रचनाकार - कुर्मी रामावतार चन्द्राकर
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होना मत हैरान सखे ,
जो बांटा है मिल जाएं तो,
खाएं थे जिस पेड़ से आम ,
वो पत्थर गर बरसाए तो।
गुजरी हुई वो समय की कतरन,
अवसि लौट के आएगी,
देर सही ; पर धीरे धीरे ,
बारी सबकी आएगी ।।
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देख खाक होती झोपड़ियां,
नयनों में सुख छाया था ,
बुझती हुई चिंगारी को क्या,
तुमने नही भड़काया था,
चिंगारी है वही; एक दिन,
दिशा भूल कर जाएगी,
देर सही ; पर धीरे धीरे ,
बारी सबकी आएगी ।।
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गेंहू की बाली मरोड़कर,
दोनों हाथों से मसला था,
पंकज की कोमल पंखुड़ियां,
पैरों पर रखकर कुचला था,
जब कालचक्र चाबुक लेकर,
कृत कर्मों को दौड़ायेगी,
देर सही ; पर धीरे धीरे ,
बारी सबकी आएगी ।।
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फलती हुई प्रेम विटप जड़ पर ,
तुमने जब मट्ठा डाला था,
जब तुमने उसे ही मार दिया,
जो तुम पर मरने वाला था।
उन सम्बन्धों का करुण हृदय,
ये चीख चीख चिल्लाएगी,
देर सही ; पर धीरे धीरे ,
बारी सबकी आएगी ।
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तेरे लिए जब धर्म थे पतले,
और रुपिया खासा मोटा था,
स्वारथ की रस्सी से तुमने,
अपनो का ही गला घोंटा था।
जो रुप है दुनिया मे तेरा ,
वही रूप समय दिखलाएगी,
देर सही ; पर धीरे धीरे ,
बारी सबकी आएगी ।।
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सूरज से उजियारा लेकर ,
दुनियां को तिमिर परोसा है,
वरदान मिला जिस धड़कन से,
उसको भी तुमने कोसा है।
किरणों के कण को तरसेगा,
बन कालनिशा जब छाएगी,
देर सही ; पर धीरे धीरे ,
बारी सबकी आएगी ।।
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जब प्यास से व्याकुल चिड़ियों को,
जल पीने से ललकारा था,
जब लौट गया तेरे चौखट से,
कोई दीन समय का मारा था।
अब वही समय कर पीछा तेरा,
कर्मों का हिसाब लगाएगी,
देर सही ; पर धीरे धीरे ,
बारी सबकी आएगी ।।
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अवतार सार यही गीता का ,
जो किया है वही भरेगा भी,
नही करम जाल से छूटेगा,
है नियम यही प्रकृति का भी।
जीवन पृष्ठों पर जो हैं लिखा ,
इतिहास वही दोहराएगी,
देर सही ; पर धीरे धीरे ,
बारी सबकी आएगी ।।
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जारी है ........