराने जमाने में शहरों और गाँवों में किस तरह के लोग रहते थे? उनका कुछ हाल उनके बनाए हुए बड़े-बड़े

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चीन और हिंदुस्तान- नेहरू/ प्रेमचंद

6 नवम्बर 2021
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<p>हम लिख चुके हैं कि शुरू में मेसोपोटैमिया, मिस्र और भूमध्‍य सागर के छोटे-से टापू क्रीट में सभ्यता

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समुद्री सफर और व्यापार- नेहरू/ प्रेमचंद

6 नवम्बर 2021
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<p>फिनीशियन भी पुराने जमाने की एक सभ्य जाति थी। उसकी नस्ल भी वही थी जो यहूदियों और अरबों की है। वे ख

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भाषा, लिखावट और गिनती- नेहरू/ प्रेमचंद

6 नवम्बर 2021
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<p>हम तरह-तरह की भाषाओं का पहले ही जिक्र कर चुके हैं और दिखा चुके हैं कि उनका आपस में क्या नाता है।

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आदमियों के अलग-अलग दरजे- नेहरू/ प्रेमचंद

10 नवम्बर 2021
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<p>लड़के, लड़कियों और सयानों को भी इतिहास अकसर एक अजीब ढंग से पढ़ाया जाता है। उन्हें राजाओं और दूसरे

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राजा, मंदिर और पुजारी- नेहरू/ प्रेमचंद

10 नवम्बर 2021
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<p>हमने पिछले खत में लिखा था कि आदमियों के पाँच दरजे बन गए। सबसे बड़ी जमात मजदूर और किसानों की थी। क

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पीछे की तरफ एक नजर- नेहरू/ प्रेमचंद

10 नवम्बर 2021
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<p>तुम मेरी चिट्ठियों से ऊब गई होगी! जरा दम लेना चाहती होगी। खैर, कुछ अरसे</p> <p>तक मैं तुम्हें नई

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फॉसिल और पुराने खंडहर- नेहरू/ प्रेमचंद

10 नवम्बर 2021
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<p>मैंने अरसे से तुम्हें कोई खत नहीं लिखा। पिछले दो खतों में हमने उस पुराने जमाने पर एक नजर डाली थी

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