हम यह नहीं कह सकते कि दुनिया के किस हिस्से में पहले-पहल आदमी पैदा हुए। न हमें यही मालूम है कि शुरू में वह कहाँ आबाद हुए। शायद आदमी एक ही वक्त में, कुछ आगे पीछे दुनिया के कई हिस्सों में पैदा हुए। हाँ, इसमें ज्यादा सन्देह नहीं है कि ज्यों-ज्यों बर्फ के जमाने के बड़े-बड़े बर्फीले पहाड़ पिघलते और उत्तर की ओर हटते जाते थे, आदमी ज्यादा गर्म हिस्सों में आते जाते थे। बर्फ के पिघल जाने के बाद बड़े-बड़े मैदान बन गए होंगे, कुछ उन्हीं मैदानों की तरह जो आजकल साइबेरिया में हैं। इस जमीन पर घास उग आई और आदमी अपने जानवरों को चराने के लिए इधर-उधर घूमते-फिरते होंगे। जो लोग किसी एक जगह टिक कर नहीं रहते बल्कि हमेशा घूमते रहते हैं 'खानाबदोश' कहलाते हैं। आज भी हिंदुस्तान और बहुत से दूसरे मुल्कों में ये खानाबदोश या बंजारे मौजूद हैं।
आदमी बड़ी-बड़ी नदियों के पास आबाद हुए होंगे, क्योंकि नदियों के पास की जमीन बहुत उपजाऊ और खेती के लिए बहुत अच्छी होती है। पानी की तो कोई कमी थी ही नहीं और जमीन में खाने की चीजें आसानी से पैदा हो जाती थीं, इसलिए हमारा खयाल है कि हिंदुस्तान में लोग सिन्धु और गंगा जैसी बड़ी-बड़ी नदियों के पास बसे होंगे, मेसोपोटैमिया में दजला और फरात के पास, मिस्र में नील के पास और उसी तरह चीन में भी हुआ होगा।
हिंदुस्तान की सबसे पुरानी कौम, जिसका हाल हमें कुछ मालूम है, द्रविड़ है। उसके बाद, हम जैसा आगे देखेंगे, आर्य आए और पूरब में मंगोल जाति के लोग आए। आजकल भी दक्षिणी हिंदुस्तान के आदमियों में बहुत-से द्रविड़ों की संतानें हैं। वे उत्तर के आदमियों से ज्यादा काले हैं, इसलिए कि शायद द्रविड़ लोग हिंदुस्तान में और ज्यादा दिनों से रह रहे हैं। द्रविड़ जातिवालों ने बड़ी उन्नति कर ली थी, उनकी अलग एक जबान थी और वे दूसरी जातिवालों से बड़ा व्यापार भी करते थे। लेकिन हम बहुत तेजी से बढ़े जा रहे हैं।
उस जमाने में पश्चिमी-एशिया और पूर्वी-यूरोप में एक नई जाति पैदा हो रही थी। यह आर्य कहलाती थी। संस्कृत में आर्य शब्द का अर्थ है शरीफ आदमी या ऊँचे कुल का आदमी। संस्कृत आर्यों की एक जबान थी इसलिए इससे मालूम होता है कि वे लोग अपने को बहुत शरीफ और खानदानी समझते थे। ऐसा मालूम होता है कि वे लोग भी आजकल के आदमियों की ही तरह शेखीबाज थे। तुम्हें मालूम है कि अंग्रेज अपने को दुनिया में सबसे बढ़ कर समझता है, फ्रांसीसी का भी यही खयाल है कि मैं ही सबसे बड़ा हूँ, इसी तरह जर्मन, अमरीकन और दूसरी जातियाँ भी अपने ही बड़प्पन का राग अलापती हैं।
ये आर्य उत्तरी-एशिया और यूरोप के चरागाहों में घूमते रहते थे। लेकिन जब उनकी आबादी बढ़ गई और पानी और चारे की कमी हो गई तो उन सबके लिए खाना मिलना मुश्किल हो गया इसलिए वे खाने की तलाश में दुनिया के दूसरे हिस्सों में जाने के लिए मजबूर हुए। एक तरफ तो वे सारे यूरोप में फैल गए, दूसरी तरफ हिंदुस्तान, ईरान और मेसोपोटैमिया में आ पहुँचे। इससे मालूम होता है कि यूरोप, उत्तरी हिंदुस्तान और मेसोपोटैमिया की सभी जातियाँ असल में एक ही पुरखों की संतान हैं, यानी आर्यों की; हालाँकि आजकल उनमें बड़ा फर्क है। यह तो मानी हुई बात है कि इधर बहुत जमाना गुजर गया और तब से बड़ी-बड़ी तब्दीलियाँ हो गईं और कौमें आपस में बहुत कुछ मिल गईं। इस तरह आज की बहुत-सी जातियों के पुरखे आर्य ही थे।
दूसरी बड़ी जाति मंगोल हैं। यह सारे पूर्वी एशिया अर्थात चीन, जापान, तिब्बत, स्याम (अब थाइलैंड) और बर्मा में फैल गई। उन्हें कभी-कभी पीली जाति भी कहते हैं। उनके गालों की हड्डियाँ ऊँची और आँखें छोटी होती हैं।
अफ्रीका और कुछ दूसरी जगहों के आदमी हब्शी हैं। वे न आर्य हैं, न मंगोल और उनका रंग बहुत काला होता है। अरब और फलिस्तीन की जातियाँ अरबी और यहूदी एक दूसरी ही जाति से पैदा हुईं।
ये सभी जातियाँ हजारों साल के दौरान में बहुत-सी छोटी जातियों में बँट गई हैं और कुछ मिल-जुल गई हैं। मगर हम उनकी तरफ धयान न देंगे। भिन्न-भिन्न जातियों के पहचान का एक अच्छा और दिलचस्प तरीका उनकी जबानों का पढ़ना है। शुरू-शुरू में हर एक जाति की एक अलग जबान थी, लेकिन ज्यों-ज्यों दिन गुजरते गए उस एक जबान से बहुत-सी जबानें निकलती गईं। लेकिन ये सब जबानें एक ही माँ की बेटियॉं हैं। हमें उन जबानों में बहुत-से शब्द एक-से ही मिलते हैं और इससे मालूम होता है कि उनमें कोई गहरा नाता है।
जब आर्य एशिया और यूरोप में फैल गए तो उनका आपस में मेल-जोल न रहा। उस जमाने में न रेलगाड़ियाँ थीं, न तार व डाक, यहाँ तक कि लिखी हुई किताबें तक न थीं। इसलिए आर्यों का हर एक हिस्सा एक ही जबान को अपने-अपने ढंग से बोलता था, और कुछ दिनों के बाद यह असली जबान से, या आर्य देशों की दूसरी बहनों से, बिल्कुल अलग हो गई। यही सबब है कि आज दुनिया में इतनी जबानें मौजूद हैं।
लेकिन अगर हम इन जबानों को गौर से देखें तो मालूम होगा कि वे बहुत-सी हैं लेकिन असली जबानें बहुत कम हैं। मिसाल के तौर पर देखो कि जहाँ-जहाँ आर्य जाति के लोग गए वहाँ उनकी जबान आर्य खानदान की ही रही है। संस्कृत, लैटिन, यूनानी, अंग्रेजी, फ्रांसीसी, जर्मन, इटालियन और बाज दूसरी जबानें सब बहनें हैं और आर्य खानदान की ही हैं। हमारी हिन्दुस्तानी जबानों में भी जैसे हिंदी, उर्दू, बाँग्ला, मराठी और गुजराती सब संस्कृत की संतान हैं और आर्य परिवार में शामिल हैं।
जबान का दूसरा बड़ा खानदान चीनी है। चीनी, बर्मी, तिब्बती और स्यामी जबानें उसी से निकली हैं। तीसरा खानदान शेम जबान का है, जिससे अरबी और इबरानी जबानें निकली हैं।कुछ जबानें जैसे तुर्की और जापानी इनमें से किसी वंश में नहीं हैं। दक्षिणी हिंदुस्तान की कुछ जबानें, जैसे तमिल, तेगलु, मलयालम और कन्नड़ भी उन खानदानों में नहीं हैं। ये चारों द्रविड़ खानदान की हैं और बहुत पुरानी हैं।