1-🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳
अवनी के आभूषण बनकर ,
सुंदरता मैनें ही बढ़ाया ।
मेरे ही फल -फूल- पत्र से ,
जीवन ,जीवन को है पाया ।
हरित नवीन परिधान कभी ,
कभी बनकर छत्र सुहाता हूँ ।
प्रकृति प्रदत्त वरदान हूं मैं ,
जग पोषण, जीव अधिष्ठाता हूं ।
2-🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳
नव पल्लव से मैं आच्छादित ,
नित सौरभ लिए महकता हूं ।
किसलय अति शोभित तन मेरे ,
अति व्याकुलता भी हरता हूं।
शीतल -मन्द -सुगन्धित संतत ,
बाऊ की चँवर डुलाता हूं ।
प्रकृति प्रदत्त वरदान हूं मैं ,
जग पोषण, जीव अधिष्ठाता हूं।
3-🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳
मैं तीर्थ तपोवन - पावन -उपवन,
साधक अटल यशस्वी -सा ।
मैं सहूँ धूप ,पानी ,पत्थर,
न तजु मैं धर्म तपस्वी -सा ।
मैं वृक्ष सदा से हूँ अकाम ,
बिनु मांगे ही फल का दाता हूँ ।
प्रकृति प्रदत्त वरदान हूं मैं ,
जग पोषण, जीव अधिष्ठाता हूं।
4-🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳
मेरे ही नव पट धारण से ,
ऋतुयें भी आती जाती है ।
जाति विविध के विहंग बहु ,
मुझमे ही आश्रय पाती है ।
बादल को बरसने के खातिर,
संदेश मैं ही भिजवाता हूँ ।
प्रकृति प्रदत्त वरदान हूं मैं ,
जग पोषण, जीव अधिष्ठाता हूं।
5-🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳
मैं बन खजूर ,बरगद, चन्दन ,
जीवन का सिख दे जाता हूं ।
पीपल, जामुन ,महुआ ,कीकर ,
बन तप्त हृदय सहलाता हूँ ।
मैं बन रसाल- पाटन -पनस ,
मानव का भेद बताता हूं ।
प्रकृति प्रदत्त वरदान हूं मैं ,
जग पोषण, जीव अधिष्ठाता हूं।
6-🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳
सृष्टि के उद्भव से लेकर मैं ,
प्रलय की सत्य कहानी हूँ ।
मैं अर्थ,धर्म अरु काम ,मोक्ष ,
मैं प्राण जीव की रवानी हूँ ।
बन ईंधन आग में जलकर के ,
मैं उदर की आग बुझाता हूँ ।
प्रकृति प्रदत्त वरदान हूं मैं ,
जग पोषण, जीव अधिष्ठाता हूं।
7-🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳
उत्सव का जश्न मनाता हूँ ,
आये बसन्त तो झूम - झूम ।
बरसे सावन खिल-खिल जाऊँ,
लहराऊ गगन को चूम - चूम ।
अति आतप को शीतलता दूँ ,
पतझड़ की मार भी खाता हूं ।
प्रकृति प्रदत्त वरदान हूं मैं ,
जग पोषण, जीव अधिष्ठाता हूं।
8-🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳
जगहित में मदन ने मुझ पर छुप ,
कभी शिव पर बान चलाया था ।
बालीवध का प्रारूप राम ने ,
मेरे आश्रय में ही बनाया था ।
मैं चरक और सुश्रुत का आराध्य,
नव चेतनता भर जाता हूँ ।
प्रकृति प्रदत्त वरदान हूं मैं ,
जग पोषण, जीव अधिष्ठाता हूं।
9-🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳
बन आयुर्वेद मैं ग्रंथ लिखूं ,
जख्म हेतु मैं सुधा बन जाऊं ।
कभी साज बनूँ आवाज बनूँ ,
कदम्ब बन कृष्ण को गोद बिठाऊँ ।
संजीवनी बनकर मैं ही तो ,
सौमित्र के प्राण प्रदाता हूं ।
प्रकृति प्रदत्त वरदान हूं मैं ,
जग पोषण, जीव अधिष्ठाता हूं।
10-🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳
मैं परोपकार का मूर्त रूप ,
मुझे आहत हे ! मानव न करो ।
मेरा रक्षण करो संवर्धन दो ,
ना हरण चिर वसुधा का करो ।
मैं वृक्ष ही जीवन सृष्टि पर ,
आमोद - प्रमोद का धाता हूँ ।
प्रकृति प्रदत्त वरदान हूं मैं ,
जग पोषण, जीव अधिष्ठाता हूं।
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