तेरी तरह सब जीना चाहे
सबको जीवन का अधिकार
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क्यों मनमौजी बना है फिरता
मूक जीवन क्यों छेड़ते हो तुम
जो तेरे घट माँझ बिराजत
सबके भीतर देखो ना तुम
काहे ना अपनाता मानव
सम्यक जीवन का व्यवहार
तेरी तरह सब....................
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दम्भ कपट अरु द्वेष ईर्ष्या
शत्रु है ये सरल जीवन का
क्रोध अनल अरु लालच यम सम
मोह बन्धन है बिरागी मन का
त्याग विषमता के मारग को
प्रेम भूषित पथ करो स्वीकार
तेरी तरह सब .............................
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देखो आह्लादित अंडज को
खुले गगन में उड़ उड़ जाए
गैरो के आशियाने पर ये
नही कभी है हक ये जताए
जितना हक तुम्हे दिया विधि ने
करो उन्हें तुम्ह अंगीकार
तेरी तरह सब ...................
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कोकिल कुंजे ज्यों बसन्त में
झर झर बहती सरिता धारा
कलरव करती ये बिहंग दल
मन को भाये उपवन प्यारा
देती है सन्देश मनुज को
धारण कर इनका आचार
तेरी तरह सब ......................
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सूखा हुआ मन की है तलैया
भावो से उसको तुम भर दो
मूर्छित मन को सांसे देकर
नस नस में तुम सांसे भर दो
तेरे सुरभित सांस से महके
पतझड़ भी होकर गुलजार
तेरी तरह सब......................
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आहट पाकर सज सज जाए
तेरे ही जलवे से महफ़िल
बन पर्वत अरु जल थल मन को
चाल चलन से ना हो मुश्किल
जाने से तेरे चले जाएं और
और आने से हो त्यौहार
तेरी तरह सब ........................
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तेरे खुद की धड़कन को भी
स्वर देने वाला कोई और है
कर्म,कर्मफल,जन्म मरण को
निर्धारिण करता कोई और हैं
आती जाती ज्यों घड़ियों पर
रहता किसी का नही अधिकार
तेरी तरह सब .........................
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मूक जीवन - पेड़ पौधे आदि प्रकृति
घट माँझ - हृदय बीच
अंडज - पंछी
तलैया - छोटा तालाब