कविता का नाम - पथिक
रचनाकार -रामावतार चन्द्राकर
ऐ राह ए मुसाफिर जीवन के ,
पग पग देख के चलना,
शूल है बिखरे हुए हर पथ पर,
तुम मत कभी मचलना । 🌻
सुन ले पथिक कभी भूल न जाना ,
दुनिया की ये चाले,
चलते चलते पांव में दोनों ,
तेरे पड़ सकते हैं छाले ।
आत्मविश्वास और स्वाभिमान की ,
भावना मन मे भरना,
ऐ राह ए मुसाफिर जीवन के ,
पग पग देख के चलना ।
🌻
बहुत जटिल और उलझी हुई है ,
जीवन की पगडण्डी,
मानो लगा चहूं ओर हर कहीं,
छल कपट द्वेष की मंडी।
उलझ न जाना, बेर सी कांटे,
सम्भल सम्भल पग धरना ,
ऐ राह ए मुसाफिर जीवन के,
पग पग देख के चलना।
🌻
मानवता की पृष्ठभूमि पर ,
मानवधर्म कुछ ऐसा गढ़ देना ,
मानव बनने का दृढ़ मन्त्र ,
तुम हर मानव पर मढ़ देना ।
मानव, मानव बन जाये बस,
इतना ही फर्ज अदा करना ,
ऐ राह ए मुसाफिर जीवन के ,
पग पग देख के चलना ।।
🌻
शुचिता का भाव लिए मन मे ,
कर्तव्य बोध की लाठी टेक,
पर सेवा पर उपकार सदा ,
गैरो में भी अपनापन देख ।
जो जन दीन दुखी असहाय ,
भूल के भी न उसे छलना,
ऐ राह ए मुसाफिर जीवन के ,
पग पग देख के चलना ।।
🌻
मन मे नही राग न द्वेष कहिं ,
तुम ऐसा जीवन अपनाना,
जीवन के मुश्किल घड़ियों में ,
दुसवारियों से ना घबराना।
उत्साह और सौहार्द भरा दिल,
हिल मिल सबसे निभना,
ऐ राह ए मुसाफिर जीवन के ,
पग पग देख के चलना ।
🌻
पर्वत सा अडिग हो तेरा मन ,
जो झुके न बुरी अदाओ से ,
जीत लेना लोगो का दिल तुम ,
प्रेम की मीठी सदाओं से ।
कर्मठ कठिन दृढ़ लेखनी से,
तुम्ह रूठे भाग्य को बदलना,
ऐ राह ए मुसाफिर जीवन के ,
पग पग देख के चलना ।
🌻
जो भटक रहे कर्तव्यों से ,
उनको यह मार्ग सुझा जाना ,
जो जला रहे घर अपना ही ,
उस चिंगारी को बुझा जाना ।
तुम्ह मित्रकिरण की भांति ,
जग में फैले तम को दलना ,
ऐ राह ए मुसाफिर जीवन के ,
पग पग देख के चलना ।
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मानवधर्म के मंजिल हेतु ,
सुन ऐ पथिक अवतार हो तुम्ह,
राह चराचर को दिखलाने,
कर्तव्य पुरुष उदार हो तुम्ह ।
भावी पीढ़ी के कर्णधार तुम ,
नित ज्योतिर्मय हो जलना,
ऐ राह ए मुसाफिर जीवन के ,
पग पग देख के चलना ।
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दसानन रूपी बुराई हेतु ,
तुम धरना राम अवतार सदा ,
युवाओं के विस्मृत ललाट पर ,
बनना स्मृति करतार सदा।
शुचि जन मन के उद्धारक बन,
पथ को पवित्र तुम्ह करना,
ऐ राह ए मुसाफिर जीवन के ,
पग पग देख के चलना ।।
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