आया ऋतुराज बसंत दालान पर
खेत-खलिहान / बाग़ -बग़ीचे
पीलिमा का सुरभित आभामंडल,
गुनगुनी धूप
पुष्प-पत्तों ने पहने ओस के कुंडल।
सरसों के पीले फूल
गेंहूँ-जौ की नवोदित बालियां / दहकते ढाक - पलाश,
सृष्टि का साकार सौंदर्य
मोहक हो पूरी करता मन की तलाश।
पक्षियों का कर्णप्रिय कलरव,
गा रहा कोई
राग भैरव।
आ गया बसंत
अल्हड़ मन पर छा गया बसंत ,
प्रकृति के प्रवाह में
होता नहीं कोमा या हलंत।
उत्सव मनाओ कुदरती मेलों में
जिओ सजीव बसंत ,
पोस्टर ,कलेंडर ,फिल्मांकन,अंतर्जाल में
हम ढूंढते हैं आभासी निर्जीव बसंत।
-रवीन्द्र सिंह यादव