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अध्याय भाग- 26

9 अक्टूबर 2021

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लाला पटेश्वरी पटवारी-समुदाय के सद् गुणों के साक्षात् अवतार थे। वह यह न देख सकते थे कि कोई असामी अपने दूसरे भाई की इंच भर भी ज़मीन दबा ले। न वह यही देख सकते थे कि असामी किसी महाजन के रुपए दबा ले। गाँव के समस्त प्राणियों के हितों की रक्षा करना उनका परम धर्म था। समझौते या मेल-जोल में उनका विश्वास न था, यह तो निजीर्विता के लक्षण हैं! वह तो संघर्ष के पुजारी थे, जो सजीवता का लक्षण है। आये दिन इस जीवन को उत्तेजना देने का प्रयास करते रहते थे। एक-न-एक फुलझड़ी छोड़ते रहते थे। मँगरू साह पर इन दिनों उनकी विशेष कृपा-दृष्ट थी। मँगरू साह गाँव का सबसे धनी आदमी था; पर स्थानीय राजनीति में बिलकुल भाग न लेता था। रोब या अधिकार की लालसा उसे न थी। मकान भी उसका गाँव के बाहर था, जहाँ उसने एक बाग़ और एक कुआँ और एक छोटा-सा शिव-मन्दिर बनवा लिया था। 

बाल-बच्चा कोई न था; इसलिए लेन-देन भी कम कर दिया था और अधिकतर पूजा-पाठ में ही लगा रहता था। कितने ही असामियों ने उसके रुपए हज़म कर लिए थे; पर उसने किसी पर नालिश-फ़रियाद न की। होरी पर भी उसके सूद-ब्याज मिलाकर कोई डेढ़ सौ हो गये थे; मगर न होरी को ऋण चुकाने की कोई चिन्ता थी और न उसे वसूल करने की। दो-चार बार उसने तक़ाज़ा किया, घुड़का-डाँटा भी; मगर होरी की दशा देखकर चुप हो बैठा। अबकी संयोग से होरी की ऊख गाँव भर के ऊपर थी। कुछ नहीं तो उसके दो-ढाई सौ सीधे हो जायँगे, ऐसा लोगों का अनुमान था। पटेश्वरीप्रसाद ने मँगरू को सुझाया कि अगर इस वक़्त होरी पर दावा कर दिया जाय तो सब रुपए वसूल हो जायँ। मँगरू इतना दयालु नहीं, जितना आलसी था। झंझट में पड़ना न चाहता था; मगर जब पटेश्वरी ने ज़िम्मा लिया कि उसे एक दिन भी कचहरी न जाना पड़ेगा, न कोई दूसरा कष्ट होगा, बैठे-बैठाये उसकी डिग्री हो जायगी, तो उसने नालिश करने की अनुमति दे दी, और अदालत-ख़र्च के लिए रुपए भी दे दिये। होरी को ख़बर भी न थी कि क्या खिचड़ी पक रही है। कब दावा दायर हुआ, कब डिग्री हुई, उसे विलकुल पता न चला। क़ुर्क़-अमीन उसकी ऊख नीलाम करने आया, तब उसे मालूम हुआ। सारा गाँव खेत के किनारे जमा हो गया। होरी मँगरू साह के पास दौड़ा और धनिया पटेश्वरी को गालियाँ देने लगी। उसकी सहज-बुद्धि ने बता दिया कि पटेश्वरी ही की कारस्तानी है, मगर मँगरू साह पूजा पर थे, मिल न सके और धनिया गालियों की वर्षा करके भी पटेश्वरी का कुछ बिगाड़ न सकी। उधर ऊख डेढ़ सौ रुपए में नीलाम हो गयी और बोली भी हो गयी मँगरू साह ही के नाम। कोई दूसरा आदमी न बोल सका। दातादीन में भी धनिया की गालियाँ सुनने का साहस न था। 

धनिया ने होरी को उत्तेजित करके कहा -- बैठे क्या हो, जाकर पटवारी से पूछते क्यों नहीं, यही धरम है तुम्हारा गाँव-घर के आदमियों के साथ? 

होरी ने दीनता से कहा -- पूछने के लिए तूने मुँह भी रखा हो। तेरी गालियाँ क्या उन्होंने न सुनी होंगी? 

'जो गाली खाने का काम करेगा, उसे गालियां मिलेंगी ही।'

'तू गालियाँ भी देगी और भाई-चारा भी निभायेंगी?'


धनिया ने होरी को उत्तेजित करके कहा -- बैठे क्या हो, जाकर पटवारी से पूछते क्यों नहीं, यही धरम है तुम्हारा गाँव-घर के आदमियों के साथ?

होरी ने दीनता से कहा -- पूछने के लिए तूने मुँह भी रखा हो। तेरी गालियाँ क्या उन्होंने न सुनी होंगी?

' जो गाली खाने का काम करेगा, उसे गालियाँ मिलेंगी ही। '

' तू गालियाँ भी देगी और भाई-चारा भी निभायेगी? '

' देखूँगी, मेरे खेत के नगीच कौन जाता है। '

' मिलवाले आकर काट ले जायँगे, तू क्या करेगी, और मैं क्या करूँगा। गालियाँ देकर अपनी जीभ की खुजली चाहे मिटा ले। '

' मेरे जीते-जी कोई मेरा खेत काट ले जायगा? '

' हाँ-हाँ, तेरे और मेरे जीते-जी। सारा गाँव मिलकर भी उसे नहीं रोक सकता। अब वह चीज़ मेरी नहीं, मँगरू साह की है। '

' मँगरू साह ने मर-मरकर जेठ की दुपहरी में सिंचाई और गोड़ाई की थी? '

' वह सब तूने किया; मगर अब वह चीज़ मँगरू साह की है। हम उनके करज़दार नहीं हैं? '

ऊख तो गयी; लेकिन उसके साथ ही एक नयी समस्या आ पड़ी। दुलारी इसी ऊख पर रुपए देने पर तैयार हुई थी। अब वह किस जमानत पर रुपए दे? अभी उसके पहले ही के दो सौ पड़े हुए थे। सोचा था, ऊख के पुराने रुपए मिल जायँगे, तो नया हिसाब चलने लगेगा। उसकी नज़र में होरी की साख दो सौ तक थी। इससे ज़्यादा देना जोख़िम था। सहालग सिर पर था। तिथि निश्चित हो चुकी थी। गौरी महतो ने सारी तैयारियाँ कर ली होंगी। अब विवाह का टलना असम्भव था। होरी को ऐसा क्रोध आता था कि जाकर दुलारी का गला दबा दे। जितनी चिरौरी-बिनती हो सकती थी, वह कर चुका; मगर वह पत्थर की देवी ज़रा भी न पसीजी। उसने चलते-चलते हाथ बाँध कर कहा -- दुलारी, मैं तुम्हारे रुपए लेकर भाग न जाऊँगा। न इतनी जल्द मरा ही जाता हूँ। खेत हैं, पेड़-पालों हैं, घर हैं, जवान बेटा है। तुम्हारे रुपए मारे न जायँगे, मेरी इज़्ज़त जा रही है, इसे सँभालो; मगर दुलारी ने दया को व्यापार में मिलाना स्वीकार न किया; अगर व्यापार को वह दया का रूप दे सकती, तो उसे कोई आपत्ति न होती। पर दया को व्यापार का रूप देना उसने न सीखा था।

होरी ने घर आकर धनिया से कहा -- अब? धनिया ने उसी पर दिल का गुबार निकाला -- यही तो तुम चाहते थे। होरी ने ज़ख़्मी आँखों से देखा -- मेरा ही दोष है?

' किसी का दोष हो, हुई तुम्हारे मन की। '

' तेरी इच्छा है कि ज़मीन रेहन रख दूँ? '

' ज़मीन रेहन रख दोगे, तो करोगे क्या? '

' मजूरी। '

मगर ज़मीन दोनों को एक-सी प्यारी थी। उसी पर तो उनकी इज़्ज़त और आबरू अवलिम्बत थी। जिसके पास ज़मीन नहीं, वह गृहस्थ नहीं, मजूर है। होरी ने कुछ जवाब न पाकर पूछा -- तो क्या कहती है?

धनिया ने आहत कंठ से कहा -- कहना क्या है। गौरी बरात लेकर आयँगे। एक जून खिला देना। सबेरे बेटी बिदा कर देना। दुनिया हँसेगी, हँस ले। भगवान् की यही इच्छा है, कि हमारी नाक कटे, मुँह में कालिख लगे तो हम क्या करेंगे।

सहसा नोहरी चुँदरी पहने सामने से जाती हुई दिखाई दी। होरी को देखते ही उसने ज़रा-सा घूँघट निकाल लिया। उससे समधी का नाता मानती थी। धनिया से उसका परिचय हो चुका था। उसने पुकारा -- आज किधर चली समधिन? आओ, बैठो।

नोहरी ने दिग्विजय कर लिया था और अब जनमत को अपने पक्ष में बटोर लेने का प्रयास कर रही थी। आकर खड़ी हो गयी।

धनिया ने उसे सिर से पाँव तक आलोचना की आँखों से देखकर कहा -- आज इधर कैसे भूल पड़ीं?

नोहरी ने कातर स्वर में कहा -- ऐसे ही तुम लोगों से मिलने चली आयी। बिटिया का ब्याह कब तक है?

धनिया स्निग्ध भाव से बोली -- भगवान् के अधीन है, जब हो जाय।

' मैंने तो सुना, इसी सहालग में होगा। तिथि ठीक हो गयी है? '

' हाँ, तिथि तो ठीक हो गयी है। '

' मुझे भी नेवता देना। '

' तुम्हारी तो लड़की है, नेवता कैसा? '

' दहेज का सामान तो मँगवा लिया होगा। ज़रा मैं भी देखूँ। '

धनिया असमंजस में पड़ी, क्या कहे। होरी ने उसे सँभाला -- अभी तो कोई सामान नहीं मँगवाया है, और सामान क्या करना है, कुस-कन्या तो देना है। नोहरी ने अविश्वास-भरी आँखों से देखा -- कुस-कन्या क्यों दोगे महतो, पहली बेटी है, दिल खोलकर करो। होरी हँसा; मानो कह रहा हो, तुम्हें चारों ओर हरा दिखायी देता होगा; यहाँ तो सूखा ही पड़ा हुआ है।

' रुपए-पैसे की तंगी है, क्या खोलकर करूँ। तुमसे कौन परदा है। '

' बेटा कमाता है, तुम कमाते हो; फिर भी रुपए-पैसे की तंगी? किसे विश्वास आयेगा। '

' बेटा ही लायक़ होता, तो फिर काहे को रोना था। चिट्ठी-पत्तर तक भेजता नहीं, रुपए क्या भेजेगा। यह दूसरा साल है, एक चिट्ठी नहीं। '

इतने में सोना बैलों के चारे के लिए हरियाली का एक गट्ठा सिर पर लिये, यौवन को अपने अंचल से चुराती, बालिका-सी सरल, आयी और गट्ठा वहीं पटककर अन्दर चलो गयी। नोहरी ने कहा -- लड़की तो ख़ूब सयानी हो गयी है।

धनिया बोली -- लड़की की बाढ़ रेंड़ की बाढ़ है। नहीं है अभी कै दिन की!

' वर तो ठीक हो गया है न? '

' हाँ, वर तो ठीक है। रुपए का बन्दोबस्त हो गया, तो इसी महीने में ब्याह कर देंगे। नोहरी दिल की ओछी थी। इधर उसने जो थोड़े-से रुपए जोड़े थे, वे उसके पेट में उछल रहे थे; अगर वह सोना के ब्याह के लिए कुछ रुपए दे दे, तो कितना यश मिलेगा। सारे गाँव में उसकी चर्चा हो जायगी। लोग चकित होकर कहेंगे, नोहरी ने इतने रुपए दे दिए। बड़ी देवी है। होरी और धनिया दोनों घर-घर उसका बखान करते फिरेंगे। गाँव में उसका मान-सम्मान कितना बढ़ जायगा। वह उँगली दिखानेवालों का मुँह सी देगी। फिर किसकी हिम्मत है, जो उस पर हँसे, या उस पर आवाज़ें कसे। अभी सारा गाँव उसका दुश्मन है। तब सारा गाँव उसका हितैषी हो जायगा। इस कल्पना से उसकी मुद्रा खिल गयी। '

थोड़े-बहुत से काम चलता हो, तो मुझसे लो; जब हाथ में रुपए आ जायँ तो दे देना। '

होरी और धनिया दोनों ही ने उसकी ओर देखा। नहीं, नोहरी दिल्लगी नहीं कर रही है। दोनों की आँखों में विस्मय था, कृतज्ञता थी, सन्देह था और लज्जा थी। नोहरी उतनी बुरी नहीं है, जितना लोग समझते हैं। नोहरी ने फिर कहा -- तुम्हारी और हमारी इज़्ज़त एक है। तुम्हारी हँसी हो तो क्या मेरी हँसी न होगी? कैसे भी हुआ हो, पर अब तो तुम हमारे समधी हो।

होरी ने सकुचाते हुए कहा -- तुम्हारे रुपए तो घर में ही हैं, जब काम पड़ेगा ले लगे। आदमी अपनों ही का भरोसा तो करता है; मगर ऊपर से इन्तज़ाम हो जाय, तो घर के रुपए क्यों छुए।

धनिया ने अनुमोदन किया -- हाँ, और क्या।

नोहरी ने अपनापन जताया -- जब घर में रुपए हैं, तो बाहरवालों के सामने हाथ क्यों फैलाओ। सूद भी देना पड़ेगा, उस पर इस्टाम लिखो, गवाही कराओ, दस्तूरी दो, खुसामद करो। हाँ, मेरे रुपए में छूत लगी हो, तो दूसरी बात है।

होरी ने सँभाला -- नहीं, नहीं नोहरी, जब घर में काम चल जायगा, तो बाहर क्यों हाथ फैलायेंगे; लेकिन आपसवाली बात है। खेती-बारी का भरोसा नहीं। तुम्हें जल्दी कोई काम पड़ा और हम रुपए न जुटा सके, तो तुम्हें भी बुरा लगेगा और हमारी जान भी संकट में पड़ेगी। इससे कहता था। नहीं, लड़की तो तुम्हारी है।

'मुझे अभी रुपये की ऐस जल्दी नहीं है।'

'तुम्ही से ले लेंगे। कन्यादान का फल भी क्यों बाहर जाय।'

'कितने रुपये चाहिए?

'तुम कितने दे सकोगी?'

' सौ में काम चल जायगा? '

होरी को लालच आया। भगवान् ने छप्पर फाड़कर रुपए दिये हैं, तो जितना ले सके, उतना क्यों न ले!

' सौ में भी चल जायगा। पाँच सौ में भी चल जायगा। जैसा हौसला हो। '

' मेरे पास कुल दो सौ रुपए हैं, वह मैं दे दूँगी। '

तो इतने में बड़ी खुसफेली से काम चल जायगा। अनाज घर में है; मगर ठकुराइन, आज तुमसे कहता हूँ, मैं तुम्हें ऐसी लच्छमी न समझता था। इस ज़माने में कौन किसकी मदद करता है, और किसके पास है। तुमने मुझे डूबते से बचा लिया। '

दिया-बत्ती का समय आ गया था। ठंडक पड़ने लगी थी। ज़मीन ने नीली चादर ओढ़ ली थी। धनिया अन्दर जाकर अँगीठी लायी। सब तापने लगे। पुआल के प्रकाश में छबीली, रँगीली, कुलटा नोहरी उनकी सामने वरदान-सी बैठी थी। इस समय उसकी उन आँखों में कितनी सहृदयता थी; कपोलों पर कितनी लज्जा, ओठों पर कितनी सत्प्रेरणा! कुछ देर तक इधर-उधर की बातें करके नोहरी उठ खड़ी हुई और यह कहती हुई घर चली -- अब देर हो रही है। कल तुम आकर रुपए ले लेना महतो!

' चलो, मैं तुम्हें पहुँचा दूँ। ' ' नहीं-नहीं, तुम बैठो, मैं चली जाऊँगी। '

' जी तो चाहता है, तुम्हें कन्धे पर बैठाकर पहुँचाऊँ। '

नोखेराम की चौपाल गाँव के दूसरे सिरे पर थी, और बाहर-बाहर जाने का रास्ता साफ़ था। दोनों उसी रास्ते से चले। अब चारों ओर सन्नाटा था। नोहरी ने कहा -- तनिक समझा देते रावत को। क्यों सबसे लड़ाई किया करते हैं। जब इन्हीं लोगों के बीच में रहना है, तो ऐसे रहना चाहिए न कि चार आदमी अपने हो जायँ। और इनका हाल यह है कि सबसे लड़ाई, सबसे झगड़ा। जब तुम मुझे परदे में नहीं रख सकते, मुझे दूसरों की मजूरी करनी पड़ती है, तो यह कैसे निभ सकता है कि मैं न किसी से हँसूँ, न बोलूँ, न कोई मेरी ओर ताके, न हँसे। यह सब तो परदे में ही हो सकता है। पूछो, कोई मेरी ओर ताकता या घूरता है तो मैं क्या करूँ। उसकी आँखें तो नहीं फोड़ सकती। फिर मेल-मुहब्बत से आदमी के सौ काम निकलते हैं। जैसा समय देखो, वैसा व्यवहार करो। तुम्हारे घर हाथी झूमता था, तो अब वह तुम्हारे किस काम का। अब तो तुम तीन रुपए के मजूर हो। मेरे घर तो भैंस लगती थी, लेकिन अब तो मजूरिन हूँ; मगर उनकी समझ में कोई बात आती ही नहीं। कभी लड़कों के साथ रहने की सोचते हैं, कभी लखनऊ जाकर रहने की सोचते हैं। नाक में दम कर रखा है मेरे।

होरी ने ठकुरसुहाती की -- यह भोला की सरासर नादानी है। बूढ़े हुए, अब तो उन्हें समझ आनी चाहिए। मैं समझा दूँगा।

' तो सबेरे आ जाना, रुपए दे दूँगी। '

' कुछ लिखा पढ़ी ... '

' तुम मेरे रुपए हज़म न करोगे, मैं जानती हूँ। ' उसका घर आ गया। वह अन्दर चली गयी। होरी घर लौटा।

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रचनाएँ
गोदान
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प्रेमचंद आधुनिक हिन्दी कहानी के पितामह और उपन्यास सम्राट माने जाते हैं। यों तो उनके साहित्यिक जीवन का आरंभ १९०१ से हो चुका था पर बीस वर्षों की इस अवधि में उनकी कहानियों के अनेक रंग देखने को मिलते हैं। गोदान एक शोषित किसान और ग्रामीण जीवन पर आधारित उन्न्यास है। इसके नायक होरी और उसकी धर्म पत्नी धनिया जो महाजनी व्यवस्था में चलने वाले निरन्तर शोषण और संत्रास में शिकार हैं। होरी किस्मत का मारा कर्ज के बोझ के तले दबा किसान है जो किसानी और मेहनत मजदूरी करके किसी तरह अपने परिवार का पेट पालता है। इस उपन्यास में होरी की लालसा , गांव के पूंजीपति लोगों का षड्यंत्र, नारी के प्रति लोगों की असम्मान की भावना, पंडित जी जैसे लोगों की बनाई हुई कुरीति , एक किसान की समस्या व गरीबों के साथ हो रहे शोषण का चित्रण किया है।
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गोदान, भाग-1

29 सितम्बर 2021
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<p>होरीराम ने दोनों बैलों को सानी-पानी देकर अपनी स्त्री धनिया से कहा -- गोबर को ऊख गोड़ने भेज देना।

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गोदान भाग-2

29 सितम्बर 2021
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<p>सेमरी और बेलारी दोनों अवध-प्रान्त के गाँव हैं। ज़िले का नाम बताने की कोई ज़रूरत नहीं। होरी बेलारी

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गोदान भाग -3

29 सितम्बर 2021
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<p>होरी अपने गाँव के समीप पहुँचा, तो देखा, अभी तक गोबर खेत में ऊख गोड़ रहा है और दोनों लड़कियाँ भी उ

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गोदान भाग-4

30 सितम्बर 2021
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<p>होरी को रात भर नींद नहीं आयी। नीम के पेड़-तले अपनी बाँस की खाट पर पड़ा बार-बार तारों की ओर देखता

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गोदान भाग-5

30 सितम्बर 2021
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<p>उधर गोबर खाना खाकर अहिराने में पहुँचा। आज झुनिया से उसकी बहुत-सी बातें हुई थीं। जब वह गाय लेकर चल

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गोदान भाग 6

30 सितम्बर 2021
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<p>जेठ की उदास और गर्म सन्ध्या सेमरी की सड़कों और गलियों में पानी के छिड़काव से शीतल और प्रसन्न हो र

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गोदान भाग -7

30 सितम्बर 2021
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<p>यह अभिनय जब समाप्त हुआ, तो उधर रंगशाला में धनुष-यज्ञ समाप्त हो चुका था और सामाजिक प्रहसन की तैयार

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अध्याय भाग-8

1 अक्टूबर 2021
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<p>जब से होरी के घर में गाय आ गयी है, घर की श्री ही कुछ और हो गयी है। धनिया का घमंड तो उसके सँभाल से

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अध्याय भाग - 9

1 अक्टूबर 2021
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<p>प्रातःकाल होरी के घर में एक पूरा हंगामा हो गया। होरी धनिया को मार रहा था। धनिया उसे गालियाँ दे रह

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अध्याय भाग-10

1 अक्टूबर 2021
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<p>हीरा का कहीं पता न चला और दिन गुज़रते जाते थे। होरी से जहाँ तक दौड़धूप हो सकी की; फिर हारकर बैठ र

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अध्याय भाग-11

2 अक्टूबर 2021
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<p>ऐसे असाधारण कांड पर गाँव में जो कुछ हलचल मचना चाहिए था, वह मचा और महीनों तक मचता रहा। झुनिया के द

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अध्याय भाग-12

2 अक्टूबर 2021
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<p>रात को गोबर झुनिया के साथ चला, तो ऐसा काँप रहा था, जैसे उसकी नाक कटी हुई हो। झुनिया को देखते ही स

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अध्याय भाग-13

4 अक्टूबर 2021
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<p>गोबर अँधेरे ही मुँह उठा और कोदई से बिदा माँगी। सबको मालूम हो गया था कि उसका ब्याह हो चुका है; इसल

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अध्याय भाग-14

4 अक्टूबर 2021
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<p>होरी की फ़सल सारी की सारी डाँड़ की भेंट हो चुकी थी। वैशाख तो किसी तरह कटा, मगर जेठ लगते-लगते घर म

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अध्याय भाग-15

4 अक्टूबर 2021
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<p>मालती बाहर से तितली है, भीतर से मधुमक्खी। उसके जीवन में हँसी ही हँसी नहीं है, केवल गुड़ खाकर कौन

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अध्याय भाग-16

5 अक्टूबर 2021
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<p>राय साहब को ख़बर मिली कि इलाक़े में एक वारदात हो गयी है और होरी से गाँव के पंचों ने जुरमाना वसूल

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अध्याय भाग-17

5 अक्टूबर 2021
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<p>गाँव में ख़बर फैल गयी कि राय साहब ने पंचों को बुलाकर ख़ूब डाँटा और इन लोगों ने जितने रुपए वसूल कि

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अध्याय भाग-18

6 अक्टूबर 2021
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<p>खन्ना और गोविन्दी में नहीं पटती। क्यों नहीं पटती, यह बताना कठिन है। ज्योतिष के हिसाब से उनके ग्रह

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अध्याय भाग-19

6 अक्टूबर 2021
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<p>मिरज़ा खुर्शेद का हाता क्लब भी है, कचहरी भी, अखाड़ा भी। दिन भर जमघट लगा रहता है। मुहल्ले में अखाड

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अध्याय भाग-20

7 अक्टूबर 2021
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<p>मिरज़ा खुर्शेद का हाता क्लब भी है, कचहरी भी, अखाड़ा भी। दिन भर जमघट लगा रहता है। मुहल्ले में अखाड

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अध्याय भाग-21

7 अक्टूबर 2021
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<p>देहातों में साल के छः महीने किसी न किसी उत्सव में ढोल-मजीरा बजता रहता है। होली के एक महीना पहले स

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अध्याय भाग-22

8 अक्टूबर 2021
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<p>इधर कुछ दिनों से राय साहब की कन्या के विवाह की बातचीत हो रही थी। उसके साथ ही एलेक्शन भी सिर पर आ

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अध्याय भाग-23

8 अक्टूबर 2021
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<p>गोबर और झुनिया के जाने के बाद घर सुनसान रहने लगा। धनिया को बार-बार मुन्नू की याद आती रहती है। बच्

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अध्याय भाग- 24

8 अक्टूबर 2021
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<p>सोना सत्रहवें साल में थी और इस साल उसका विवाह करना आवश्यक था। होरी तो दो साल से इसी फ़िक्र में था

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अध्याय भाग- 25

8 अक्टूबर 2021
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<p>भोला इधर दूसरी सगाई लाये थे। औरत के बग़ैर उनका जीवन नीरस था। जब तक झुनिया थी, उन्हें हुक़्क़ा-पान

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अध्याय भाग- 26

9 अक्टूबर 2021
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<p>लाला पटेश्वरी पटवारी-समुदाय के सद् गुणों के साक्षात् अवतार थे। वह यह न देख सकते थे कि कोई असामी अ

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अध्याय भाग- 27

9 अक्टूबर 2021
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<p>गोबर को शहर आने पर मालूम हुआ कि जिस अड्डे पर वह अपना खोंचा लेकर बैठता था, वहाँ एक दूसरा खोंचेवाला

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अध्याय भाग- 28

9 अक्टूबर 2021
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<p>मिस्टर खन्ना को मजूरों की यह हड़ताल बिलकुल बेजा मालूम होती थी। उन्होंने हमेशा जनता के साथ मिले रह

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अध्याय भाग- 29

9 अक्टूबर 2021
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<p>नोहरी उन औरतों में न थी, जो नेकी करके दरिया में डाल देती है। उसने नेकी की है, तो उसका ख़ूब ढिंढोर

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अध्याय भाग- 30

9 अक्टूबर 2021
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<p>मिल क़रीब-क़रीब पूरी जल चुकी है; लेकिन उसी मिल को फिर से खड़ा करना होगा। मिस्टर खन्ना ने अपनी सार

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अध्याय भाग- 31

13 अक्टूबर 2021
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<p>राय साहब का सितारा बुलन्द था। उनके तीनों मंसूबे पूरे हो गये थे। कन्या की शादी धूम-धाम से हो गयी थ

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अध्याय भाग- 32

13 अक्टूबर 2021
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<p>मिरज़ा खुर्शेद ने अस्पताल से निकलकर एक नया काम शुरू कर दिया था। निश्चिन्त बैठना उनके स्वभाव में न

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अध्याय भाग- 33

13 अक्टूबर 2021
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<p>डाक्टर मेहता परीक्षक से परीक्षार्थी हो गये हैं। मालती से दूर-दूर रहकर उन्हें ऐसी शंका होने लगी है

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अध्याय भाग- 34

13 अक्टूबर 2021
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<p>सिलिया का बालक अब दो साल का हो रहा था और सारे गाँव में दौड़ लगाता था। अपने साथ एक विचित्र भाषा ला

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अध्याय भाग- 35

13 अक्टूबर 2021
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<p>होरी की दशा दिन-दिन गिरती ही जा रही थी। जीवन के संघर्ष में उसे सदैव हार हुई; पर उसने कभी हिम्मत न

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