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थाम लेती है किनारे अपनी बाहों में ,
रूठकर आती हुई लहरों के वेग को ।
समा लेती है अपने अंदर समंदर जैसे ,
दौड़कर आती सरिताओं के आवेग को।
फिसलता हुआ पगडंडियों पर चल रहा था मैं,
तेरी दोस्ती ने उस पर चलना सीखा दिया ।
मुझे जीना सीखा दिया मुझे मरना सीखा दिया ,
मुझे चलना ,सम्भलना मुझे निभना सीखा दिया ।
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ऐ दोस्त तेरे साथ बिताया गया वो हर लम्हा ,
मेरे मूर्छित मन के लिए मानो संजीवनी था ।
मेरे बंजर दुखमय रूपी हिरन जहाँ रहकर,
सुख पाए तुम्ह ऐसा हरितमय अवनि था।
मैं डूब रहा था जीवन की दर्दभरी तलैया में,
तुने हाथ पकड़कर मुझको तरना सीखा दिया।
मुझे जीना सीखा दिया , मुझे मरना सीखा दिया ,
मुझे चलना ,सम्भलना मुझे निभना सीखा गया ।
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जीवन के दिये हुए घावों पर हमने मिलकर ,
अपने आंसुओ के मरहम को खूब लगाया ।
सांझा किया हर दर्द हर दिन शाम को बैठकर ,
अपने गमो को एक दूसरे के बांहो में छुपाया।
उलझ गया था मैं अधूरी मंजिले राह पर,
कुछ दूर साथ चलकर तूने उबरना सीखा दिया ।
मुझे जीना सीखा दिया मुझे मरना सीखा दिया ,
मुझे चलना ,सम्भलना मुझे निभना सीखा दिया ।
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शाम होते ही बैठकर उस तालाब के किनारे ,
मैं हर रोज तेरे आने की राह तकता रहता हूं।
इस आस में की तेरे साथ मैं अपनी आज की,
जिंदगी बया करूँगा ये खुद से कहता रहता हूं।
मेरी बोझिल सी थकी शाम को सानिंध्यता ने तेरे
दृढ़ होके विपत्तियों को सहना सीखा दिया ।
मुझे जीना सीखा दिया मुझे मरना सिखा दिया ,
मुझे चलना ,सम्भलना मुझे निभना सीखा दिया ।
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अस्ताचल में जाता हुआ सूरज को देखकर ,
मेरा मन रूपी पंकज जब जब हुआ उदास ।
हो प्यास से मै व्याकुल जब भी यूँ बैठा थककर,
प्याली लिए हुए जल की तुझे पाया मैं अपने पास ।
सहकर के मुश्किलो को हो सब्र करके जीना ,
कठिनाइयों से लड़कर निखरना सीखा दिया ।
मुझे जीना सीखा दिया मुझे मरना सीखा दिया,
मुझे चलना ,सम्भलना मुझे निभना सीखा दिया ।
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जीवन के इस नाव को जब जब भी मैंने,
रिश्तों की समंदर की गहराइयों में उतारा ।
लहरों के थपेड़ों से मार खा कर के मैंने ,
फंसकर के भंवरजाल में तब तुझको पुकारा।
बनकर के मांझी तुमने मझधार में उतरकर,
अपनो के आंधियो बीच ठहरना सीखा दिया ।
मुझे जीना सीखा गया, मुझे मरना सिखा गया ,
मुझे चलना ,सम्भलना मुझे निभना सीखा गया ।
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