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फॉसिल और पुराने खंडहर- नेहरू/ प्रेमचंद

10 नवम्बर 2021

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मैंने अरसे से तुम्हें कोई खत नहीं लिखा। पिछले दो खतों में हमने उस पुराने जमाने पर एक नजर डाली थी जिसका हम अपने खतों में चर्चा कर रहे हैं। मैंने तुम्हें पुरानी मछलियों की हड्डियों के चित्र पोस्टकार्ड भेजे थे जिससे तुम्हें खयाल हो जाय कि ये 'फॉसिल' कैसे होते हैं। मसूरी में जब तुमसे मेरी मुलाकात हुई थी तो मैंने तुम्हें दूसरे किस्‍म के 'फॉसिल' की तस्वीरें दिखाई थीं।

पुराने रेंगनेवाले जानवरों की हड्डियों को खास तौर से याद रखना। सांप, छिपकली, मगर और कछुवे वगैरह जो आज भी मौजूद हैं, रेंगनेवाले जानवर हैं। पुराने जमाने के रेंगनेवाले जानवर भी इसी जाति के थे पर कद में बहुत बड़े थे और उनकी शक्ल में भी फर्क था। तुम्हें उन देव के-से जंतुओं की याद होगी जिन्हें हमने साउथ केन्सिगटन के अजायबघर में देखा था। उनमें से एक तीस या चालीस फुट लंबा था। एक किस्म का मेढक भी था जो आदमी से बड़ा था और एक कछुवा भी उतना ही बड़ा था। उस जमाने में बड़े भारी-भारी चमगादड़ उड़ा करते थे और एक जानवर जिसे इगुआनोडान कहते हैं, खड़ा होने पर वह एक छोटे-से पेड़ के बराबर होता था।तुमने खान से निकले हुए पौधे भी पत्थर की सूरत में देखे थे। चट्टानों में 'फर्न' और पत्तियों और ताड़ों के खूबसूरत निशान थे।

रेंगनेवाले जानवरों के पैदा होने के बहुत दिन बाद वे जानवर पैदा हुए जो अपने बच्चों को दूध पिलाते हैं। ज्यादातर जानवर जिन्हें हम देखते हैं, और हम लोग भी, इसी जाति में हैं। पुराने जमाने के दूध पिलानेवाले जानवर हमारे आजकल के बाज जानवरों से बहुत मिलते थे उनका कद अक्सर बहुत बड़ा होता था लेकिन रेंगनेवाले जानवरों के बराबर नहीं। बड़े-बड़े दाँतोंवाले हाथी और बड़े डील-डौल के भालू भी होते थे।

तुमने आदमी की हड्डियाँ भी देखी थीं। इन हड्डियों और खोपड़ियों के देखने में भला क्या मजा आता। इससे ज्यादा दिलचस्प वे चकमक के औजार थे जिन्हें शुरू जमाने के लोग काम में लाते थे।

तुमने आदमी की हड्डियाँ भी देखी थीं। इन हड्डियों और खोपड़ियों के देखने में भला क्या मजा आता। इससे ज्यादा दिलचस्प वे चकमक के औजार थे जिन्हें शुरू जमाने के लोग काम में लाते थे।

तुमने मिस्र के थीब्स नामी शहर में महलों और मन्दिरों के खंडहरों की तस्वीरें देखी थीं। कितनी बड़ी-बड़ी इमारतें और कितने भारी-भारी खंभे थे। थीब्स के पास ही मेमन की बहुत बड़ी मूर्ति है। ऊपरी मिस्र में कार्नक के पुराने मंदिरों और इमारतों की तस्वीरें भी थीं। इन खंडहरों से भी तुम्हें कुछ अंदाजा हो सकता है कि मिस्र के पुराने आदमी मेमारी के काम में कितने होशियार थे। अगर उन्हें इंजीनियरी का अच्छा ज्ञान न होता तो वे ये मंदिर और महल कभी न बना सकते।

हमने सरसरी तौर पर पीछे लिखी हुई बातों पर एक नजर डाल ली। इसके बाद के खत में हम और आगे चलेंगे।

शब्द mic
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रचनाएँ
पिता के पत्र पुत्री के नाम- जवाहरलाल नेहरू
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आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इसमें अपनी एकलौती बेटी इंदिरा नेहरू का जिक्र किया था। जिसका सारांश इस प्रकार है- एक खत एकाएक खत्म हो जाता है। गर्मी का मौसम खत्म होता है और इंदिरा पहाड़ से उतर आई। फिर ऐसे खत लिखने का मौका मुझे नहीं मिला। उसके बाद के साल वह पहाड़ नहीं गई और दो साल बाद 1630 में मुझे नैनी की जो पहाड़ नहीं है, यात्रा करनी पड़ी। नैनी जेल में कुछ और पत्र मैंने इंदिरा को लिखे लेकिन वे भी अधूरे रह गए और भौर छोड़ दिया गया। ये नए खत इस किताब में शामिल नहीं है।
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