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मिस्र और क्रीट- नेहरू/ प्रेमचंद

3 नवम्बर 2021

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पुराने जमाने में शहरों और गाँवों में किस तरह के लोग रहते थे? उनका कुछ हाल उनके बनाए हुए बड़े-बड़े मकानों और इमारतों से मालूम होता है। कुछ हाल उन पत्थर की तख्तियों की लिखावट से भी मालूम होता है जो वे छोड़ गए हैं। इसके अलावा कुछ बहुत पुरानी किताबें भी हैं जिनसे उस पुराने जमाने का बहुत कुछ हाल मालूम हो जाता है।

मिस्र में अब भी बड़े-बड़े मीनार और स्फिंग्स मौजूद हैं। लक्सर और दूसरी जगहों में बहुत बड़े मंदिरों के खंडहर नजर आते हैं। तुमने इन्हें देखा नहीं है लेकिन जिस वक्त हम स्वेज़ नहर से गुजर रहे थे, वे हमसे बहुत दूर न थे। लेकिन तुमने उनकी तस्वीरें देखी हैं। शायद तुम्हारे पास उनकी तस्वीरों के पोस्टकार्ड मौजूद हों। स्फिंग्स औरत के सिरवाली शेर की मूर्ति को कहते हैं। इसका डील-डौल बहुत बड़ा है। किसी को यह नहीं मालूम कि यह मूर्ति क्यों बनाई गई और उसका क्या मतलब है। उस औरत के चेहरे पर एक अजीब मुरझाई हुई मुस्कराहट है। और किसी की समझ में नहीं आता कि वह क्यों मुस्करा रही है। किसी आदमी के बारे में यह कहना कि वह स्फिंग्स की तरह है इसका यह मतलब है कि तुम उसे बिल्कुल नहीं समझते।

मीनार भी बहुत लंबे-चौड़े हैं। दरअसल, वे मिस्र के पुराने बादशाहों के मकबरे हैं जिन्हें फिरऊन कहते थे। तुम्हें याद है कि तुमने लंदन के अजायबघर में मिस्र की ममी देखी थी? ममी किसी आदमी या जानवर की लाश को कहते हैं जिसमें कुछ ऐसे तेल और मसाले लगा दिए गए हों कि वह सड़ न सके। फिरऊनों की लाशों की ममी बना दी जाती थीं और तब उन बड़े-बड़े मीनारों में रख दी जाती थीं। लाशों के पास सोने और चॉंदी के गहने और सजावट की चीजें और खाना रख दिया जाता था। क्योंकि लोग खयाल करते थे कि शायद मरने के बाद उन्हें इन चीजों की जरूरत हो। दो-तीन साल हुए कुछ लोगों ने इनमें से एक मीनार के अंदर एक फिरऊन की लाश पाई जिसका नाम तूतन खामिन था। उसके पास बहुत-सी खूबसूरत और कीमती चीजें रखी हुई मिलीं।

उस जमाने में मिस्र में खेती को सींचने के लिए अच्छी-अच्छी नहरें और झीलें बनाई जाती थीं। मेरीडू नाम की झील खास तौर पर मशहूर थी। इससे मालूम होता है कि पुराने जमाने के मिस्र के रहनेवाले कितने होशियार थे और उन्होंने कितनी तरक्‍की की थी। इन नहरों और झीलों और बड़े-बड़े मीनारों को अच्छे-अच्छे इंजीनियरों ने ही तो बनाया होगा।

केंडिया या क्रीट एक छोटा-सा टापू है जो भूमध्‍य सागर में है। सईद बंदर-गाह से वेनिस जाते वक्त हम उस टापू के पास से हो कर निकले थे। उस छोटे-से टापू में उस पुराने जमाने में बहुत अच्छी सभ्यता पाई जाती थी। नोसोज में एक बहुत बड़ा महल था और उसके खंडहर अब तक मौजूद हैं। इस महल में गुसलखाने थे और पानी की नलें भी थीं। जिन्हें नादान लोग नए जमाने की निकली हुई चीज समझते हैं। इसके अलावा बहुत खूबसूरत मिट्टी के बर्तन, पत्थर की नक्काशी, तस्वीरें और धातु और हाथी दाँत के बारीक काम भी होते थे। इस छोटे-से टापू में लोग शांति से रहते थे और उन्होंने खूब तरक्‍की की थी।

तुमने मीदास बादशाह का हाल पढ़ा होगा जिसकी निस्बत मशहूर है कि जिस चीज को वह छू लेता था वह सोना हो जाती थी। वह खाना न खा सकता था क्योंकि खाना सोना हो जाता था और सोना तो खाने की चीज नहीं। उसके लालच की उसे यह सजा दी गई थी। यह है तो एक मजेदार कहानी, लेकिन इससे हमें यह मालूम होता है कि सोना इतनी अच्छी और लाभदायक चीज नहीं है जितनी लोग खयाल करते हैं। क्रीट के सब राजा मीदास कहलाते थे और यह कहानी उन्हीं में से किसी राजा की होगी।

क्रीट की एक और कथा है जो शायद तुमने तुमने सुनी हो। वहाँ मैनोटार नाम का एक देव था जो आधा आदमी और आधा बैल था। कहा जाता है कि जवान आदमी और लड़कियाँ, उसे खाने को दी जाती थीं। मैं तुमसे पहले ही कह चुका हूँ कि मजहब का खयाल शुरू में किसी अनजानी चीज के डर से पैदा हुआ। लोगों को प्रकृति का कुछ ज्ञान न था, न उन बातों को समझते थे जो दुनिया में बराबर होती रहती थीं। इसलिए डर के मारे वे बहुत-सी बेवकूफी की बातें किया करते थे। यह बहुत मुमकिन है कि लड़के और लड़कियों का यह बलिदान किसी देव को न किया जाता हो बल्कि वह महज खयाली देव हो क्योंकि मैं समझता हूँ ऐसा देव कभी हुआ ही नहीं।

उस पुराने जमाने में सारे संसार में मर्दों-औरतों का फर्जी देवताओं के लिए बलिदान किया जाता था। यही उनकी पूजा का ढंग था। मिस्र में लड़कियाँ नील नदी में डाल दी जाती थीं। लोगों का खयाल था कि इससे पिता नील खुश होंगे।

बड़ी खुशी की बात है कि अब आदमियों का बलिदान नहीं किया जाता; हाँ, शायद दुनिया के किसी कोने में कभी-कभी हो जाता हो। लेकिन अब भी ईश्‍वर को खुश करने के लिए जानवरों का बलिदान किया जाता है। किसी की पूजा करने का यह कितना अनोखा ढंग है!

पुस्तक लेखन प्रतियोगिता - 2023
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रचनाएँ
पिता के पत्र पुत्री के नाम- जवाहरलाल नेहरू
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आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इसमें अपनी एकलौती बेटी इंदिरा नेहरू का जिक्र किया था। जिसका सारांश इस प्रकार है- एक खत एकाएक खत्म हो जाता है। गर्मी का मौसम खत्म होता है और इंदिरा पहाड़ से उतर आई। फिर ऐसे खत लिखने का मौका मुझे नहीं मिला। उसके बाद के साल वह पहाड़ नहीं गई और दो साल बाद 1630 में मुझे नैनी की जो पहाड़ नहीं है, यात्रा करनी पड़ी। नैनी जेल में कुछ और पत्र मैंने इंदिरा को लिखे लेकिन वे भी अधूरे रह गए और भौर छोड़ दिया गया। ये नए खत इस किताब में शामिल नहीं है।
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