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जन्मभूमि

19 मई 2022

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रचनाकार - रामावतार चन्द्राकर

🎄🎄🎄🎄🎄🎄🎄🎄🎄🎄

ऐ जन्म भूमि तेरे चरणों पर,
 नित सादर शीश झुकाऊँ मैं,
तेरे अति पावन रजकण को,
 मस्तक पर अपने सजाऊ मैं।
हे ममतामयी तेरी गोदी को ,
पाकर ही सब कुछ पाया है ,
तेरी अनूप इस महिमा को ,
अवतार सदा ही गाऊ मैं।

--------- ------ ----------

वैभव अपार तेरे आँचल में ,
सुख कीर्ति का तू समन्दर है ।
महिमा अमित  रिद्धि सिद्धि ,
सब निधियां तेरे  अंदर है।
तुम सहनशक्ति का मूर्त रूप ,
तुझसे ही आस लगाऊ मैं ।
ऐ जन्म भूमि तेरे चरणों पर ,
नित सादर शीश झुकाऊँ मैं।

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नवतरु पल्लव से आच्छादित,
नित सौरभ लिए महकता है,।
नव फूल कमलदल खिले हुए ,
पोखर में रूप सा सजता हैं ।
तेरे सुरभित इस आंगन में कुछ ,
नूतन फूलो को लगाऊ मैं ।
ऐ जन्मभूमि तेरे चरणों पर, 
नित सादर शीश झुकाऊँ मैं।                              
---------------------------

चन्दन कुमकुम  रोचन दुर्बा , 
मस्तक पर सोहत रोली है।
सुंदरता को भी  सुंदर करती ,
ज्यो सोहत दुल्हन डोली है  ।
तेरे अपूर्व  छबि सिंधु को ,
अवलोकत ही   सुख पाऊँ मैं।
ऐ जन्मभूमि तेरे चरणों पर ,
नित सादर शीश झुकाऊ मै।

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शरद ऋतु की शशिकिरण ,
ज्यों चांदनी से भर देती है ।
त्यों तेरे उपकारी सद्गुण, 
मन की उत्कंठा हर लेती है ।
अतिआतप से व्याकुल मन को,
आँचल में बैठ बहलाऊँ मैं ।
ऐ जन्मभूमि तेरे चरणों पर ,
नित सादर शीश झुकाऊँ मै।

---------------------------

आंगन में आसमान के जैसे ,
तारागण आश्रय पाते हैं ।
पर्वत जैसे अपने ऊपर  ,
बहु वनस्पति को उगाते है ।
वैसे ही तेरे कुनबे पर ,
धर मनुज शरीर इतराऊ मै।
ऐ जन्मभूमि तेरे चरणों पर ,
नित सादर शीश झुकाऊँ मैं।

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जे पशुतुल्य भये जग में ,
हतभाग्य अधम वो प्राणी है ।
जो उधम मचाता आंगन में ,
करता अपनी मनमानी है।
ऐसे कृतघ्न कुपुत्रो को ,
कुछ ज्ञान का पाठ पढाऊ मैं ।
ऐ जन्मभूमि तेरे चरणों पर ,
नित सादर शीश झुकाऊँ मैं।

---------------------------

खेले कूदे हम पले बड़े ,
तुम जननी सी प्यार लुटाती रही।
तुझे लाखो कष्ट दिए हमने ,
उसे सहती रही भुलाती रही।
सुकृति मेरा कछु शेष रहे तो, 
पुनः आँचल में जन्म पाऊँ मैं ।
ऐ जन्मभूमि तेरे चरणों पर,
नित सादर शीश झुकाऊँ मैं ।

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जारी है ......







रामावतार चन्द्राकर की अन्य किताबें

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रचनाएँ
मेरी आराधना
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इस पुस्तक में मैंने जीवन के यथार्थ पहलुओं को एवं मानव मानस के भावो को कविता के माध्यम से आप सभी सुधिजनो के मध्य लाने का प्रयास किया है ।यह मेरा प्रथम काव्य संग्रह है जिसमे मैन अपने जीवन के अनुभवों को शब्दों के रूप में पिरोया है ,दिल से पढियेगा तो अवश्य ही आप मेरे अंतश की गहराइयों तक पहुँचने में सफल होंगे ।।इस पुस्तक में मैंने जीवन के यथार्थ को जनमानस के मध्य प्रसारित करने का प्रयास किया है ,मैंने अपनी जीवन में जो कुछ भी देखा, सुना,पढ़ा, समझा, अनुभव किया और जिया भी, उन्ही सभी भावनाओं को कविता के रूप में सँजोकर पाठकों के बीच लाने की कोशिश की है , मेरी भाषा सरल एवं सहज है अधिक व्याकरण का ज्ञान नही है । “कवित्त विवेक एक नही मोरे सत्य कहउँ लिखी कागज कोरे “-गोस्वामी तुलसीदास पाठक वर्ग से निवेदन है कि वह मेरी कविता को पढ़ते समय शब्दों की गलतियों को ध्यान न देकर भावों को समझने की कृपा करेंगे । धन्यवाद :::::::::::::::::::::::::::::::::::: कृपया अवश्य पढ़ें- मेरी आराधना जय श्री राम
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जन्मभूमि

19 मई 2022
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रचनाकार - रामावतार चन्द्राकर🎄🎄🎄🎄🎄🎄🎄🎄🎄🎄ऐ जन्म भूमि तेरे चरणों पर, नित सादर श

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बारी सबकी आएगी

16 मई 2022
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रचनाकार - कुर्मी रामावतार चन्द्राकर====================होना मत हैरान सखे ,जो बांटा है मिल जाएं तो,खाएं थे जिस पेड़ से आम ,वो पत्थर गर बरसाए तो।गुजरी हुई वो समय की कतरन,अवसि लौट के आएगी,देर

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क्या कहूँ

15 मई 2022
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:::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::पाने को मंजिल की खुशबू ,कितने फूलों को मसल दिया,कुमुदनी इंदु को अर्पित की ,सूरज को नव कमल दिया।आह्लाद हुआ मन जिसको पाकर, जाने किसने रहमत की,कर्मों

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वृक्ष

16 मई 2022
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1-🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳अवनी के आभूषण बनकर , सुंदरता मैनें ही बढ़ाया ।मेरे ही फल -फूल- पत्र से ,

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नई आस

15 मई 2022
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::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::कल्पना साकार होता दिख रहा है,आसमाँ फिर साफ होता दिख रहा है।।छाई थी कुछ काल से जो कालिमा,आज फिर से धुंध छटता दिख रहा है ।कल्पना साकार....::::

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स्वतंत्रता -1

15 मई 2022
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विषय - स्वतन्त्रतादिनांक - 17 अगस्त 2021रचनाकार - श्री रामावतार चंद्राकर🇨🇮🇨🇮🇨🇮🇨🇮🇨🇮🇨🇮🇨🇮🇨🇮🇨🇮🇨🇮🇨🇮चीर तमय के गहन हिय को, दिव्य दिवाकर चमका है ।कुंठित मन की अभिलाषाएं,&nbsp

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स्वतंत्रता -2

15 मई 2022
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🇨🇮🇨🇮🇨🇮🇨🇮🇨🇮🇨🇮🇨🇮🇨🇮🇨🇮🇨🇮🇨🇮🇨🇮 स्वतन्त्रता का दीपक है वो जला गया,महाकाल बनके दुश्मन को है दला गया।तमारी बनके उसने तम को खूब हरा है,करके फ़िजा को रोशन है वो चला गया ।।🇨🇮🇨🇮🇨🇮

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स्वतंत्रता - 3

16 मई 2022
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🇨🇮🇨🇮🇨🇮🇨🇮🇨🇮🇨🇮🇨🇮🇨🇮🇨🇮🇨🇮स्वतन्त्रता अच्छी नही , होती जो संस्कार हीन।कभी कभी बेगैरत भी, कर जाती घर को मलि

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आश्चर्य कैसा!

16 मई 2022
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🎏🎏🎏🎏🎏🎏नही अवतार जीवन का ,समझ में भेद है आता ।कभी दौर ए मोहब्बत में ,कहीं रंजिश है रह जाता ।बताकर के कभी ख़ंजर ,हृदय को भेद जाए तो ।नही हैरत जमाने में ,कहीं कुछ भी हो जाये तो ।।🎏🎏🎏�

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वेदना

15 मई 2022
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::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::जिरह दिल की कोई समझे नही ,हम जी रहे कैसे।कहे तो हाल ए मन किससे कहे ,हम जी रहे कैसे।।::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::टूटा तिलिस्म

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अधिकार

16 मई 2022
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:::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::"अधिकार" समान मिले सबको ,भारत का गौरव और हो ऊँचा ।जब मानव को मानव पहचाने ,तब पुष्ट हो मानव धर्म समूचा ।समता का भाव सुदृढ़ बने ,और मतभेदो

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भेदी

16 मई 2022
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:- रामावतार चन्द्राकर ÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷दीपक को क्या पता अंधेरा कहाँ है, उजाले में भी जलाओ जलता रहता है !गैरो को क्या पता नब्ज नाजुक है कहाँ, वो तो अपने है जो इशारे किय

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16 मई 2022
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तेरी तरह सब जीना चाहेसबको जीवन का अधिकार!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!क्यों मनमौजी बना है फिरतामूक जीवन क्यों छेड़ते हो तुमजो तेरे घट माँझ बिराजतसबके भीतर देखो ना

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समय

16 मई 2022
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::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::समय बहुत अनमोल रे मनवा,हर घड़ी का सम्मान करें हम ,समय की धार में बह बह जाए,नही इनका तिरस्कार करे हम।कितने भी विपरीत हो घड़ियां,नही तनिक दुखों का भान रहे,हर एक

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यादें (पहला प्यार)

17 मई 2022
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====================कितने बरष है बीत गए पर ,अब भी आंखों में मुस्काये,जब कोई छेड़े तार दिल की,दिल मे हलचल सी उठ जाए,रह रह कर वो चेहरा मेरे, ख्वाबो में है आ ही जाता ,सच ही कहा है कहने वा

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चलता ही जाऊंगा

18 मई 2022
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:-:-:-:-:-:-:-:-:-:-:-:-:-:-:-:-:-:-:-:-:-:-:-:-:-:-:-:-:-:-:-:-:-:-:- सौगन्ध मुझे करनी

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भेदी

18 मई 2022
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÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷दीपक को क्या पता अंधेरा कहाँ है, उजाले में भी जलाओ जलता रहता है !गैरो को क्या पता नब्ज नाजुक है कहाँ, वो तो अपने है जो इशारे किया करते है !!÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷छि

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पथिक

18 मई 2022
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कविता का नाम - पथिकरचनाकार -रामावतार चन्द्राकरऐ राह ए मुसाफिर जीवन के ,पग पग देख के चलना,शूल है बिखरे हुए हर पथ पर,तुम मत कभी मचलना । &nbs

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ऐ दोस्त

18 मई 2022
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===============================थाम लेती है किनारे अपनी बाहों में ,रूठकर आती हुई लहरों के वेग को ।समा लेती है अपने अंदर समंदर जैसे ,दौड़कर आती सरिताओं के आवेग को।फिसलता हुआ पगडंडियों पर चल रहा था

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भूलें

19 मई 2022
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-:-:-:-:-:-:-:-:-:-:-:-:-:-:-:-:-:-:-:बड़ी भूल हुई इस जीवन में,शुभ कर्म अलंकृत कर न सके।बन मानव तो हम यार गए ,यश भूषण अंग पर धर न सके ।बेअदब हो गए दुनिया में,नैतिकता का अवरोध रहा ।हम भूल गए निज ध

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आचरण

19 मई 2022
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::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::झलकता शब्द से भी है ,हमारा आचरण हरदम ,बयां आंखे भी करती है ,कभी छुपकर कभी हो नम ।हमारा मौन रहना भी, बहुत कुछ बोल जाता है ,क

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अपनी -अपनी अवकाते

19 मई 2022
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शीर्षक - अपनी अपनी अवकातें =======================मौन ही रहकर करता हूं मैं,अर्थपूर्ण गम्भीर इशारे ,मेरे मन की लब्ज़ है ये जिसे,टिमटिमा के कहते हैं तारे ।चिर गगन के खुले पटल पर , ल

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शब्दों की मर्यादा

19 मई 2022
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●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●दिल मे उतरकर अपनो सा, अहसास करा जाती है ।और कभी दिल को ही भेद , विक्षुप्त

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शोषक और शोषित वर्ग

19 मई 2022
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शोषक और शोषित वर्ग::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::टूटी हुई कलम से तुमने ,गैरो का इतिहास लिखा ,

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शेर -ए -जिंदगी ( जीवन का दर्द )

19 मई 2022
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===============================दिल के हकीम दिल के दर्द को बढ़ा गया,राह ए वफ़ा में झूठी अदाएं गढ़ा गया ,कहकर मुझे हमदर्द छलावा किया मुझसे,फिर अपनी दगाओ के भेंट वो चढ़ा गया ।==========================

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पाखण्डता

19 मई 2022
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=========================है सिलसिला ये कैसा, राह- ए- मजार में ,खबर नही किसी को, पर चल रहे हैं सब।मन मे लिए उमंगे न , जाने किस बात की,पाने को सुख कौन सा , मचल रहे हैं सब ।==================

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अहंकार

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:::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::: अहंकार:::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::

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मेरा समाज

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::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::है फैली चहुँ ओर समाज मे ,रूढ़िवादी परम्पराएं ।कुप्रथाएं खुद के होने का ,पल पल ही एहसास कराए ।इन सबसे ऊपर उठने को ,जागरूक हम समाज करे ।हम सब कुल के गौरव अपने,&n

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मिल जाएगा

19 मई 2022
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मिल जाएगा ::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::विस्मृत मन में ख्वाब सुनहरे ,यूं ही उलझ उलझ जाए रे,टूटी हुई सी तारे मन की, फिर से राग सुना जाए रे।तिल तिल मरती हुई सांसो म

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