हम जी रहे कैसे।
कहे तो हाल ए मन किससे कहे ,
हम जी रहे कैसे।।
::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::
टूटा तिलिस्म सपनों का,
जीया भी अब जाता नही।
कोई पूछे तो बतलाये ,
विरह विष पी रहे कैसे।।
:::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::
बरषों तराशा जिस पत्थर को,
मूर्त रूप में लाने को।
छूट गया कर से अब हिम्मत,
सूरत बनी रहे कैसे।।
::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::
सन्नाटा चहुँ ओर है पसरा ,
बैरन सी अब हवा लगे।
बताओ इस तिमिरांगन मे,
दुल्हन सजी रहे कैसे।।
::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::
वेदनाओं से भरा दिल,
जश्न अब भाता नही है।
पीड़ा अम्बर गठरी लाद के,
जाने जी रहे कैसे।।
::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::
काश कहीं उसके संग मैं भी,
बनकर पंछी उड़ जाता।
जीवन की उन्मुक्त सफर में ,
बिन उनके ही रहे कैसे ।।
:::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::
एक हाथ से जीवन का ये,
बोझ उठाया नही जाता।
डगमगाती पैरो के नीचे ,
अब ये महि रहे कैसे।।
::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::
मिलइ न जगत सहोदर भ्राता,
सत्य वचन है रामचंद्र का
वेदना की बेड़ी में बंधकर,
हम ही जाने जी रहे कैसे।।
::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::