सरकारी फ़ाइल में
रहती है एक रेखा
जिनके बीच खींची गयी है
क्या आपने देखा ..?
सम्वेदनाविहीन सत्ता के केंद्र को
अपनी आवाज़ सुनाने
चलते हैं पैदल किसान 180 किलोमीटर
चलते-चलते घिस जाती हैं चप्पलें
डामर की सड़क बन जाती है हीटर।
सत्ता के गलियारों तक आते-आते
घिसकर टूट जाती हैं चप्पलें
घर्षण से तलवों में फूट पड़ते हैं फफोले
सूज जाते हैं फटी बिवाइयों से भरे पाँव
रिसते हैं रह-रहकर छाले
मायानगरी की दहलीज़ पर
जहाँ उजड़ चुके हैं सम्वेदना के गाँव।
छह दिन पैदल चले
पचास हज़ार ग़रीब किसान
आंदोलन में अनुशासन
और दूसरों की परवाह के
छोड़ गये गहरे निशान।
हमने देखा उम्मीद मरी नहीं है
मुम्बईकर निकले घरों से
खाना-पानी और चप्पलें लेकर
लोग सिर्फ़ सेलिब्रिटीज़ को ही टीवी पर देखना चाहते हैं
तोड़ा भरम राष्ट्रीय मीडिया को नसीहत देकर।
सरकार की नींद खुली
सभी मांगें स्वीकार कर लीं
पीड़ा के पांवों पर मरहम लगाया
विशेष ट्रेन से
किसानों को घर भिजवाया।
#रवीन्द्र सिंह यादव