मिल जाएगा
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विस्मृत मन में ख्वाब सुनहरे ,
यूं ही उलझ उलझ जाए रे,
टूटी हुई सी तारे मन की,
फिर से राग सुना जाए रे।
तिल तिल मरती हुई सांसो में,
जीवन फिर से भर जाएगा,
नेक नियत से मैंने रब से ,
मांगा है अब मिल जायेगा ।।
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भूली भूली सी सब राहें,
पल पल पग ये लहराए रे,
दूर कहीं पर खड़ा सिपाही,
बस यही टेर लगा जाए रे ।
घोर अमावस की ये राते,
कुछ पल में ही कट जाएगा,
नेक नियत से मैंने रब से ,
मांगा है अब मिल जायेगा ।।
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बुझी बुझी आशाएं दिल की ,
चंचलता चितवन ने है खोई ,
अपने है अपनो से ही रूठे ,
मानो वह अनजान हैं कोई ।
सूखे दिल की पोखर में फिर,
बहुरंग कमल खिल जाएगा,
नेक नियत से मैंने रब से ,
मांगा है अब मिल जायेगा ।।
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फंसी हुई है जमुन भंवर में ,
जीवन हे कन्हैया कहाँ हो,
कोई भी साहिल दिखे न डगमग,
डोले हे जीवन नैया कहां हो।
लहरों से अठखेलियां करती ,
जीवन फिर से लौट आएगा,
नेक नियत से मैंने रब से ,
मांगा है अब मिल जायेगा ।।
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छोड़ उमंगों की आँचल को ,
चाहत की तितली उड़ उड़ जाए,
गुमसुम बैठी सुमन कली अब,
ना कोई भौरा भी गुनगुनाये।
बस कुछ दिन की बात है फिर से,
बहार चमन में छा जाएगा,
नेक नियत से मैंने रब से ,
मांगा है अब मिल जायेगा।।
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दिया ही दिया है हमने गर तो,
अपना नही कुछ खोने वाला,
घोर तिमिरमय राहों में भी,
विचलित पग नही होने वाला।
हे धरती के दिव्य अलंकरण,
पा सांसे तुझे सुख पायेगा,
नेक नियत से मैंने रब से ,
मांगा है अब मिल जायेगा।।
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अब हो प्रण नवजीवन में यह ,
नव धर्म के पथ पर पग धरने ,
भूले हुए निज कर्तव्यों को राही,
जीवन मे सुकृति सजग करने ।
आती जाती सुख दुख घड़ियां,
अब कोई गिला नही दे पाएगा,
नेक नियत से मैंने रब से ,
मांगा है अब मिल जायेगा।।
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सकारात्मक सोचो
स्वस्थ रहो
कवि -कुर्मी रामावतार चन्द्राकर