और कभी दिल को ही भेद ,
विक्षुप्त बना जाती है ।
कौन हो तुम क्या नियत तेरी ,
इसको पता है ज्यादा ।
कीमत आपकी बतला जाती ,
शब्दों की मर्यादा ।
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गमगीन दुखी हिय अंतश को ,
मरहम बन कर सहलाती।
बन शीतल मन्द सुरभित बाऊ,
रूठे मन को बहलाती।
निज प्रीतम के उर अंतर में ,
छा जाता बन शहजादा ।
कीमत आपकी बतला जाती ,
शब्दों की मर्यादा ।
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भाव तेरे अंतर्मन की ,
जग में जाहिर ये कर देती है ।
व्यथा हो या खुशियां तेरी ,
सबको प्रकट कर देती है ।
फितरत कैसी क्या मिजाज तेरा ,
रंगीन हो या हो सादा ।
कीमत आपकी बतला जाती,
शब्दों की मर्यादा ।
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पल भर में अति स्नेहीजन को ,
दुश्मन ये कर जाती है।
सम्बन्धों के ऋतु बसन्त में ये,
जब पतझङ बन आती है ।
अति पीड़ादायी इसके घाव है ,
ख़ंजर से भी ज्यादा ।
कीमत आपकी बतला जाती ,
शब्दों की मर्यादा ।
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बन मधुमय प्याली महफ़िल में ,
फिरती है प्रेम लिए ।
व्यथित मन को रोशन करती ,
जलती जब लब्ज़ दिए ।
कितनी पाक सौहाद्र भरा दिल,
नेक है इनके इरादा ।
कीमत आपकी बतला जाती,
शब्दों की मर्यादा ।
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हताश मन की गहराई में,
तब ये उतरती है आशा बन ।
ग्रीष्म ग्रसित व्याकुलता को,
तब तृप्ति देती बन सावन ।
कोई साथी साथ में चलने का ,
जब करने लगे ये वादा ।
कीमत आपकी बतला जाती,
शब्दों की मर्यादा ।
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शुचि मय आचरण ही है ,
दिलो को जीतने का फन ।
फहत हर महफ़िले होगी ,
जहाँ शामिल हो अपनापन।
नही सूरज, बनो दीपक,
नही उछलो कभी ज्यादा ।
कीमत आपकी बतला जाती,
शब्दों की मर्यादा ।
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जारी है....