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अहंकार
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अतिभाग्य मिला यह जीवन है ,
इसे मद लोभ में यूं न बिताओ ,
धर सुकृति सुकर्म के आभूषण ,
यह दुर्लभ मानव जीवन सजाओ ।
शुचिता ,सौहार्द्र भरा जीवन ,
नही अहंकार की हो साया ,
अहंकार मत करिए कभी भी,
अहंकार नही रह पाया ।।
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अहंकार किया जिसने भी यहाँ,
नही अधिक दिनों तक छत्र रहा,
मिटा उनका अतिशीघ्र विभव,
अरु पतन का फिर शुरू सत्र रहा।
इसलिए विचार करो मानव,
है अहंकार में काल समाया,
अहंकार मत करिए कभी भी,
अहंकार नही रह पाया ।।
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मद में धन बल परिवारन के,
करी कपट सिय हर लायो दशानन,
मारीच करे बहुभाँती प्रबोध ,
तनिक भी बात सुन्यो नही कानन।
निज मद में उसे खबर नही यह,
सीय के रूप में काल है आया,
अहंकार मत करिए कभी भी,
अहंकार नही रह पाया ।।
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अति उत्तम कुल में जन्म लिया,
निज भुज तपबल से सुजस है पायो,
अभिमान अधीन फिर होकर के,
अनीत कियो जननी हर लायो।
कहै हनुमान सुन विनती राजन,
अभिमान तजो ,भजो रघुराया,
अहंकार मत करिए कभी भी,
अहंकार नही रह पाया ।।
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नही नर नाग ना सुर असुर,
न बाहर भीतर मृत्यु हमारो,
दिवस रजनी नही अस्त्र शस्त्र,
फिर कौन भला हमे रन में मारो।
अति दारुन अत्याचार को देख,
नृसिंह बन अंत है खम्भ में आया,
अहंकार मत करिए कभी भी,
अहंकार नही रह पाया।।
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काम को जीत लिया जब नारद,
अहिमती मन में उसकी समाई,
चतुरानन ,शिव,बैकुंठपति से,
वह अपनी सारी कीर्ति सुनाई।
माया के राजस्वयम्बर में फिर,
अपना सारा यश है गंवाया,
अहंकार मत करिए कभी भी,
अहंकार नही रह पाया ।।
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मेरी प्रचण्ड वेग को थाम सके,
अवनी में किसी की शक्ति नही,
जब जाऊँ धरा ब्रम्हलोक से तो,
मिट जाए न धरा की हस्ती कहीं।
ब्रम्हकामण्डल से निकली अरु,
शिव जटा में खोकर मार्ग भुलाया,
अहंकार मत करिए कभी भी,
अहंकार नही रह पाया ।।
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जीवनपथ पर यह ध्यान रहे,
सूर्य उगा है तो वह डूबा भी है,
सृजन कर नव कर्तव्यों का ,
प्रतिपल मौसम खुशनुमा भी है।
अहंकार है पावक के समान,
नही शेष रहा जो इसे अपनाया,
अहंकार मत करिए कभी भी,
अहंकार नही रह पाया ।।
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